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जीबीएम कॉलेज में “नाटक में अभिनय की प्रक्रिया” विषय पर व्याख्यान-सह-लघु कार्यशाला का आयोजन

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गया। गौतम बुद्ध महिला कॉलेज में आईक्यूएसी एवं हिन्दी विभाग के संयुक्त संयोजन में दिनांक 14 सितंबर, 2024 से 30 सितंबर, 2024 तक मनाये जा रहे हिन्दी पखवाड़े के तहत “नाटक में अभिनय की प्रक्रिया” पर एक-दिवसीय व्याख्यान-सह-लघु कार्यशाला का आयोजन हुआ। कार्यक्रम का शुभारंभ प्रभारी प्रधानाचार्य डॉ. सहदेब बाउरी, मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित जगजीवन महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. प्रदीप कुमार, जीबीएम कॉलेज के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. प्यारे माँझी, असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुरबाला कृष्णा, डॉ सुनीता कुमारी, अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डॉ. कुमारी रश्मि प्रियदर्शनी, वनस्पति विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ रुखसाना परवीन एवं अन्य प्रोफेसर्स ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलन करके किया। डॉ. सुरबाला कृष्णा ने प्रभारी प्रधानाचार्य डॉ. बाउरी एवं मुख्य वक्ता डॉ प्रदीप कुमार का स्वागत अंगवस्त्र पहना कर किया। हिन्दी विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ सुनीता कुमारी ने कार्यक्रम की रूपरेखा पर प्रकाश डाला। हिन्दी विभाग की छात्रा आशु, मानसी, श्वेता, अनुष्का शर्मा, आकांक्षा, शैली पाठक, दीपशिखा मिश्रा, श्रुति एवं नैना ने “हिन्दी भाषा, राष्ट्र की भाषा’ एवं पिंगा गं पोरी…लटपट-लटपट कमर दामिनी, अधर रागिनी, हो…” गीतों पर सामूहिक नृत्य की प्रस्तुति दी। छात्राओं ने कविता एवं गीतों की भी प्रस्तुति दी। मंच का संचालन करते हुए डॉ प्यारे मांझी ने छात्राओं से अमीर खुसरो द्वारा लिखी गयी पहेलियाँ पूछीं।
मुख्य वक्ता डॉ. प्रदीप कुमार ने कुशल अभिनय के लिए अच्छे संप्रेषण को अनिवार्य शर्त बताया। मंचन के बिना नाटक को अधूरा बतलाते हुए डॉ. प्रदीप ने छात्राओं के समक्ष विभिन्न परिस्थितियाँ देकर आशु अभिनय करने कहा। उन्होंने कुशल अभिनेता बनने के लिए व्यक्तित्व की महानता और तथा संवेदनशीलता को जरूरी ठहराया। कहा कि देखना (अॉबजर्वेशन), कल्पना करना (इमैजिनेशन) एवं प्रकटीकरण अथवा संप्रेषण (एक्सप्रेशन) अच्छे अभिनय के लिए आवश्यक तत्व हैं। कार्यक्रम को संबोधित करती हुई कॉलेज पीआरओ डॉ. रश्मि प्रियदर्शनी ने हिन्दी को समग्र हिन्दुस्तान के हृदय की भाषा बतलाया, जो देश की स्वतंत्रता को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए अत्यावश्यक है। डॉ. रश्मि ने अपने स्वरचित मुक्तक “हृदय की प्यास है हिन्दी, हृदय की भूख है हिन्दी। विटप है यह वतन, तो कोकिला की कूक है हिन्दी। ये तुलसी-सी सुखद, पावन; प्रबल दिनकर सरीखी है। विचारों, भावनाओं से सजा संदूक है हिन्दी” द्वारा कहा कि हम सभी के सामूहिक प्रयत्न से ही हिन्दी राजभाषा से राष्ट्रभाषा बन सकेगी। हिन्दी की दुर्दशा के लिए अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं को दोष देते रहने की जगह हिन्दी के उत्थान हेतु मनसा वाचा कर्मणा प्रयत्न करना चाहिए। नैक समन्वयक डॉ शगुफ्ता अंसारी ने हिन्दी व्याकरण पढ़ते रहने की जरूरत पर बल दिया, ताकि बोलते, पढ़ते और लिखते समय त्रुटियाँ कम हों।
उर्दू विभाग की नवनियुक्त सहायक प्राध्यापिका डॉ नुर्द्रुतुन निशा ने हिन्दी और उर्दू को बहन बताते हुए चर्चित शेर “उर्दू और हिन्दी में बस फ़र्क है इतना, हम देखते हैं ख्वाब, वो देखते हैं सपना” पढ़ा। कार्यक्रम में मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष प्रीति शेखर ने इमोशनल डेवलपमेंट के लिए भाषा के महत्व पर प्रकाश डाला। डॉ बनिता कुमारी ने कहा कि हिन्दी भाषा का प्रयोग करते समय अत्यंत सावधान रहना चाहिए। उसे तोड़-मरोड़ कर बोलने से बचना चाहिए। प्रभारी प्रधानाचार्य डॉ सहदेब बाउरी ने हिन्दी विभाग को एक लाभप्रद व्याख्यान-सह-कार्यशाला के आयोजन हेतु  हार्दिक शुभकामनाएं दीं। प्रतिभागी छात्राओं को प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में डॉ प्रियंका कुमारी, डॉ. फरहीन वज़ीरी, डॉ जया चौधरी, डॉ. सीता, डॉ. अमृता कुमारी घोष, डॉ. पूजा राय, डॉ. शुचि सिन्हा, डॉ. आशुतोष कुमार पांडेय, डॉ. सीता की उपस्थिति रही। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सुरबाला कृष्णा ने किया।

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