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दिव्यांगता को पराजित करने वाले निक वुजिसिक अद्वितीय जिजीविषा व संघर्ष के प्रतीक हैं– सीताराम गुप्ता,

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यदि कोई बच्चा विकलांग ही पैदा हो तो उसके माता-पिता पर क्या बीतेगी इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं। ऐसी स्थिति में हर कोई निराशा से भर उठेगा और अपनी क़िस्मत के साथ-साथ भगवान को भी कोसने लगेगा। हर कोई यही कहेगा कि ऐसे बच्चे
के तो पैदा होते ही उसका मर जाना अच्छा। निक के जन्म के समय उसके माता-पिता की भी बिलकुल यही मनोदशा थी। जब निक पैदा हुआ तो वो स्वस्थ होते हुए भी पूर्णतः अपूर्ण था क्योंकि न तो उसके हाथ ही थे और न पैर ही। बिना हाथ-पैरों के इंसान की कल्पना करके ही रूह काँपने लगती है। बचपन में गाँव में कई बार सुनने में आता था कि किसी के यहाँ ऐसा बच्चा पैदा हुआ है जिसके हाथ-पैर ही नहीं हैं। ऐसे बच्चे देर तक जीवित नहीं रह पाते थे। आज सोचता हूँ तो ऐसा लगता है कि जीवित नहीं रह पाते थे ऐसा नहीं था अपितु इस डर से कि ये कैसे पले-बढ़ेगा और जीवन व्यतीत करेगा उसे जीवित ही नहीं रहने दिया जाता था। संभावना यही है कि ऐसे बच्चों को जन्म के बाद या तो मार दिया जाता होगा या मरने के लिए भूखा छोड़ दिया जाता होगा। यह असंभव नहीं क्योंकि जहाँ सर्वांग संपूर्ण व स्वस्थ बालिकाओं तक को नहीं बख्शा जाता वहाँ एक पूर्णतः विकलांग के साथ तो क्या कुछ नहीं किया जा सकता है? लेकिन उपेक्षा के बावजूद निक के साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ। निक का बचपन: ये निक कौन हैं जिनकी चर्चा की जा रही है? निक का पूरा नाम निकोलस जेम्स वुजिसिक है। निक का जन्म चार दिसंबर सन् 1982 को ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में हुआ था। उनके पिता बोरिस्लाव वुजिसिक तथा माँ दुशांका वुजिसिक मूल रूप से यूगोस्लाविया के सर्बिया के थे और यहाँ ऑस्ट्रेलिया में आ बसे थे। ऑस्ट्रेलिया में बोरिस्लाव वुजिसिक एक अकाउण्टेंट के तौर पर काम करने लगे तथा दुशांका वुजिसिक बच्चों के एक हास्पिटल में नर्स बन गईं। जन्म के समय टेट्रा अमेलिया सिंड्रोम के कारण निक के हाथ-पैर पूरी तरह से ग़ायब थे। टेट्रा अमेलिया सिंड्रोम से पीड़ित इस समय पूरे विश्व में केवल सात ही व्यक्ति ज़िंदा हैं जिनमें से निक एक हैं। निक के जन्म के समय जब नर्स उसे लेकर उसकी मां के पास आई तो उसने उसे लेने से ही नहीं देखने तक से मना कर
दिया। लेकिन बाद में माता-पिता ने परिस्थितियों को स्वीकार कर लिया और निक की परवरिश में लग गए। संघर्ष का प्रारंभ व आत्महत्या का प्रयास: निक के जन्म के समय उसके केवल एक पैर के स्थान पर कुछ जुड़ी हुई उँगलियाँ मात्र थीं। डॉक्टरों ने ऑपरेशन करके निक की उँगलियों को अलग-अलग कर दिया ताकि वो उनकी सहायता से हाथों की उँगलियों की तरह चीज़ों को पकड़ने, पुस्तकों के पन्ने पलटने व दूसरे बहुत ज़रूरी कार्य किसी तरह से कर सके। आज निक इधर-उधर जाने के लिए इलैक्ट्रिक व्हील चेयर का इस्तेमाल करते हैं। चाहे इलैक्ट्रिक व्हील चेयर से कहीं जाना हो अथवा कम्प्यूटर या मोबाइल फोन का प्रयोग करना हो निक अपने पैर की उँगलियों से ही सारा काम करते हैं। सोचिए निक को ये सब सीखने और करने में कितना कष्ट हुआ होगा। यदि किसी के दोनों पैरों में थोड़ा सा भी अंतर हो जाए तो आदमी बिना लंगड़ाए नहीं चल सकता। निक ने कैसे बिना पैरों के शरीर का संतुलन साधना सीखा होगा व कैसे बिना हाथों के काम करना? परेशानियाँ तो एक अच्छे-ख़ासे स्वस्थ व्यक्ति को तोड़कर रख देती हैं। निक को पढ़ाई, खेल-कूद व अपना रोज़मर्रा का काम करने में बड़ी परेशानी होती थी। स्कूल में बच्चे भी उसका मज़ाक़ उड़ाते थे। इन सब चीज़ों से मायूस व दुखी होकर दस वर्ष की उम्र में एक बार निक ने पानी के टब में डूबकर आत्महत्या तक करने की कोशिश की लेकिन बच गए। निक उस घटना को याद करते हुए कहते हैं कि उस समय उन्हें अपना जीवन उद्देश्यहीन और निरर्थक लगता था। जब जीवन में कोई उद्देश्य और उस उद्देश्य को पूरा करने की ताक़त न हो तो अपने अस्तित्व को बचाए रखना असंभव हो जाता है। निक के माता-पिता के प्यार और प्रोत्साहन ने उसे आगे बढ़ने का हौसला प्रदान किया।

आत्मनिर्भरता की ज़िद: निक के माता-पिता उसे हर तरह से आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे। डेढ़ साल की उम्र से ही निक के माता-पिता उसे पानी के टब में छोड़ने लगे ताकि वो तैरना सीख सके। छह साल की उम्र में उसे पंजे की सहायता से टाइप करना सिखाने लगे। विशेषज्ञों की मदद से उन्होंने उसके लिए प्लास्टिक का ऐसा डिवाइस बनवाया जिनकी सहायता से निक ने पैंसिल व पैन पकड़ना व लिखना सीखा। निक के माता-पिता ने निक को स्पेशल स्कूल में भेजने से मना कर दिया। वे चाहते थे कि निक सामान्य स्कूल में सामान्य बच्चों के साथ ही पढ़े। इसमें बहुत सी मुश्किलें आईं लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। सामान्य बच्चों के साथ पढ़ने-लिखने और काम करने का ये लाभ हुआ कि निक उन्हीं की तरह काम करने लगे। पंजे की सहायता से निक ने न केवल पढ़ना-लिखना सीखा अपितु फुटबॉल और गोल्फ़ खेलना व तैरना भी सीखा। निक पंजे की सहायता से ही न केवल ड्रम बजा लेते हैं अपितु मछली पकड़ना, पेंटिंग व स्काई डाइविंग तक कर लेते हैं। मुँह की सहायता से गियर बदलकर निक कार भी आसानी से चला लेते हैं। निक का कहना है, ‘‘अगर आपके साथ चमत्कार नहीं हुआ है तो आप स्वयं एक चमत्कार बन जाइए।’’ एक अत्यंत प्रेरणादायक क्षण: जब निक तेरह साल के थे तो एक दिन उनकी माँ ने अख़बार में प्रकाशित एक लेख निक को पढ़कर सुनाया जिसमें एक विकलांग व्यक्ति के संघर्ष और सफलता की कहानी थी। निक को अहसास हुआ कि दुनिया में वो अकेला विकलांग नहीं है और परिश्रम व संघर्ष द्वारा आगे बढ़ा जा सकता है। उसके बाद उसके जीवन की दिशा ही बदल गई। उसे महसूस हुआ कि ईश्वर ने उसे कुछ अलग करने के लिए ही ऐसी स्थिति में डाला है। उसे तो स्वयं लोगों की प्रेरणा व प्रोत्साहन की ज़रूरत थी लेकिन उसने संकल्प लिया कि वो स्वयं लोगों को प्रेरणा व प्रोत्साहन प्रदान करेगा जिससे लोगों में व्याप्त निराशा व अकर्मण्यता दूर हो सके और वे उत्साहपूर्वक कार्य करते हुए अच्छी तरह से जीवन व्यतीत कर सकें।

एक सफल प्रेरक वक्ता, उद्यमी व अभिनेता: सत्रह साल की उम्र में निक ने एक प्रेरक वक्ता के रूप में कार्य करना प्रारंभ कर दिया। इक्कीस वर्ष की उम्र में निक ने अकाउण्टिंग व फाइनांस में ग्रेजुएशन किया। निक ने 2005 में लाइफ विदाउट लिंब्स नाम से एक अंतर्राष्ट्रीय एनजीओ की स्थापना की। उसके बाद 2007 में एटिट्यूड इज़ एल्टिट्यूड नाम से एक कंपनी खोली और एक प्रेरक
वक्ता के रूप में कार्य करने लगे। 2009 में निक ने एक लघु फिल्म द बटरफ्लाई सर्कस में काम किया और श्रेष्ट अभिनेता का पुरस्कार प्राप्त किया। निक अनेक प्रेरक पुस्तकों के लेखक हैं। अब तक वो आठ पुस्तकें लिख चुके हैं। उनकी पहली पुस्तक का नाम है लाइफ़ विदाउट लिमिट्स। लाइफ़ विदाउट लिमिट्स का अब तक तीस भाषाओं में अनुवाद व प्रकाशन हो चुका है जो उनकी लोकप्रियता को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है। आज निक विश्व के एक प्रमुख सफल प्रेरक वक्ता के रूप में जाने जाते हैं। वे
चालीस से अधिक देशों में अपने कार्यक्रम दे चुके हैं। निक अपने कार्यक्रम के लिए जहाँ भी पहुँचते हैं हाल खचाखच भरे होते हैं। वर्ष 2008 में एक वक्तव्य के दौरान निक की मुलाक़ात कनाए मियाहारा से हुई जो प्यार में बदल गई। निक को लगता था कि उनकी
शारीरिक कमी के कारण कभी कोई सामान्य लड़की उनके साथ रहने की बात सोच भी नहीं सकती लेकिन निक के सेंस ऑफ ह्यूमर व दूसरों के लिए कुछ कर गुज़रने की चाहत कनाए मियाहारा को बहुत पसंद आई। बाद में वर्ष 2012 में दोनों ने शादी कर ली। निक आजकल अपनी पत्नी और बच्चों के साथ अमेरिका के कैलिफॉर्निया में रह रहे हैं और अत्यंत संतुष्ट जीवन व्यतीत
कर रहे हैं जो उनकी सकारात्मक सोच व संघर्ष का ही परिणाम है। जो लोग जीवन में छोटी-छोटी परेशानियों से हार मानकर जीवन में संघर्ष करना छोड़ देते हैं उनके लिए निक के प्रेरक वक्तव्य ही नहीं निक का अपना जीवन संघर्ष भी कम प्रेरणास्पद नहीं।
निक के जीवन से सीख लेने की सबसे महत्त्वपूर्ण बात ये है कि जब निक जैसा बिना हाथों व पैरों वाला व्यक्ति जीवन में इतनी ऊँचाई तक पहुँच सकता है तो एक सामान्य व्यक्ति क्यों नहीं?

सीताराम गुप्ता,
ए.डी. 106 सी., पीतमपुरा,
दिल्ली – 110034
मोबा0 नं0 9555622323
Email : srgupta54@yahoo.co.in

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