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असम सरकार द्वारा हिंदी पर प्रतिबंध, राष्ट्रीय एकता व अखंडता के क्षेत्र में एक असहनीय कार्रवाई को अंजाम दिया जा रहा है।

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राज्य सरकार की राष्ट्रभाषा की शिक्षा व्यवस्था विलुप्तिकरण, हिंदी शिक्षक पदों की विलुप्तिकरण, राष्ट्रीय एकता अखंडता के क्षेत्र में एक असहनीय कार्रवाई को अंजाम दिया जा रहा है। हिंदी भाषा की स्वतंत्रता, राष्ट्रीय गरिमा से जुड़ी हुई है। हर समुदाय के लोगों द्वारा हिंदी में बातचीत, आपसी भावनाओं का आदान-प्रदान चल रहा है। अपना विचार व्यक्त करना तथा गैर भाषाभाषी लोगों के बीच राजभाषा हिंदी के जरिए संपर्क करना। जिसे एकता के सूत्र को समझने के लिए सदियों से बोया गया था। असम सरकार के गैर जिम्मेदाराना सिद्धांत के चलते आज वह भाईचारे का माहौल विलुप्त होता जा रहा है। राष्ट्रभाषा हिंदी को संसद में दर्जा दिए जाने के बाद भी असम सरकार की इन गतिविधियों के चलते उत्तर पूर्वांचल क्षेत्र में रह रहे हिंदीभाषी लोगों के साथ-साथ तमाम दूसरे भाषा गोष्ठी के लोग जैसे की खासी, गारो, मिजो, दिमासा, नागा, कुकी, मणिपुरी, बंगाली व दूसरे भाषागोष्ठी के के बीच आपसी मेल बंधन ओर भाईचारा का माहोल बिगड़ सकता है। अपने मनमानी सिद्धांत के चलते  राज्य सरकार हिंदीभाषियों के साथ साथ दूसरे भाषा गोष्टी व राष्ट्रीय एकता से खिलवाड़ कर रही है जो की आनेवाले दिनों में देश के लिया एक बहुत बड़ा खतरा बन सकता है। राज्य सरकार की ऐसी हिंदी के लुप्त किए जाने की चाल के खिलाफ सभी स्तर के लोगों को एक मंच पर आना होगा और कड़ी कार्रवाई के जरिए शिक्षक पदों की विलुप्ति व हिंदी शिक्षा बंद करना के खिलाफ बुलंद आवाज को आंदोलन के जरिए मजबूत करना होगा।
संजीव सिंह वरिष्ठ पत्रकार शिलचर

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