सम्माननीय मित्रों ! समय का पहिया चाहे कितना ही घूम जाये किन्तु संस्कारों का ठहरा रहना ही उचित है ! आज हिन्दीके बन्द हो चुके प्राथमिक से उच्च माध्यमिक तक के विद्यालयों की मांग राजनीति की भेंट चढ जाये इसका पुरजोर प्रयास होना प्रारम्भ हो चुका।इसके निहितार्थों को भी समझने की आवश्यकता है ! मैं जानता हूँ कि दशकों पूर्व तक बराक उपत्यका में हिन्दी के एक सौ बत्तीस माध्यमिक विद्यालय थे ! जो अब सिमट कर केवल तीन पर आ चुके। इसका मूलभूत कारण क्या है ?
मैं बार-बार कहता आया हूँ कि असम ! बराक उपत्यका ! और इसके चाय बागानों की जमीन पर बैठे अतिक्रमण कारी जेहादी बंगाल इसे धीरे-धीरे-“गाजा पट्टी” बनाते जा रहे हैं ।
स्वतंत्रता के पश्चात भारत सरकार के सहयोग से हमारी असम सरकार ने चाय बागानों से लेकर प्रत्येक उन क्षेत्रों में जहाँ जहाँ भी हिन्दी बोलनेवाले लोगों की बहुतायत थी वहाँ-वहाँ हिन्दी विद्यालयों को खोला ! हिन्दी भाषा के शिक्षकों की नियुक्ति की हजारों हजार की संख्या में की और इसलिए की क्यों कि हमारे दूरदर्शी असमिया लोग ये जानते थे कि बराक उपत्यका के सीमावर्ती क्षेत्रों से घुसपैठिये बंगाल आकर यहाँ के बांग्ला भाषी लोगों के साथ घुल-मिल कर बराक को -“पाकिस्तान” बना देंगे।
मित्रों ! ये कडवी सच्चाई है कि-“आत्मायत्तौ वृद्धिविनाशौ” अर्थात अपना विकास और विनाश दोनों ही अपने हांथों में होता है ! हम हिन्दुओं में एक होड होती है ! अन्धानुशीली हैं हमलोग !
हमारे बच्चे-“सेन्ट(?) कैपिटल,होली क्रास” में ही पढें ये हमारे युवा दम्पत्ति सन्तान के गर्भ में आते ही विचार बना लेते हैं।
दूसरी ओर इस्लाम एक ऐसी जमात है जो हमल को ही हलाल की तहजीब देने लगती है! मित्रों ! हिन्दी विद्यालयों का इतनी तीव्रता से क्षरण हुवा क्यों ? इसमें असमिया सरकार का दोष क्यों और कैसे है ? हम प्रत्येक बात में अपनी सरकार को दोष देने की अपेक्षा अपनी गलतियों को देखना ! समझना स्वीकार करना ! और उसे सुधारने की कोशिश कब करेंगे ?
मैं केवल असम की बात करता हूँ अभी ! केवल बराक उपत्यका की ही बात पहले करता हूँ ! हमारे चाय बागानों, नगर से लेकर ग्रामीण अंचलों ! ग्रामीण अंचलों से लेकर सुदूर सीमावर्ती क्षेत्रों में हमें जमीनी सच्चाई देखने की प्रथम आवश्यकता है।
प्रिय मित्रों ! स्वतंत्रता के पश्चात ! बांग्ला देश बनने के पश्चात ! मैं तो कहता हूँ कि सैकड़ों वर्षों से बांग्ला भाषी मुस्लिम और रोहिंग्या पूर्वी पाकिस्तान,तदोपरान्त बांग्ला देश और म्यांमार से -“सुनामी” की तरह आते गये ! हमारी तद्कालीन सरकार में बैठे उनके एजेंटों ने उनका-“खैर मकदम” किया ! उनको हिन्दुओं की जमीन पर जबरन बैठने में पूरी तरह से सहायता की ! चाय बागानों की जमीन में-“चाय पाता” की जगह बंगाल उगने लगे ! उनके राशन कार्ड,वंश प्रमाण पत्र,पेन कार्ड,मतदाता पहचान पत्र,आधार कार्ड सब बन गये ! इसके साथ-साथ उनके बच्चे उन सरकारी हिन्दी विद्यालयों में जाने लगे जहाँ हमारे बच्चे हिन्दी पढते थे ! देशभक्ति की सौगन्ध लेते थे ! धीरे-धीरे हिन्दी विद्यालयों के रजिस्टर में तथाकथित बांग्ला भाषी किन्तु वास्तव में-“बंगाल” बहुसंख्यक होते गये।
मित्रों ! इसमें दोषी कौन है ? यदि हमारे बांग्ला भाषी हिन्दू अपने भाषायी बन्धुवों को बसा रहे थे ! उनको बहुसंख्यक बना रहे थे ! यदि हिन्दी विद्यालयों में उनको शिक्षित करा रहे थे ! तो इसमें गलत क्या है ? वे तो बांग्ला देश से अपना सबकुछ जिनके द्वारा लूट लिये जाने के बाद भी उनको केवल भाषायी आधार पर अपना रहे थे तो ये तो उनकी महानता है ?
तद्कालीन हमारे राजनैतिक दल ! केवल अपने-“वोट-बैंक” को मजबूत रखने के लिये बंगाल को बसा रहे थे ! केवल वोट के लिये उनलोगों ने चाय बागानों की जमीन से लेकर असम के ! बराक उपत्यका के -जंगल,ग्रामीण क्षेत्र,सीमावर्ती क्षेत्र,नगरीय क्षेत्रों” तक को-“गाजा पट्टी” बना दिया।
यहाँ एक और भी-“खेला होइसे”उन लोगों ने सरकारी अभिलेखों से लेकर विद्यालयों तक में अपनी मातृभाषा-“बांग्ला” लिखा दी ! और उनकी मातृभाषा बांग्ला थी भी ! अर्थात उन्होंने बिलकुल सही किया यही उनकी दूरदर्शिता थी ! रणनीति थी असम को इस्लामिक स्टेट बनाने की। बिलकुल इसी प्रकार पश्चिम बंगाल की कम्यूनिस्ट,कांग्रेस से लेकर ममता सरकार तक कर रही हैं ! ये तथाकथित “इस्लामिक अखण्ड बंगाल” बनाने की गहरी साजिश है जिसमें बांग्ला भाषी हिन्दुओं को आज नहीं तो कल बांग्ला देश की तरह अपना घर,दुकान,व्यवसाय,बहू, बेटियों, धन,सम्पत्तियों को छोड़कर कश्मीर घाटी की तरह जाना ही पडेगा ! जैसे आज फिलीस्तीनियों को दक्षिण गाजा से उत्तरी गाजा, उत्तरी गाजा से दक्षिणी गाजा” बार बार भटकना पड रहा है ! ऐसा ही कुछ समय के पश्चात यहाँ के बांग्ला भाषी हिन्दुओं के साथ होगा।
मित्रों ! मैं समझता हूँ कि-“स्वभावो दुरतिक्रमः” अपने स्वाभाविक स्वभाव का अतिक्रमण कठिन है ! जो दुष्ट हमारे बांग्ला भाषी हिन्दुओं की सैकडों वर्षों से जधन्य हत्या करते आ रहे हैं! लूटते आ रहे हैं, ! बलात्कार करते आ रहे हैं ! ये हमारे बांग्ला भाषी बन्धु नहीं समझते ! वे उनको केवल-“बंग बन्धु” मानते हैं ! बिलकुल उसी प्रकार जिस प्रकार कभी कश्मीरी पंडितों को मुजाहिद्दीन अपना भाई और शेष भारतीय हिन्दुओं को कश्मीरी पंडित अपने से निर्कृष्ट समझते थे ! बिलकुल उसी इतिहास को आज यहाँ दुहराया जा रहा है कि बांग्ला भाषा के नामपर बंगाल एक है और हम हिन्दुस्थानी होने के कारण-“कुली” कहे जाते हैं ! क्रमशः ..-“आनंद शास्त्री सिलचर, सचल दूरभाष यंत्र सम्पर्क सूत्रांक 6901375971”
