18 Views
अनिल मिश्र/गाया
बिहार के गया में मृत्य आत्माओं के मुक्ति और देव लोक में स्थान के लिए तर्पण, श्राद्ध एवं पिण्ड दान करने का विधान सनातन धर्मावलंबियों के द्वारा है। वैसे तो यहां सालोंभर तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान का कार्य किया जाता है। मगर भाद्रपद मास के अनंत चतुर्दशी से लेकर आश्विन मास के अमावस्या तक यानी सत्रह दिनों तक इस कार्य को करने का विशेष महत्व है।इस अवसर पर पूरे देश भर के साथ- साथ विदेशों से भी सनातन धर्मावलंबी आकर अपने पितरों के मोक्ष और उद्धार के लिए यह कार्य करते हैं।इन दिनों को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार प्रत्येक वर्ष राजकीय मेला का आयोजन किया करता है।जिसकी जिम्मेदारी जिला प्रशासन पर होती है।इस बार का यह पितृपक्ष मेला 17 सितंबर से प्रारंभ हो कर 2 अक्टूबर तक चलेगा।इस दौरान अभी तक लगभग चार लाख के करीब तीर्थ यात्री आकर इस कार्य को करने की जानकारी प्राप्त हुई है।
हर दिन लाखों लाख की संख्या में तीर्थयात्री अपने पूर्वजों की तर्पण
गयाजी के विभिन्न वेदी स्थलों पर कर रहे हैं। इसी बीच कल प्रेतशिला वेदी स्थल पर अत्यधिक भीड़ होने की सूचना प्राप्त होते ही गया के जिला पदाधिकारी डॉ० त्यागराजन एसएम स्वयं पहुंचकर भीड़ प्रबंधन का जायजा लेने लगे। प्रेतशिला के ऊपर जाने वाली सीढ़ियों पर भारी भीड़ यात्रियों की देखी गयी। डीएम स्वमं 776 सीढ़ियों को चढ़ते हुए तीर्थयात्रियों को कतार में लगाने लगे।ताकि सीढ़ी चढ़ने वाले यात्री और सीढ़ी से उतरने वाली यात्रियों को किसी प्रकार का कोई समस्या नही हो सकें।
प्रेतशिला में 776 सीढ़ी है, सभी सीढियां पूरी तरह खड़ी रूप में हैं।
प्रेतशिला में बढ़ते हुए भीड़ को देखकर
डीएम ने प्रेतशिला के ऊपरी चोटी पर पहुंच कर यात्रियों को दी जाने वाली सुविधाओं को देखा और निर्देश दिया कि चूंकि सीढ़िया की संख्या काफी ज्यादा है । इसके बावजूद लोग पिंडदान करने ऊपर चोटी पर आते हैं, उनकी व्यवस्था में कोई भी कमी नही रहे । खासकर पानी, टॉयलेट की पूरी व्यवस्था रखे। पानी सप्लाई बंद बिल्कुल नही हो, टॉयलेट की सफाई लगातार हो, इसे सुनिश्चित करे। साथ ही छोटी पर नोडल पदाधिकारी के रूप में अंचलाधिकारी नगर को लगाया है, जो पूरी व्यवस्था को निगरानी करेंगे। साथ ही प्रेतशिला के नीचे सीढ़ी पर प्रखंड विकास पदाधिकारी नगर को लगाया गया है, जो केवल भीड़ प्रबंधन को देखेंगे।
इसके अलावा प्रेतशिला वेदी के सम्पूर्ण प्रभार में जोनल पदाधिकारी सह वरीय उप समाहर्ता धीरज कुमार एव ज़िला कृषि पदाधिकारी को निर्देश दिया कि लगातार भीड़ पर नजर रखे। भीड़ कॉहि भी स्थिर नही हो, भीड़ लगातार मूवमेंट करते रहे, इसे देखते रहे।
इस अवसर पर अपर समाहर्ता राजस्व, अनुमण्डल पदाधिकारी सदर सहित अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे।
दरअसल प्रेत शिला पहाड़ को भूतों का पहाड़ कहा जाता है।
इस पितृपक्ष मेला में गया के पूर्व जिलाधिकारी राजबाला वर्मा के बाद दूसरे ऐसे डीएम हैं जो हर व्यवस्था को अपने नजर से देखते हुए निगरानी कर रहे हैं। इसी दौरान व्यवस्था देखने के लिए ही प्रेत शिला पहाड़ पर चढ़कर
डीएम डॉ त्याग राजन, तीर्थ यात्रियों की व्यवस्था का वहां भी लिया जाएजा।
यहां पर अकाल मृत्यु वालों पिंडदान करने का विधान है।इसका वर्णन
वायु पुराण में बताया गया है।प्रेत पर्वत का महत्व इसलिए है कि यहां अकाल मृत्यु को प्राप्त आत्माओं का श्राद्ध व पिण्ड दान किया जाता है। यहां पर एक शिला (पत्थर )के परिक्रमा करते हुए सत्तु (एक प्रकार के खाने का व्यंजन जो मोटे अनाज को मिलाकर और भूनकर एवं पीसकर बनाया जाता है।)
इस दौरान सनातन धर्म के मानने वालों द्वारा पितरों के के उद्धार के लिए यहां श्रद्धा के साथ श्राद्ध किए जाते हैं।जिसके कारण ही बिहार का गया क्षेत्र एकमात्र तीर्थ माना गया है। यहां श्राद्ध और तर्पण करने से पितरों को तृप्ति मिलती है तथा उनका मोक्ष भी हो जाता है।
महाभारत में वर्णित गया में खासतौर से धर्मराज यम, ब्रह्मा, शिव एवं विष्णु का वास माना गया है। वायुपुराण, गरुड़ पुराण और महाभारत जैसे कई ग्रंथों में गया का महत्व बताया है। कहा जाता है कि गया में श्राद्धकर्म और तर्पण के लिए प्राचीन समय में पहले विभिन्न नामों के 365 वेदियां थीं। जहां पिंडदान किया जाता था। इनमें से अब 48 ही बची हैं। वर्तमान में इन्हीं वेदियों पर लोग पितरों का तर्पण और पिंडदान करते हैं। यहां की वेदियों में विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी के किनारे और अक्षयवट पर पिंडदान करना जरूरी माना जाता है। इसके अलावा वैतरणी, प्रेतशिला, सीताकुंड, नागकुंड, पांडुशिला, रामशिला, मंगलागौरी, कागबलि आदि भी पिंडदान के लिए प्रमुख है। इन्हीं वेदियों में प्रेतशिला भी मुख्य है। हिंदू संस्कारों में पंचतीर्थ वेदी में प्रेतशिला की गणना की जाती है।