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ख्वाहिश नहीं, मुझे मशहूर होने की

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        _आप मुझे “पहचानते” हो,_
        _बस इतना ही “काफी” है।_😇
_अच्छे ने अच्छा और_
_बुरे ने बुरा “जाना” मुझे,_
        _जिसकी जितनी “जरूरत” थी_
        _उसने उतना ही “पहचाना “मुझे!_
_जिन्दगी का “फलसफा” भी_
_कितना अजीब है,_
        _”शामें “कटती नहीं और_
  -“साल” गुजरते चले जा रहे हैं!_
_एक अजीब सी_
_’दौड़’ है ये जिन्दगी,_
   -“जीत” जाओ तो कई_
 -अपने “पीछे छूट” जाते हैं और_
_हार जाओ तो,_
_अपने ही “पीछे छोड़ “जाते हैं!_😥
_बैठ जाता हूँ_
_मिट्टी पे अक्सर,_
        _मुझे अपनी_
        _”औकात” अच्छी लगती है।_
_मैंने समंदर से_
_”सीखा “है जीने का तरीका,_
        _चुपचाप से “बहना “और_
        _अपनी “मौज” में रहना।_
_ऐसा नहीं कि मुझमें_
_कोई “ऐब “नहीं है,_
        _पर सच कहता हूँ_
        _मुझमें कोई “फरेब” नहीं है।_
_जल जाते हैं मेरे “अंदाज” से_,
_मेरे “दुश्मन”,_
   -एक मुद्दत से मैंने_
       _न तो “मोहब्बत बदली”_
      _और न ही “दोस्त बदले “हैं।_
_एक “घड़ी” खरीदकर_,
_हाथ में क्या बाँध ली,_
        _”वक्त” पीछे ही_
        _पड़ गया मेरे!_😓
_सोचा था घर बनाकर_
_बैठूँगा “सुकून” से,_
  -पर घर की जरूरतों ने_
        _”मुसाफिर” बना डाला मुझे!_
_”सुकून” की बात मत कर-
-बचपन वाला, “इतवार” अब नहीं आता!_😓😥
_जीवन की “भागदौड़” में_
_क्यूँ वक्त के साथ, “रंगत “खो जाती है ?_
  -हँसती-खेलती जिन्दगी भी_
        _आम हो जाती है!_😢
_एक सबेरा था_
_जब “हँसकर “उठते थे हम,_😊
  -और आज कई बार, बिना मुस्कुराए_
        _ही “शाम” हो जाती है!_😓
_कितने “दूर” निकल गए_
_रिश्तों को निभाते-निभाते,_😘
        _खुद को “खो” दिया हमने_
        _अपनों को “पाते-पाते”।_😥
_लोग कहते हैं_
_हम “मुस्कुराते “बहुत हैं,_😊
        _और हम थक गए_,
        _”दर्द छुपाते-छुपाते”!😥😥
_खुश हूँ और सबको_
_”खुश “रखता हूँ,_
        _ “लापरवाह” हूँ ख़ुद के लिए_
 -मगर सबकी “परवाह” करता हूँ।
_मालूम है_
कोई मोल नहीं है “मेरा” फिर भी_
   कुछ “अनमोल” लोगों से
   “रिश्ते” रखता हूँ।*
#संकलित

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