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एक बार फिर दिखाई देने लगा है पिछले साल जैसा भयावह दृश्य

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कोरोना के आतंक के फिर से पैर पसारने और लंबे वक्त के लिए लॉकडाउन लागू होने के डर से एक बार फिर प्रवासी कामगारों ने घर लौटना शुरु कर दिया है। बड़ी तादाद में प्रवासी कामगार देश भर से अपने मूल निवास स्थानों की ओर रवाना हो रहे हैं।

पलायन के इन दृश्यों ने पिछले साल की यादें ताजा कर दी हैं, जब महामारी की रोकथाम के लिए लागू पहले राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान हजारों प्रवासी कामगार सड‍़कों पर नजर आए थे।

चश्मदीदों के मुताबिक साल भर के अंतराल के बाद प्रवासी कामगारों की गाड़ियां सड़कों पर एक बार दिखाई दे रही हैं। इनमें मोटरसाइकिल से लेकर मिनी ट्रक और काले व पीले रंग के ऑटो रिक्शे शामिल हैं। अपने ऑटो रिक्शे से मुंबई से उत्तर प्रदेश के बलिया जा रहे रामशरण सिंह (40) ने बताया कि मुंबई में कोरोना वायरस संक्रमण बुरी तरह बढ़ रहा है। पिछले साल की तरह इस बार भी लम्बा लॉकडाउन लग गया तो वहां हमारे लिए रोजी-रोटी का संकट हो जाएगा। इसलिए हम घर लौट रहे हैं।

मोटरसाइकिल से बिहार के भोजपुर जिले स्थित अपने घर लौट रहे मोहम्मद शादाब (25) मुंबई के एक रेस्तरां में काम करते हैं। उन्होंने बताया कि मैं जल्द से जल्द घर पहुंचना चाहता हूं। महामारी के हालात सुधरने पर ही मैं मुंबई लौटने के बारे में सोचूंगा। वरना बिहार में ही कोई छोटा-मोटा काम करूंगा। वहीं इसी बीच उच्चतम न्यायालय ने सभी राज्यों को निर्देश दिया कि वे प्रवासी बच्चों की संख्या और उनकी स्थिति से उसे अवगत कराएं।

न्यायालय ने ये निर्देश उस याचिका पर दिया जिसमें कोविड-19 वैश्विक महामारी के बीच, प्रवासी बच्चों के मौलिक अधिकारों के संरक्षण का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। याचिका में कहा गया कि अभूतपूर्व लॉकडाउन ने प्रवासी संकट पैदा किया और प्रवासी बच्चों पर भी इसका प्रभाव पड़ा है और उनके मौलिक एवं मानवाधिकार पर पड़े प्रभाव तथा जारी संकट साफ तौर पर दिख रहा है।’ इसमें कहा गया कि लॉकडाउन से प्रवासी बच्चों पर कहर बरपा है और अब तक प्रवासी बच्चों, शिशुओं, गर्भवती या स्तनपान कराने वाली प्रवासी महिलाओं की संख्या और उनकी जरूरतों का कोई आकलन नहीं किया गया है।

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