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असम विश्वविद्यालय में विश्व हिंदी दिवस पर संगोष्ठी: “हिंदी भाषा में प्रशासनिक प्रबंधन – चुनौतियाँ और संभावनाएँ”

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असम विश्वविद्यालय में विश्व हिंदी दिवस पर संगोष्ठी का आयोजन
 
शिव कुमार, शिलचर, 11 जनवरी: असम विश्वविद्यालय में विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर “हिंदी भाषा में प्रशासनिक प्रबंधन: चुनौतियाँ और संभावनाएँ” विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ प्रेमेंद्र मोहन गोस्वामी सभाकक्ष में दीप प्रज्ज्वलन और वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ हुआ। इस अवसर पर असम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर राजीव मोहन पंत मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे।
अपने उद्घाटन भाषण में कुलपति ने कहा, “विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर इस संगोष्ठी का आयोजन करना हमारे लिए गर्व की बात है। हिंदी न केवल भारत में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी इसका महत्त्व बढ़ रहा है। हमें हिंदी भाषा को तकनीकी, प्रशासनिक और शैक्षणिक क्षेत्रों में और अधिक मजबूत बनाना होगा। जब अन्य देश अपनी भाषाओं का उपयोग कर वैश्विक स्तर पर प्रभाव छोड़ सकते हैं, तो हिंदी के लिए ऐसा क्यों नहीं हो सकता?”
कार्यक्रम में प्रमुख वक्ताओं ने हिंदी भाषा के प्रशासनिक उपयोग की चुनौतियों और संभावनाओं पर चर्चा की। नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति सिलचर के सचिव और एनआईटी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सौरभ वर्मा ने अपने वक्तव्य में कहा, “हिंदी वह भाषा है जो हमें जोड़ती है। भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए हिंदी का प्रचार-प्रसार आवश्यक है।”
नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति शिलचर के सचिव डॉक्टर सौरभ वर्मा को सम्मानित करते हुए असम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर एम पंत
नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति शिलचर के सचिव डॉक्टर सौरभ वर्मा को सम्मानित करते हुए असम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर एम पंत
कार्यक्रम का आयोजन राजभाषा प्रकोष्ठ द्वारा किया गया, जिसमें हिंदी भाषा की प्रासंगिकता और उसके प्रभाव को लेकर गहन विचार-विमर्श हुआ। संगोष्ठी के दौरान हिंदी भारत की सर्वाधिक व्यापक भाषा और राष्ट्रीय पहचान की प्रतीक, विषय पर चर्चा की गई। वक्ताओं ने कहा कि हिंदी केवल संवाद का माध्यम नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीय एकता का मूल आधार है। हिंदी के प्रशासनिक उपयोग को और अधिक सरल, सहज और प्रभावी बनाने के लिए इसे राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर सशक्त बनाने की आवश्यकता है। कार्यक्रम में वक्ताओं ने यह भी कहा कि हिंदी भाषा का प्रसार केवल शिक्षा तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि इसे तकनीकी और प्रशासनिक क्षेत्रों में भी उतनी ही प्राथमिकता मिलनी चाहिए। प्रशासनिक प्रक्रियाओं में हिंदी को सशक्त बनाने के लिए सरकारी स्तर पर नीतियों को लागू करने की बात भी कही गई। वक्ताओं ने कहा कि हिंदी न केवल हमारी मातृभाषा है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान का महत्वपूर्ण अंग भी है। उन्होंने प्रशासनिक क्षेत्रों में हिंदी के उपयोग को और अधिक प्रभावी बनाने पर जोर दिया। प्रो. अविनाश कुमार ने अपने वक्तव्य में कहा कि आधुनिक भारत में हिंदी को हर क्षेत्र में विशेष स्थान दिलाने के लिए युवा पीढ़ी को जागरूक करना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि शिक्षा, प्रशासन और तकनीकी क्षेत्र में हिंदी का उपयोग बढ़ाने के लिए समर्पित प्रयासों की आवश्यकता है।  हिंदी के ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए इसे भारतीय संस्कृति की आत्मा कहा। उन्होंने कहा कि प्रशासनिक भाषा के रूप में हिंदी को सशक्त बनाने से भारत की विविधता में एकता को बढ़ावा मिलेगा।
इस संगोष्ठी में प्रोफेसर अजिता तिवारी, प्रोफेसर कृष्ण मोहन झा, प्रोफेसर रामकुमार महतो, प्रोफेसर राजन वैद्य और प्रोफेसर जावेद रहमानी जैसे विद्वानों ने भी अपने विचार व्यक्त किए। डॉ. शतदल आचार्य, डॉ. शुभदीप, और हिंदी अधिकारी डॉ. सुरेंद्र उपाध्याय ने भी हिंदी के प्रशासनिक उपयोग को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण सुझाव दिए। कार्यक्रम में वक्ताओं ने यह भी कहा कि हिंदी के महत्व को समझाने और नई पीढ़ी को इसके प्रति जागरूक करने की जिम्मेदारी हम सभी की है। भारतीय शिक्षा प्रणाली में हिंदी को प्राथमिकता देकर छात्रों में इसके प्रति जागरूकता और रुचि पैदा की जा सकती है। हिंदी भाषा को तकनीकी, डिजिटल और सामाजिक मंचों पर अधिक से अधिक प्रोत्साहित करने की जरूरत पर भी बल दिया गया।
संगोष्ठी में असम विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के शिक्षक, छात्र, और प्रशासनिक अधिकारी उपस्थित थे। सभी ने हिंदी भाषा के प्रति अपनी रुचि और समर्थन व्यक्त किया। कार्यक्रम में उपस्थित अन्य व्यक्तियों में  डॉ. पिनाक कांती रॉय, सुब्रत सिन्हा, शंकर शुक्लवैद, बिप्रेश गोस्वामी, अनूप वर्मा, संतोष ग्वाला, संगीता ग्वाला, अब्दुल जलील, जनार्दन ग्वाला, देवाशीष चक्रवर्ती, प्रोफेसर गंगा भूषण, पिक्लू पॉल आदि शमिल थे।
कार्यक्रम के अंत में हिंदी अनुवाद अधिकारी पृथ्वीराज ग्वाला जो राजभाषा अनुपालन के लिए सदैव तत्पर रहते हैं ने सभी अतिथियों और प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने कहा कि हिंदी न केवल भाषा है, बल्कि यह भारत की आत्मा है। उन्होंने इस संगोष्ठी के आयोजन में सहयोग देने वाले सभी व्यक्तियों और विभागों का आभार व्यक्त किया।
इस संगोष्ठी ने यह स्पष्ट किया कि हिंदी को वैश्विक स्तर पर और अधिक प्रासंगिक बनाने के लिए तकनीकी, प्रशासनिक और शैक्षणिक क्षेत्रों में ठोस प्रयास करने की आवश्यकता है। यह कार्यक्रम हिंदी भाषा के महत्व को लेकर जागरूकता फैलाने और इसे एक सशक्त प्रशासनिक और सामाजिक माध्यम बनाने के लिए एक प्रेरणादायक कदम साबित हुआ।

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