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अभी कोलकाता से पटना की फ्लाइट पकड़ने के लिए बोर्डिंग गेट पर बैठा था और भी बहुत सारे लोग थे। मेरे सामने की कुर्सी पर एक व्यक्ति अर्द्धनिद्रा में थे। उनके नाखून और तेल से भीगें बाल बता रहे थे कि बहुत मेहनत वाला काम करते होंगे।
जब नींद खुली तो उन्होंने फ्लाइट के बारे में पूछा। यह भी जाना कि मैं भी पटना ही जा रहा हूँ। बात बढ़ी, तब सामने वाले ने बताया कि बेंगलूरु से आ रहा हैं और पटना जाना है फिर मधुबनी जाएंगे। मधुबनी के बाबूबरही में राजाबलिगढ़ गांव के रहने वाले हैं। उन्होंने अपना नाम विद्यानंद यादव बताया।
मैंने पूछा, बेंगलूरु में क्या करते हैं? तो वह बोले- “बेंगलूरु के वीटीएम इलाके में पान दुकान चलाता हूँ। अब तीन पान दुकानें हैं, तीन भाई हैं, सभी एक-एक देखते हैं।”
फिर विद्यानंद यादव ने जो कहानी बताई, वह सलाम-प्रणाम करने लायक है।
बिहारी कितने कर्मयोगी होते हैं इसका प्रमाण है। विद्यानंद ने बताया-
“2002 में घर से निकला था, उम्र कम थी। कोलकाता के बड़ा बाजार में आया, होटल में बर्तन मांजने का काम करने लगा। लेकिन काम करते-करते मिठाई बनाना सीख गया और फिर हलवाई बन गया। अगले चार साल कैटरर के साथ काम करता रहा। 2500 रुपये औसतन कमाता रहा। फिर लुधियाना गया, वहां भी मिठाई बनाता रहा।
तभी गांव के कुछ लोगों ने बेंगलूरु चलने को कहा। बहुत लोग पहले से बेंगलूरु में थे तो बेंगलूरु गया। कुछ दिनों में जरूरत को समझा और पान की पहली दुकान विजय नगर में खोली।
दुकान चल गई!!
हिम्मत बढ़ाकर फिर गांव में रह रहें दोनों भाइयों को भी बुला लिया। अब तीन दुकानें हो गई है।”
कमाई के बारे में विद्यानंद ने बताया कि अमुमन 15 से 20 हजार रुपये की बिक्री एक दुकान से हो जाती है। सभी तीन दुकानों की यही स्थिति है। किराया और अन्य खर्च काटकर भी दुकानों से 2 लाख रुपये से कम महीने की कमाई नहीं है।
जिंदगी अब ठीक है।
विद्यानंद ने बताया, बेंगलूरु में अब फ्लैट भी लेना है। कमाई से नानीघर में मकान बनाया है। मां-बाबूजी सबका ख्याल रखना पड़ता है, मंदिर बनाने में योगदान करते हैं, यज्ञ भी कराते हैं।
बेंगलूरु के वीटीएम इलाके के बारे में विद्यानंद ने बताया कि वहां बहुत सारे बिहारी हैं। मधुबनी वाले भरे हैं, लगता ही नहीं है कि हम बिहार से दूर हैं।
कोई डर-भय नहीं लगता लेकिन बिहार अपनी मिट्टी है। इसलिए लगाव कभी छूट नहीं सकता।
साभार- ज्ञानेश्वर फेसबुक