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आपातकाल 1975- 77 बनाम आजादी की दूसरी लड़ाई

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25 जून 1975 के मध्य रात्रि हिंदुस्तान के इतिहास की वह घड़ी थी जब स्वतंत्रता के बाद भी लोकतंत्र की हत्या की गई ।
   अपनी कुर्सी बचाने के लिए श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार ने 1975  में देश पर आपातकाल थोप कर लोकतंत्र के साथ जिस तरह से क्रूर मजाक किया, वह स्वतंत्र भारत में भयावह और अकल्पनीय था। संविधान को धता बताते हुए सबसे पहले प्रेस का गला घोट कर संपूर्ण देश को बंधुआ मजदूर बना दिया। देश के हजारों विरोधी नेताओं को रातों रात घरों से उठाकर के जेल में डाल दिया गया। श्री अटल बिहारी वाजपेई,  श्री लालकृष्ण आडवाणी, श्री मुरली मनोहर जोशी, श्री जयप्रकाश नारायण, जॉर्ज फर्नांडिस आदि अनेक नेताओं को जेल में डाल दिया गया हर नगर, हर गली, हर शहर और हर कार्यालय में दहशत का माहौल बनाया गया। इस तानाशाही को देश भर से चुनौती मिली, राष्ट्रीय स्वयं संघ के अलावा अन्य विभिन्न संगठन जनसंघ, भारतीय विद्यार्थी परिषद, विश्व हिंदू परिषद, मजदूर संघ इत्यादि 30 संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं ने जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में “लोक संघर्ष समिति” के नाम से सत्याग्रह किया। हर प्रांत में हजारों की संख्या से देश भक्तों के खिलाफ सड़कों पर उतरे। यह जानते हुए कि ऐसा कार्य करने से उन्हें भारत रक्षा कानून अधिनियम के अंतर्गत अनंत काल तक जेल में ठूंस दिया जाएगा फिर भी अपने देश के लिए वे अड़े रहे। आज की पीढ़ी को विश्वास नहीं होगा कि यदि कोई व्यक्ति भारत माता की जय का नारा लगा दे तो उसे तत्काल देश की सुरक्षा के लिए खतरा माना जाता था फिर कोई न्यायालय भी उसे नहीं बचा सकता था। वस्तुत: पूरा भारतवर्ष वकील नहीं, दलील नहीं, अपील नहीं, के तंत्र से शासित हो रहा था इसी बर्बरता से परिचित होने के बावजूद देश के लगभग लाखों देशभक्तों ने भारत माता की जय कार करते हुए पुलिस के घिनौनेपन का शिकार होकर महीनों तक जेल रहे। आपातकाल के विरोध में पूरे देश में 44 हजार लोगों को डी.आ.आर.की धारा में गिरफ्तार किया किया गया । सैकड़ों स्वतंत्रता सेनानी आपातकालीन समय में ही जेलों में शहीद हो गए। यह वह दौर था जब यह कल्पना तक नहीं की जा सकती थी कि इस तानाशाही के खूनी पंजे से देश कभी निकल पाएगा।
  यह तो समग्र देशवासियों और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के हजारों कार्यकर्ताओं की त्याग, तपस्या व बलिदान की अटूट भावना ही थी जिसके कारण 19 महीने में ही देश में लोकतंत्र की पुनः बहाली हो सकी और देश पुन:खुली हवा में सांस लेने में समर्थ हुआ।
 ऐसे थे हमारे संघ के वीर सपूत, जिन्होंने संकट में घिरे देश के पवित्र संविधान की गरिमा को बचा लिया। गलत रास्ते में धकेले गए इतिहास को दोबारा पटरी पर ले आए और  और देश में पुनः लोकतंत्र की स्थापना हुई एवं
देश की भावी पीढ़ी के लिए एक अद्भुत एवं अनुकरणीय उदाहरण  प्रस्तुत किया।
  असम प्रांत में भी इंदिरा सरकार की तानाशाही से प्रदेश अछूता नहीं रहा गुवाहाटी में भी केसरदेव बावरीजी, महावीर जी स्वामी, महावीर जी अग्रवाल, वासुदेव गोस्वामी और श्री भास्कर शर्मा, मोतीलालजी जालान, ओमजी शर्मा, रमाशंकर राय, हरे कृष्ण भराली, नव कांत बरुवा, प्रांतोष राय, आलोक के संपादक चंद्रकांत महंतों, विपिन कलिता आदि  अनेक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया। स्वर्गीय मोतीलालजी जालान कहते थे “कि 25 जून आपात काल का वह समय स्मरण आता है तो हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। पुलिस ने इन लोगों के साथ बर्बरता पूर्वक अमानवीय व्यवहार किया और जोरहाट से श्री गोवर्धन प्रसाद अटल को गिरफ्तार किया गया। उस समय श्रीकांत जोशी प्रांत प्रचारक थे उन्हें मधुकर जी और हमारे आदरणीय पिताजी प्रांत व्यवस्था प्रमुख भँवर लाल जी राठी को गिरफ्तार करने हेतु सरकार ने पहले ₹1000 इनाम रखा। उसके बाद में सरकार ने उसे बढ़ा करके ₹5000 तक कर दिया परंतु फिर भी सरकार इनको गिरफ्तार नहीं कर सकी। उस समय भूमिगत रहकर के संघ का काम किया जिसमें ओमप्रकाश दारुका, कैलाश शर्मा जी, दुर्गा प्रसादजी  चर्खा, महावीर भार्गव, अभय घोषाल, राम आशीष ठाकुर आदि कार्यकर्ताओं ने काम किया।
         लोकतंत्र सेनानियों के लिए माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने लोकसभा में 25 जून 2019 को अपना भाषण में कहा था कि –
 “आपातकाल लगाने का दिन काले दिन के रूप में इसीलिए मना रहे हैं कि भविष्य में कोई भी सरकार ऐसा कदम कदापि न उठा सके, आज हम जिस लोकतंत्र में खड़े हैं वह आपातकाल में संघ के कार्यकर्ताओं ने कुर्बानी देकर ही बचाया गया है ‌और जिन-जिन लोगों ने कुर्बानियां दी उन सभी का सम्मान किया जाना चाहिए।”
प्रधानमंत्री के लोकसभा में दिए गए इस भाषण पर मंत्री परिषद को, सचिवों को आगे की कार्यवाही कर लोकतंत्र रक्षकों के लिए कानून नियम बनाकर सम्मानित करना चाहिए था। यह अति महत्वपूर्ण कार्य था, जिस पर अभी तक गौर नहीं किया गया है। अब 25 जून 2023 आ रहा है, लोकतंत्र सेनानियों को सम्मान पेंशन व स्वतंत्रता सेनानियों को समकक्ष दर्जा प्रदान करने की घोषणा दी जाय। लेखक स्वयं आपात काल में जेल में रहकर अपनी अहम भूमिका निभा चुका है। पुन: कहना चाहूंगा सभी को सम्मान के साथ सम्मान निधि भी मिले और स्वतंत्रता-सेनानी का प्रमाण पत्र भी मिले इसी आशा के साथ –
तनसुख राय राठी
लोक संघर्ष समिति
 असम प्रदेश
मोबाइल नं.   6001609101
                    9957829718

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