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भावी भारत की गौरवशाली तस्वीर — अवधेश कुमार 

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सभी 11 स्वतंत्रता दिवस संबोधनों को देखें तो आपको उसमें देश को लेकर किसी स्तर पर निराशा या नकारात्मकता की झलक नहीं दिखाई देगी। लाल किला से बोलते हुए उन्होंने हमेशा यह ध्यान रखा कि स्वतंत्रता दिवस का संबोधन लोगों के अंदर देश के लिए जिम्मेदारीपूर्वक काम करने और हर परिस्थिति में साहस और संकल्प बनाए रखने की प्रेरणा दें। 15 अगस्त , 2024 के लाल किले के संबोधन पर ही दृष्टि दौड़ाएं तो कहीं भी ऐसा नहीं लगेगा कि प्रधानमंत्री मोदी पर भाजपा के बहुमत से पीछे रह जाने और गठबंधन सरकार की विवशताओं का रंच मात्रा भी प्रभाव है। पूरा भाषण देश को यह विश्वास दिलाने पर केंद्रित रहा कि सरकार भारत को हर दृष्टि से विकसित राष्ट्रों की कतार में खड़ा करने के लिए कमर कसकर काम कर रही है और आम लोगों का भी साथ तथा सहयोग प्राप्त है जिसे और सशक्त करने की जरूरत है। भारत के लोगों की आम मानसिकता आत्मकेंद्रित हुई है, संयुक्त परिवारों के लगभग खत्म हो जाने के कारण लोग धीरे-धीरे अकेले होते जा रहे हैं तथा गांव से शहर की ओर जाने की प्रवृत्ति जबरदस्त रूप से तेज है। इसमें सामूहिक जीवन और मिलकर एक दूसरे का सहयोग करने तथा राष्ट्र निर्माण में भूमिका निभाने की उस रूप में संभावनाएं क्षीण हुई हैं जिनकी कल्पना हमारे आजादी के पूर्व और उसके बाद कुछ समय तक महापुरुषों ने की थी। ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसका पता नहीं है। बावजूद वह कह रहे हैं कि 40 करोड लोग खड़े हुए तो हमने स्वतंत्रता पा ली और जब आज 140 करोड़ हैं तो निश्चित रूप से देश को विकसित राष्ट्र बनाएंगे तो उसके पीछे वर्तमान स्थिति के अंदर संभावनाएं देखना और लोगों को इसी स्थिति में प्रेरित करना ही व्यवहारिक रास्ता बचता है।

 नरेंद्र मोदी के आलोचकों की दृष्टि में उनके भाषणों में सपनों और कल्पनाओं का ऐसा भावुक शब्द चित्रण होता है जिसमें लोग मोहित हो जाते हैं। सच यह है कि उसी के आधार पर देश को किसी काम के लिए या स्वयं व्यक्तिगत जीवन में भी सफल होने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। प्रत्येक स्वतंत्रता दिवस प्रधानमंत्री के लिए केवल अपने किए गए कार्यों के विवरण के प्रस्तुति का मंच नहीं बल्कि भविष्य के सपने और उसके पूरा करने का आत्यविश्वास दिलाने का सबसे बड़ा अवसर होता है। वास्तव में 78 में स्वतंत्रता दिवस पर अपने संबोधन से उन्होंने कुल मिलाकर भारत और भारत के बाहर भी लोगों को यह विश्वास दिलाया कि भारत समग्र रूप में विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में अग्रसर है और  इसे निर्धारित समय पर प्राप्त करके रहेगा। वर्तमान वैश्विक ढांचे में विकसित राष्ट्र की परिभाषा क्या है? अर्थव्यवस्था के वैश्विक मानकों पर खरा उतरना , शिक्षा के क्षेत्र में मूलतः सामान्य, तकनीकी एवं प्रोफेशनल संस्थाओं और उनके प्रदर्शनों को विश्व मानकों के अनुरूप लाना, रक्षा क्षेत्र में न केवल ज्यादा से ज्यादा आत्मनिर्भर होना बल्कि विश्व बाजार में सामग्रियों के विक्रय की प्रतिस्पर्धा में टिकना, आम लोगों का जीवन स्तर का निर्धारित मानक प्राप्त करना आदि आदि। प्रधानमंत्री के संबोधन का बहुत बड़ा भाग इसी पर केंद्रित था कि कैसे हमने अर्थव्यवस्था को विश्व मानकों के अनुरूप प्रगति के पथ पर लाया है और भारत की गिनती दुनिया की 5 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में हो रही है जो शीघ्र तीसरे स्थान पर पहुंच जाने वाली है। उन्होंने विश्व भर के निवेशकों को विश्वास दिलाया कि हमने  निवेश एवं कारोबार की दृष्टि से आर्थिक, कानूनी, वित्तीय, व्यावसायिक आदि क्षेत्र में सुधार से ऐसे ढांचा निर्मित कर दिए हैं जिसमें आपके लिए परेशानी और जोखिम के लिए जगह न के बराबर है। आगे भी करते रहेंगे। देश के अंदर उद्यमियों को प्रोत्साहित करने तथा नए लोगों को स्टार्टअप या अनुसंधानों के साथ उद्यमी बनने की भी प्रेरणा उन्होंने दी। इसी में उन्होंने भारतीय बैंकिंग व्यवस्था की चर्चा की कि जब हम आए थे तो बैंक कितनी दुर्दशा में थे और आज बैंक विश्व के प्रमुख देशों के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।। यह सच भी है। हमारे ज्यादातर बैंक संकट का सामना कर रहे थे और सुधार तथा साहसपूर्वक कदम उठाकर राष्ट्रीयकृत बैंकों की संख्या कम करना, उनको एक दूसरे से मिलाना तथा शेष कदमों के द्वारा वाकई  बैंकिंग व्यवस्था सुदृढ़ है।। यह सुधार और नरेंद्र मोदी सरकार के प्रति भारत एवं बाहर के आम निवेशकों का विश्वास ही है जिसमें हिंडेनबर्ग के वर्तमान रिपोर्ट से पूरा पूंजी बाजार बेअसर रहा। लाल किले से ही उन्होंने रक्षा क्षेत्र में एक आयातक से धीरे-धीरे सामग्री निर्माता और निर्यातक की ओर बढ़ने की भी जानकारी दी।

प्रधानमंत्री मोदी उस विचार से आते हैं जिसमें हिंदुत्व और उस पर आधारित जीवन शैली वाली व्यवस्था का लक्ष्य प्राप्त करना सर्वोपरि है। उन्होंने वर्तमान ढांचे के साथ इनमें कैसे संतुलन बनाया जाए इसकी कोशिश एक सीमा तक की है। स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में उन्होंने स्पष्ट या संकेतों के द्वारा बताया कि कोई भी देश अपनी सभ्यता – संस्कृति और पहचान के साथ विकसित बनेगा तभी वह लंबे समय टिकेगा। इसमें शिक्षा व्यवस्था सबसे महत्वपूर्ण है। मातृभाषा में शिक्षा  मोदी सरकार की शिक्षा नीति में का महत्वपूर्ण स्तंभ है। केवल सामान्य शिक्षा ही नहीं इंजीनियरिंग, मेडिकल ,प्रबंधन, सूचना तकनीक आदि के लिए भी इसमें स्थानीय भाषाओं में शिक्षा का लक्ष्य है। जो प्रतिभायें अंग्रेजी न जानने के कारण कुम्हला कर नष्ट हो जाती हैं उनके पूरी संभावनाओं के साथ खिलने का इसमें अवसर है। इसकी उन्होंने पूरी चर्चा की। ध्यान रखिए हमारे स्वतंत्रता आंदोलन का एक बड़ा सपना मातृभाषा के आधार पर शिक्षा एवं भारत का निर्माण था। हालांकि कांग्रेस का मुख्य नेतृत्व कुछ प्रमुख अंग्रेजी पढ़े-  लिखे लोगों के हाथों में होने के कारण स्वतंत्रता के बाद यह साकार नहीं हो सका लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार नई शिक्षा नीति के साथ धीरे-धीरे पूरे ढांचे में बदलाव की कोशिश कर रही है। जिन लोगों ने शिक्षा नीति पर काम किया है या उसे साकार करने की कोशिशें देख रहे हैं उन्हें विश्वास है कि यद्यपि इस ढांचे में जबरदस्त बाधायें हैं लेकिन सफलता मिलेगी।  किसी भी समाज और राष्ट्र के संपन्न होने में उसका कानूनी ढांचा और न्याय प्रणाली की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । कानून आपके अनुरूप ,आपके समझने लायक और न्याय प्रणाली कम खर्चीली तथा वास्तविक न्याय दिलानेवाली हो तो वह देश कुंठाओं से ऊपर अपनी कानूनी और न्यायिक समस्याओं का समाधान करते हुए आगे बढ़ता रहता है। प्रधानमंत्री ने इसी संदर्भ में 1400 कानूनों को खत्म करने तथा नई न्याय संहिता की चर्चा की। वैसे अभी इसका असर देखा जाना शेष है। एक बार बदलाव का क्रम बढ़ता है तो सुधार की संभावनाएं पैदा होने लगती है।

भारत जैसे देश में लोगों के लिए समान नागरिक कानून नहीं हो तो न संपूर्ण प्रगतिशील समाज का निर्माण होगा और न एक बहुत बड़ा वर्ग विकास की गाथा में अपनी भूमिका निभा सकेगा। सामान्यता समान नागरिक संहिता या कॉमन सिविल कोर्ड को भाजपा या आरएसएस के एजेंडि के रूप में देखा जाता है। हमारे संविधान निर्माताओं ने भी पंथ, मजहब , नस्ल से ऊपर उठकर सबके लिए समान समान नागरिक संहिता का लक्ष्य घोषित किया था। वोट की राजनीति या मुस्लिम समुदाय को लेकर आत्मघाती विचारधारा के कारण यह लक्ष्य साकार नहीं हो सका। इसके बगैर आप विश्व में सम्मानित विकसित और भारत को भारत के रूप में प्रभावी देश नहीं बना सकते। इसलिए प्रधानमंत्री ने अब सांप्रदायिक नागरिक कानून से बाहर निकाल कर सेक्यूलर नागरिक कानून की बात की है। जो सबके लिए समान कानून होगा वही सेक्यूलर होगा। ऐसा नहीं है तो वास्तव में सांप्रदायिक कानून ही है। स्वतंत्रता दिवस संबोधन में इसके उल्लेख और व्याख्या का मतलब है कि प्रधानमंत्री ने देश को स्पष्ट कर दिया है कि हम सब मिलकर इसका मन बनाएं और देश उसकी ओर बढ़े, क्योंकि संपूर्ण समाज की प्रगति और भारत की सुख, शांति समृद्धि के साथ खड़ा होने के रास्ते की बहुत बड़ी बाधा है। यही भारतीय दृष्टि हमारे कृषि क्षेत्र के संदर्भ में भी है। पिछले कई वर्षों से प्रधानमंत्री लोगों को रासायनिक उर्वरकों से निकल कर प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ने का आह्वान कर रहे हैं और सरकार की कृषि सुधार नीतियों में यह शामिल भी है। भारत जैसा देश तभी वाकई विकसित माना जाएगा जब इसकी कृषि व्यवस्था स्वावलंबी होगी। यह तभी संभव है जब रासायनिक खादों, अत्यधिक जल से सिंचाई से बचें तथा ऐसी फसलों को कम उगाएं जिनमें खर्च ज्यादा है। प्राकृतिक खेती इनसे बाहर निकालता है।

 इस तरह देखें तो निष्कर्ष आएगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वतंत्रता दिवस संबोधन से दिखाए गए सपने और संभावनाएं अगर साकार रूप लेंगे तो भारत आने वाले सैकड़ो वर्षों तक सुखी, शांत और समृद्ध राष्ट्र के रूप में विश्व का दिशादर्शन करता रहेगा। वर्तमान ढांचे में विकसित देशों से  सभी आशंकित ,भयभीत रहते हैं। विकसित भारत का चरित्र उससे अलग होगा। यही प्रधानमंत्री ने कहा कि हजार वर्षों का उदाहरण है कि हमसे किसी को खतरा नहीं है। इसमें यह भी निहित है कि हम किसी के लिए खतरे नहीं थे लेकिन हजार वर्षों में हम पर कितने खतरे हुए, हमारे देश को नेस्तनाबूद करने की कोशिशें हुईं और इसके टुकड़े हुए इसका ध्यान रखना आवश्यक है।

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