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दुविधा और चुनाव (ये, वे और जनता)

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।।अ।।
किसे दोष दूँ किसे सराहूँ किसकी जय जयकार करूँ।
दुविधा नहीं मिटाए मिटती कितना ही उपचार करूंँ।।1।।
लो चुनाव आ गए कपट की किलकारी कोरों पर है।
हर नेता कस उठा कमर फिर तैयारी जोरों पर है।।1।।
सबके अपने-अपने मतलब सबके ठिए ठिकाने जी।
सब ने अपनी सांँस रोक कर साधे नये निशाने जी।। 2।।
कोई जोड़ जुगाड़ों में है, कोई जल भुन उबल रहा।
कोई तिकड़म भिड़ा रहा है, कोई दल बल बदल रहा ।।
इधर उधर से ईंटें लेकर रोड़ा रोड़ा जोड़ा है।।
भानुमती ने अपने सुत के हित में कुनबा जोड़ा है।।3।।
यै कहते हैं इस कुनबे ने चोरी कर अन्धेर किया।
वे कहते हैं चण्ड मुण्ड ने पूरा भारत घेर लिया।।4।।
यह कहते कमजोर अकल से सत्ता क्या चल पाएगी ?
सिर पर गुड़ की भेली धरकर क्या चींटी चल पाएगी ??5??
करना हो तो करो सामना गुर्दे में दम लगता है।
खच्चर का खुर खरगोशों के सिर पर बम सा लगता है।।6।।
कुछ तो हुनर दिखाना होगा ऐसे नाम नहीं चलता।
केवल गण्डा बँधवाने से रण में काम नहीं चलता।।7।।
ये कहते हैं साँप चील क्या बिल्ली  और बिलौटे सब।
घात लगा कर बैठे कुर्सी पर आ चूहा बैठे कब।।8।।
उधर मोहिनी माया ममता अपना असर दिखाती हैं।
असल ब्रह्म से दूर जगत को भटकाती भरमाती हैं।।9।।
पहला नेग मिलेगा मुझको ढंग बताने लगती है।
शादी देख बुआ दूल्हे की रंग बताने लगती है।।10।।
बंगाली अधबाला इनको नागिन जैसी लगती है।
अण्डी के जंगल में बिल्ली बाघिन जैसी लगती है।।11।।
नेता को अपना नेता भी, वृद्ध गिद्ध सा लगता है।
जो चुनाव में टिकट दे सके, वही सिद्ध सा लगता है।।12।।
किसको लम्बरदार करूँ किसे अलमबरदार करूँ।
किसका तारण तार करूँ मैं, किसका बण्टाढार करूँ।।13।।
किसे दोष दूँ किसे सराहूँ, किसकी जय जयकार करूँ।
दुविधा नहीं मिटाए मिटती, कितना ही उपचार करूँ।।14।।
।।ब।।
गली गली से हुए इकट्ठे,  बाँधे पट्टे निकले हैं।
अपनी जाति देख गुर्राने , वाले पट्ठे निकले हैं।।1।।
जितनी ताकत है दोनों में , उतनी धूम मचायेंगे ।
जितनी पूँछ उठा सकते हैं , उतनी पूँछ उठायेंगे।।2।।
धरती खोद रहे पैरों से, इक इक टाँग उठा ली है।
गुर्राहट बढ़ रही कि गुत्थम गुत्थी होने वाली है।।3।।
कुछ भौं भौं करके भागेंगे, कुछ इस रण को जीतेंगे।
बुरी तरह कुछ चिथ जायेंगे, बुरी तरह कुछ चीथेंगे।।4।।
जितनी जबर खुदाई होगी, उतनी लोथल खतरे में।
जितना अधिक जिन्न उछलेगा, उतनी बोतल खतरे में।।5।।
बेशर्मों में शर्म न मिलती, करुणा नहीं कसाई में।
माँ के मन में बैर न मिलता, मिरची नहीं मिठाई में।।6।।
अकली कुछ ऐसे हावी हैं नकली असली लगते हैं ।
और असलियत वाले असली सचमुच नकली लगते हैं।।7।।
फिर भी चाल चलन से सबके, गुण लक्षण दिख जाते हैं।
झूठ साँच से परदे उठते, क्षण बेक्षण दिख जाते हैं।।8।।
कम शक्कर के पेड़े हों तो , भी पेड़े ही लगते हैं।
टेढ़े मुँह अच्छे दर्पण में ,भी  टेढ़े ही लगते हैं।।9।।
सत्ता के मद में आकर , जो खुद को अन्धा कर बैठे।
दिगम्बरों की दुनिया में ,धोबी का धन्धा कर बैठे।।10।।
इस अन्धेपन में ही अक्सर, अपनी खोट नहीं दिखती।
वोट दिखाई देता पर, वोटर की चोट नहीं दिखती।।11।।
हर सवाल का उत्तर आता, फिर बवाल रुक जाता है।
द्वारपाल की तरह बिचारा, महाकाल झुक जाता है।।12।।
किसे आर या पार करूँ, किसे बीच मँझधार करूँ।
किसको धार पार करवा दूँ, किसकी धार उतार करूँ।।13।।
किसे दोष दूँ किसे सराहूँ , किसकी जय जयकार करूँ।
दुविधा नहीं मिटाए मिटती, कितना ही उपचार करूँ।।14।।
।।स।।
अर्थ बाण चढ़ गए धनुष पर, खुलने लगे खजाने जी।
खुलने लगे खजाने फिर तो ,लगने लगे निशाने जी।।1।।
लगने लगे पराए अपने , जुटने लगे पटाने में।
ऐसी दरियादिली कि अब तक , देखी नहीं ज़माने में।।2।।
बकरी से कह उठे भेड़िए , चल नाले के पार चलें।
हरी हरी है घास वहीं पर ,जम कर खेलें खूब चरें।।3।।
जमने लगे चिलमची तनकर , फूँक छपाके लेती है।
दम भरकर दम मार रहे दम, चिलम लपाके लेती है।।4।।
बँटी रेवड़ी अपने खुश हैं, अन्धों की दिलदारी पर।
कौए तक ले उड़े कमीशन , कोयल की किलकारी पर।।5।।
जब से माँग बढ़ी ककड़ी की , तरबूजों को बुरा लगा।
तरबूजों के भाव सुने तो , खरबूजों को बुरा लगा।।6।।
बिना बुलाये घेर रहे घर, स्वागत की है लाचारी।
थोड़ा सा कुंकू चावल है, भीड़ परीतों की भारी।।7।।
माँग रहे सब अपनी पूजा, यूँ खुलकर मत दान करो।
इसको मत दो उसको मत दो, बस मुझको मतदान करो।।8।।
उछल कूद कर रहे भयंकर, डरी बहू ने टोका है।
धीरे खेलो अरे देवता, वैसे ही घर छोटा है।।9।।
जैसा भूत भवानी वैसी , जैसा भगत जुगत वैसी।
जैसा धुआँ धूप अज्ञारी, कला गुलाँट चपत वैसी।।10।।
तगड़ा भूत भगत दुबला सा, अटका पटकी ठीक नहीं।
सिर्फ भभूत दूर से फैंको, झूमा झटकी ठीक नहीं।।
मैं  भी चला गया भोजन पर, एक रोज अँधियारे में।
सिर्फ चुड़ैलें ही बैठीं थीं , भूतों के भण्डारे में।।12।।
अब क्या हाहाकार करूँ , या फिर करुण पुकार करूँ।
या फिर भूत बना लूँ खुद को खुद भुतहा परिवार  करूँ।।13।।
किसे दोष दूँ किसे सराहूँ , किसकी जय जयकार करूँ ।
दुविधा नहीं मिटाए मिटती , कितना ही उपचार करूँ।।14।।
गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
‘वृत्तायन’  957 – स्कीम नं. – 51
इन्दौर , ( म.प्र. ) पिन -452006
9424044284
6265196070

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