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पतियों को छोड़कर अपने समुदायों में लौट रही हैं मैतेई-कुकी महिलाएं, मणिपुर हिंसा का सबसे बुरा दौर

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इंफाल/नई दिल्ली: मणिपुर हिंसा मामले में एक दूसरी मार्मिक पारिवारिक-सामाजिक समस्या भी सामने आने लगी है। इसमें जहां लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट गहराने लगा है। वहीं मैतेई और कुकी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली जिन महिलाओं की शादियां एक-दूसरे समुदाय में हुई हैं। हिंसा के दौरान वह महिलाएं अपने मैतेई और कुकी ससुराल को छोड़कर अपने-अपने समुदाय के मायके में जा रही हैं। मणिपुर के लोगों का कहना है कि इसमें ऐसा नहीं है कि वह नाराज होकर जा रही हैं, बल्कि उनके पति और ससुराल वाले ही उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ऐसा कर रहे हैं। इससे दोनों समुदायों के परिवार खासतौर से इनके बच्चे सफर कर रहे हैं।

लाइफ अंडर कर्फ्यू हुई
मामले में इंफाल में रहने वाले हेओरोकचैम ए का कहना है कि मणिपुर में जिस तरह के हालात चल रहे हैं। उसे देखते हुए यहां ‘लाइफ अंडर कर्फ्यू’ की तरह ही हो गई है। लोगों के आने-जाने पर कर्फ्यू, इंटरनेट और डिजिटल सिस्टम पर कर्फ्यू। लोग अपने घरों से बाहर निकलते हुए डर रहे हैं। बड़े और वीआईपी लोगों को छोड़ दें तो इनके नीचे वाली कैटेगिरी के परिवारों में अगर किसी की मैतेई की पत्नी कुकी है और किसी कुकी की पत्नी मैतेई है, तो सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लोग अपनी-अपनी पत्नियों को उनके समुदाय में भेज रहे हैं। ताकि कम से कम अगर कहीं हिंसा हुई तो उनकी जिंदगी को तो कोई खतरा नहीं होगा। हिंसा रूकने पर यह वापस तो आ जाएंगी, लेकिन इस दौरान दोनों समुदाय के परिवार और इनके बच्चे बहुत सफर कर रहे हैं।

हिंसा ने सबकुछ अस्त-व्यस्त किया
यहीं जिस जिरीबाम इलाके से मई 2023 के बाद अब फिर से हिंसा भड़की। वहां रहने वाली जानकी का कहना है कि डेली रूटीन सारा बिगड़ गया है। बिजनेस नहीं है, खाने-पीने की भी समस्या होने लगी है। लोग एक-दूसरे से मदद मांग कर घर चलाने पर मजबूर हो रहे हैं। कर्फ्यू में ढील मिलने के बावजूद आम लोग बेहद जरूरी काम के लिए बाहर निकल रहे हैं। बाहर इस बात का बड़ा खतरा है कि कब प्रदर्शनकारी भीड़ किसी को निशाना बना डाले। जहां मई 2023 से पहले तक मैतेई और कुकी के कितने ही लोगों के बीच पारिवारिक संबंध और दोस्ती थी। अब उनकी गर्माई कम होती दिखाई देने लगी है। इंटरनेट बंद होने का भी बड़ा फर्क पड़ रहा है। सोशल मीडिया ग्रुप पर बातचीत नहीं हो पा रही।
उन्होंने यह भी बताया कि यहां पिछले कुछ समय से जो सरकारी राशन मिलता था, वह भी नहीं मिल रहा। दुकानें बहुत कम समय के लिए खोली जा रही हैं। यहीं मणिपुर की एक और महिला ने बताया कि उनके अंकल प्राइवेट बस के ड्राइवर हैं। वह मैतेई हैं। लेकिन समस्या यह है कि अब वह बस नहीं चला पा रहे, क्योंकि पहाड़ी इलाके कुकी बहुल हैं। और वहां बस ले जाना जिंदगी के साथ सीधा खिलवाड़ है। अब बस नहीं चला पाने की वजह से जो हर दिन का मेहनताना मिलता था, वह रूक गया है। इससे घर चला पाना बहुत मुश्किल हो रहा है।

 

अधिक खतरनाक है इस बार की हिंसा
मणिपुर के लोगों का कहना है कि इस बार की हिंसा पिछले साल की हिंसा से कहीं अधिक खतरनाक है। यह कहना सही होगा कि इस बार मणिपुर के हालात ‘युद्ध’ जैसे लग रहे हैं। हिंसा प्रभावित इलाकों में हर तरफ हथियारों से लैस केंद्रीय सशस्त्र बल दिखाई देते हैं। हिंसा करने वाले उपद्रवी भी आधुनिक हथियारों का इस्तेमाल कर रहे हैं। लगता है जैसे कोई जंग चल रही हो। लोगों में कोविड के समय जैसा भय का माहौल बनता जा रहा है। लोग अपने घरों से बाहर निकलने में डर रहे हैं। जहां बच्चे खेलते हुए दिखाई देते थे, अब वहां सन्नाटा छाया रहता है। लोगों का कहना है कि मैतेई और कुकी समुदायों के बीच इस हिंसा का स्थायी निपटारा जरूरी हो गया है। इसमें राजनीतिक सकारात्मक सोच सबसे जरूरी है, तभी यहां समस्या का कोई समाधान निकल सकता है। वरना हालात कभी सामान्य तो कभी ऐसे ही चलते रहेंगे।

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