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प्रे.स. दिल्ली 27 नवंबर: समाचार पत्रों व सोशल मीडिया के माध्यम से ज्ञात हुआ कि उत्तर प्रदेश की सरकार बिजली कम्पनियों को सहभागिता के आधार पर निजी क्षेत्र को दिए जाने के लिए कार्य योजना बना रही है। जिसकी एक बैठक कल उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुई है। भारतीय किसान यूनियन ने अपने शुरूआती दौर में करमूखेडी बिजली आन्दोलन से सरकार की गलत नीतियों के विरूद्ध लड़ाई शुरू की थी। संगठन लगातार बिजली के मुद्दों पर समय-समय पर आन्दोलनरत् रहा है। 2001 में कानपुर में बिजली के निजीकरण की पहली कोशिश की गयी, जो कि नाकाम रही। 2009 में कानपुर और आगरा की बिजली व्यवस्था टोरंट पॉवर को देने का एग्रीमेंट उस समय के तत्कालीन सरकार ने कर लिया था, लेकिन विरोध प्रदर्शन के चलते 2013 में राज्य सरकार को यह एग्रीमेंट रद्द करना पड़ा। इन सबके बीच 2010 में आगरा की बिजली टोरंट पॉवर कम्पनी को दे दी गयी, जिसका दंश आज भी वहां का आम नागरिक व किसान झेल रहा है। आय के साधन सीमित हैं। किसान बिल भी जमा नहीं कर पा रहा है। लाखों रूपये निजी नलकूपों के किसानों पर बकाया चल रहे हैं। 2018 में सर्वसम्मति से कैबिनेट ने दो फैसले लिए जिसमें 6 जिलों को निजीकरण के क्षेत्र में शामिल किया गया। साथ ही लखनऊ, वाराणसी, गोरखपुर, मुरादाबाद और मेरठ शहर की बिजली व्यवस्था निजी हाथों में दिए जाने का निर्णय लिया। विरोध के चलते इसे वापिस लिया गया।
अप्रैल 2018 में ऊर्जामंत्री रहे श्रीकान्त शर्मा से वार्ता व लिखित समझौते व 2020 में वित्त मंत्री सुरेश खन्ना की अध्यक्षता में उपसमिति के साथ हुए लिखित समझौते में स्पष्टतापूर्वक कहा गया है कि ऊर्जा क्षेत्र में कोई निजीकरण नहीं किया जाएगा। उस समय सरकार के द्वारा किया गया समझौता और इस प्रकार से निजी हाथों में बिजली देने का फैसला अपनी बात का उल्लंघन करना है। जिस ओडिशा मॉडल को सरकार व बिजली कम्पनियाँ अपनाना चाह रही है वह पूर्ण तरीके से फेल साबित है। उत्तर प्रदेश पॉवर कारपोरेशन के द्वारा बिजली कम्पनियों को घाटे में दिखाकर निजी हाथों में देने का फैसला एक निंदनीय कदम है जिसका भारतीय किसान यूनियन पुरजोर विरोध करती है। इस फैसले से आम जनजीवन व कर्मचारी वर्ग पर भी भारी प्रभाव पड़ेगा। हम सब इस लड़ाई में एकसाथ हैं और इसे कन्धे से कन्धा मिलाकर लड़ेंगे।