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असम विधानसभा चुनाव : “कॉ” आंदोलन, पूजा, रिंकिया के पापा, बिहू, विकास और लोकप्रिय मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल

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विश्लेषण :
हमारे ब्यूरो प्रमुख मनोज कुमार ओझा द्वारा

तिनसुकिया, 17 मार्च : कुछ लोगों को यह ” हँसूआ का बियाह मेँ खुरपी के गीत ” की तरह लग सकता है, पर सच यही है कि असम मेँ होने वाले तीन चरणों के विधानसभा चुनाव के ठीक एक सप्ताह पहले अर्थात 20 मार्च को आल असम स्टूडेंट्स यूनियन ( आसू ) पुरे राज्य मेँ “कॉ ” के विरुद्ध आंदोलन करने जा रहा है.

असम का प्रभावशाली छात्र संगठन आसू शनिवार को न सिर्फ सिटीजनशिप ( अमेंडमेन्ट ) एक्ट के विरोध मेँ पुरे असम मेँ बाइक रैली करेगा बल्कि लोगों से यह अपील भी करेगा की वे ” कॉ ” लाने वाले दलों के विरोध मतदान करे.

कहना न होगा कि 27 मार्च से होने वाले विधानसभा चुनाव मेँ यह विरोध सत्ता पर आसीन बीजेपी और इसकी सहयोगी पार्टी एजीपी के विरुद्ध होगा. और यह विरोध महत्वपूर्ण इसलिए होगा क्योंकि यह चुनाव के ठीक कुछ ही दिन पहले होगा.

क्या यह विरोध बीजेपी और एजीपी के चुनावी नतीजे पर असर डालेगा, हमने यही सवाल किया अपर असम के कुछ वरिष्ठ बीजेपी नेताओं और मतदाताओं से :

” टी-बेल्ट पर तो इसका असर नहीं है, न ही होगा. हाँ, ग्रामीण क्षेत्रों मेँ इसका असर आंशिक रूप से होगा. ” एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा.

” मार्क करने वाली बात यह है कि चाय बगान के मतदाता बीजेपी को दुबारा सत्ता मेँ लाने का मन बना चुके हैँ. ” एक दूसरे भाजपा नेता ने कहा.

कहना न होगा कि अपर असम का चुनावी नतीजा संख्या-बहुल टी-बेल्ट के मूड पर निर्भर करता है जहाँ 27 मार्च को पहले चरण का चुनाव है.

” मैं उम्मीदवार को नहीं, पार्टी को वोट दूंगी, जिसने मुझे गैस सिलिंडर, रहने के लिए छत, राशन और तमाम सुविधाएं और महिलाओ को सुरक्षा दी है, सिर्फ मुझे ही नहीं लाखों माँ -बहनों को. आप समझ सकते हैँ मैं किसको वोट दूंगी. ” तिनसुकिया से 30 किलोमीटर दूर बाघजान टी एस्टेट की गुलाबी तांती ने प्रेरणा भारती को बताया.

आप को मालुम होगा की इस बार के चुनाव मेँ बीजेपी की नेतृत्व वाली गठबंधन, कांग्रेस ( जिसका दस पार्टियों के साथ गठबंधन है ) के आमने -सामने ख़डी है. दूसरी ओर चुनावी मैदान मेँ पहली बार उत्तरी असम जातीय परिषद और राईजर दल नाम की नव गठित पार्टी का क्षेत्रीय गठबंधन है जिन्होंने ” कॉ” को अपना प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया है और जिनके नेता क्रमश लूरिन ज्योति गोगोई और अखिल गोगोई जनता मेँ लोकप्रिय और भरोसेमंद हैँ.

आसू के प्रेसिडेंट दीपांका नाथ ने कहा कि ” एंटी-असम ” क़ानून और इसके लम्बे समय तक होने वाले बुरे परिणाम के बारे जागरूकता फैलाने के लिए यह प्रोटेस्ट कॉल करना पड़ा.

नाथ ने कहा, ” हम पुरे राज्य मेँ बाइक रैली करेंगे. और पुरे असम के गांव -गांव मेँ जाकर लोगों को बताएंगे इस एंटी असम क़ानून के बारे मेँ. हम लोगों से अपील करेंगे कि वे ऐसे दलों को न वोट दे जिन्होंने यह क़ानून लाया या फिर इसका समर्थन किया. रूलिंग बीजेपी ने यह क्लियर कर दिया है कि वे क़ानून को लागु करेंगे. हम चाहते है यह क़ानून ख़ारिज किया जाये. ”

उल्लेखनीय है कि 1985 मेँ जो असम समझौता हुआ था उसके अनुसार 24 मार्च 1971 को अवैध घुसपैठ करने वालों की पहचान, डिलीशन और डिपोर्टेशन के लिए तय हुआ था.

कॉ विरोधी ब्रिगेड बताते हैँ कि यह क़ानून बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आये हुए गैर मुसलमानो के लिए ( जिन्होंने 2014 तक भारत मेँ प्रवेश किया ) भारतीय नागरिकता पाना आसान कर देगा. और इससे अर्थात बांग्लादेशी घुसपैठ बढ़ने से असम के लोगों के संस्कृति और उनके पहचान को खतरा होगा. ब्रिगेड का कहना है कि जो भी 24 मार्च 1971 के बाद आये हैं, चाहें वो किसी भी धर्म के हो वो चले जाँए.

बताते चले कि लोक सभा ने 9 दिसंबर 2019 को कॉ पास किया था और राज्य सभा दिसंबर 11 को. नार्थईस्ट मेँ इसका शुरू से विरोध होता रहा है.

कॉ आंदोलन मेँ 12 दिसंबर को पांच लोग मारे गए थे और कृषक नेता अखिल गोगोई को जेल भेज दिया गया था जो शिवसागर जिले से चुनाव लड़ रहे हैं और अब तक जेल मेँ बंद हैं.

बताते चले कि यह प्रोटेस्ट उस समय होने जा रहा है जब बीजेपी के तरफ से, “चट देना मार देली खिंच के तमाचा, ही ही हँस देले रिंकिया के पापा ” से लोकप्रिय हुए मनोज तिवारी समेत कई स्टार प्रचारक मैदान मेँ उतरे है. दूसरी ओर कांग्रेस और ऐजीपी के तरफ से भी सघण प्रचार अभियान चलाया जा रहा है
.
चुनाव नतीजे 2 मई को घोषित होंगे.

ईधर टिकट मिलने की ख़ुशी और जीत के आसार को कुछ प्रत्याशी भगवान के द्वारे मथ्था टेक कर टिकाऊ बंनाने की कोशिश कर रहे हैं और उसके फोटोज सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं तो असम के गांवों से रंगाली बिहू की तैयारी के समाचार मिल रहे हैं. ढ़ोल, पेंपा, गगना की मधुर ध्वनि हवाओं मेँ घुल रही है.

उधर कुछ लोग लोकप्रिय मुख्यमंत्री सोनोवाल के विकास कार्यों की भूरि -भूरि प्रशंषा करते हुए कहते हैँ, ” हमें तो विकास चाहिए, सर्वानंद सोनोवाल चाहिए. ”

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