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आँसुओं का कीमत भला तुम क्या जानो।
आँसुओं की एक छोटी सी झलक भी
मैं दुनिया के सामने छिपा नहीं पाता हूँ।
जब आता है मेरा बोलने का समय,
अपना फिलींग उसको बता नहीं पाता हूँ।
कोशिश करता हूँ हजार,लेकिन भावनाओं
के समंदर में अक्सर बह जाता हूँ।
चित्त रहता है उथल-पुथल और हैरान,
दुखी मन से कभी-कभी होता हूँ परेशान।
मैं कोशिश करता हूँ हजार, लेकिन भावनाओं
के समंदर में अक्सर बह जाता हूँ।
कदमों में जम लग जाते हैं कभी-कभी,
कदमों में सबका मंजिल भी नहीं होता।
कदम बढता ही जाता है,रुकने का
नाम नहीं लेता,रोकने का प्रयास करता हूँ,
लेकिन भावनाओं के समंदर में अक्सर बह जाता हूँ।
खफा नहीं हूँ।अपने इस जिंदगी से
बस इकरार करता रहता हूँ।कोशिश
करता हूँ हजार,लेकिन भावनाओं के
समंदर में अक्सर बह जाता हूँ।
यह मेरे कलम की नहीं बल्कि
यह मन की करुण पुकार है।
वही आश अभी भी बरकरार है।
मैं अकेला ही निकल पडता हूँ।
कोशिश करता हूँ हजार,लेकिन
भावनाओं के समंदर में बह जाता हूँ।
गीत थोडा अवश्य गुनगुना लेता हूँ।
कोशिश करता हूँ हजार,लेकिन
भावनाओं के समंदर में अक्सर बह जाता हूँ।
यह मरहम ही तेरी दवा है,
खुद की तलाश खुद ही पहचानों
आँसुओं ने न जाने कितने घावों को भरा है,
यह आँसू हीरे हैं जिंदगी भर की,
आँसुओं का कीमत भला तुम क्या जानो।
—————– समराज चौहान।
हावराघाट,पूर्वी कार्बी आंग्लांग।
दूरभाष:-600005928