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मन का फास्ट फूड

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मन का फास्ट फूड: हमारा अस्तित्व इस दुनिया में शरीर और आत्मा से बना है शरीर भौतिकता का प्रतीक है तो आत्मा चेतन नेता का प्रतीक है विचार तरंगों का भोजन की गुणवत्ता पर प्रभाव प्रकृति के पांच तत्वों से बने शरीर का रखरखाव भी पांच तत्वों से ही होता है जिन राशन चारों पोषक तत्वों से बना है वह हमें विनने विनने प्रकार के अनाज सब्जियां फलो से और उससे बने व्यंजनों से प्राप्त होता है उन व्यंजनों के स्वाद अनुभूति रचना भूति शक्ति शक्ति अनुभूति भी होती है भोजन एक महत्वपूर्ण घटक है जो हमारे शरीर को दुरस्त सक्षम बनाए रखता है बेशक भोजन बनाते समय जिस प्रकार की हमारे मनोज स्थिति विचार तरंगे घर का माहौल आपसी संबंधों की स्थिति होती है उसी भी उसका भी भोजन की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है जैसा अन्न वैसा मन भारत की आदिकालीन आत्मा दे संस्कृति भोजन से संबंधित यह शिक्षा हमें देती है कि जैसा अन्न वैसा मन जैसा पानी वैसी वाणी अन्य शुद्ध शुद्ध शुद्ध प्राचीन परिवार प्रणाली में पुरुष धन कमाने घर से बाहर नौकरी धंधा करने जाते और महिलाएं घर परिवार भोजन आदि को संभालने संस्कार करने का कार्य करती थी घर भोजन संबंध इनको इतना महत्व दिया जाता था कि मां बहनों को का काफी समय बल्कि पूरी जिंदगी कुटुंब पालना संस्कार सिंचन और चरित्र निर्माण में सार्थक होती थी इंद्रिय रसों की ओर बढ़ना आकाश आकर्षण आज मनुष्य अपने मूल चेतन आत्म स्वरूप को भूल गए हैं गए हैं परिणाम स्वरूप खुद को शरीर समझने लगे इस प्रकार कारण अब पेट पोषण इंद्री रसों की पुष्टि शारीरिक भोगे वेशभूषा साज-सज्जा के प्रति अधिक ध्यान जाने लगा है अधिकतर उनका समय शक्ति धन उनके प्रति खर्च हो रहा है और उन्हीं चीजों में नवीनता विविधता बहुलता में ताकत लाने में लगा है मानव मन में भी प्रिय है जो चीजें आज वह खाता है कल उसी में नवीनता लाना चाहता है जो साधन आज घर में बसता है थोड़े दिनों में उसे उठ जाता है और दूसरे खरीद कर ले जाता है कुछ और कुछ और चाहिए कि चाहना पड़ गई है मानव मन की ऐसी इच्छा रसोइयों को समझाने वाला लोग व्यापारी बुद्धि से लाभ उठाने का प्रयास करते हैं इस कारण आज लोगों के घर साधनों से भरे रहे हैं और इच्छा है तो अवधूत रूप में बढ़ती ही जाती है उनकी पूर्ति करने के लिए मानव जीवन व्यस्त होता जा रहा है होटल व्यवसाय भूल गए हैं सामाजिक जिम्मेदारी जन स्वास्थ्य की पहले घर का एक सदस्य कमाता था और पूरा परिवार चलता था अब जीवन में सजावट दिखावटी इतनी बढ़ गई कि घर के हर नर नारी को कमाने जाना जरूरी माना जाने लगा है बल अनैतिक तरीके से कमाए लेकिन फैशन परस्ती छोड़ेंगे नहीं घर संभालना बच्चे पालना भोजन बनाना मसाला लाना साफ करना आदि में काफी समय लगाना पड़ता है तो अब लोग सोचने लगे हैं समय भी धन कमाने में क्यों ना लगा दिया जाए भोजन तो होटलों से भी मंगा लिया जा सकता है भोजन बनाने के समय लगाना समय को व्यक्त करना समझा जाने लगा है भोजन बनाने में समय देना फिजूल है ऐसा समझने से भी आग आगे अब तो यह मानसिकता बन गई है कि होटल में या घर में बैठकर भोजन करना पड़े उसमें भी समय क्यों खर्चे करें क्यों नहीं बना बना या भोजन पैक करा कर ले लिया जाए और मूसा फ्री करते हुए ऑफिस में काम करते हुए भी खाया जाए ताकि कमाई करने में ज्यादा समय दे सके भोजन सहजी ही बन जाए जल्द ही बन जाए और सीधा मुंह में डाल दिया जाए बस इतनी मानसिकता से फास्ट फूड को जन्म दिया है आज उसी का बोलबाला हो रहा है होटल वेबसाइट फूड मसाले डालकर स्वाद इंद्रिय को उत्तेजित करने वाले चटपटे भोजन बनाकर लोगों को ललचा कर आकर्षित कर रहे हैं लोगों का स्वस्थ बने या बिगड़े इस सामाजिक जिम्मेदारी को वह भूल बैठे हैं अनंत इस प्रकार के खानपान से अनेक बीमारियां और तकलीफ बढ़ गई है जरूरी है नकारात्मकता के बीज का नाश जैसा शरीर के बारे में हो रहा है वैसा ही आज मन के भोजन आत्मा खुराक के संबंध में भी हो रहा है चैतन्य शक्ति से संबंधित मूल सनातन सत्य का ज्ञान अर्थात ठोस आध्यात्मिक ज्ञान सुनने समझाने और धारण करने के लिए कोई न समय देना चाहता है ना मेहनत करना चाहता है सत्य ज्ञान हमारे आंतरिक जगन का स्पष्ट चित्र बन कर दिखता है मूल सत्य ज्ञान की शक्ति ही आत्मा में अभिनेता जनित कमजोरियों विकृतियों को वशीभूत कर सकता है लेकिन हम स्वयं को बदलना नहीं चाहते जैसे हैं वैसे ही रहने की सुविधा महसूस करते हैं और त्याग तपस्या का कोई पुरुषार्थ नहीं करना चाहते आध्यात्मिकता से दुखों का मितान समापन हो सकता है फिर भी वह माल समय जल्दी स्वीकार करने को तैयार नहीं होते अब सोचने की बात है जिस बीच के कारण नकारात्मक नवकर फल रही है और हम दुखी रोगी हो रहे हैं उसे निकाल निकाल निकालने नहीं तो हम लोग शौक दुख दर्द से मुक्त कैसे होंगे ऊपर ऊपर से घास काटने तो थोड़े दिनों के लिए बगीचा सुंदर बन जाएगा परंतु अनुकूल वातावरण मिलते ही फिर वापस घास फूस उड़ जाएगी इसी प्रकार अल्प समय के लिए ब्रह्म स्तर पर व्यवहार में परिवर्तन करने से हम सदा काल के लिए आधी व्याधि उपाधि को दूर नहीं कर सकते धर्म के नाम पर शोषण बिना मेहनत बिना साधना तपस्या बिना त्याग वैराग्य प्राप्ति कर लेने की लालच दतिया गई दूसरी और धर्म के नाम पर मन गणित काल्पनिक क्रिया कंडोम की वृद्धि करने वाले लोग भी मैदान में आ गए जहां लोग भी होते हैं वहां दूध लोगों की भी कमी नहीं रहती वह भी परमात्मा धर्म भक्ति योग के नाम पर भय लालच देकर ब्रह्मा चार और क्रिया कांड के दुकान खोल आत्मा विलीन विवेक 0 लोगों का शोषण करने लगे ईश्वर भक्ति धर्म आत्म कल्याण के नाम पर इतने क्रिया कर्म करने में समय भी बहुत देना पड़े अब एक तरफ इंद्रिय लुप्त भोपाजी जीवन पद्धति और दूसरी और क्रिया विधि से भरी साधन आधारित धार्मिक नीति रस में कैसे दोनों का जीवन में मेल बैठे अब लोग नीति कथा धार्मिकता के स्तर से उतरकर सिर्फ अपना ग्रस्त धर्म निभाओ कर्तव्य अदा करो कर्म ही पूजा है कि विचारों पर आ गए योग तपस्या छूट गए सिर्फ फर्ज अदा पर आ गए परंतु देह अभिमान मनुष्य दिन प्रतिदिन ज्यादा स्वार्थी स्व केंद्री होने लगे खुद खाओ पियो और मौज करो दूसरों की परवाह नहीं करनी मानवता मूल प्राय हो गए दाना बता सिर पर चढ़ बैठी विश्व परिवार की भावना देशभक्ति मानव सेवा तो दूर रही खुद के माता पिता बंधु भगिनी के प्रति मानव व्यवहार नहीं रहा है मिलावटी फास्ट फूड की आदतें प्रतिष्ठा के हिसाब से कोई ना कोई धर्म या सेवा संस्था से जुड़े रहो धार्मिक आयोजन को खुद की ही बार वही करो और दिखावे मात्र के लिए कथा प्रवचन सुनो इसमें स्तर पर समाज आ गया है ज्ञान के नाम पर कलश वाले कथा कहानियां शेरो शायरियां चुटकुले सुनाए जा रहे हैं और लोग उसी में भीड़ मचाए जा रहे हैं क्योंकि करना तो कुछ ही है नहीं सुनने का सॉन्ग सजना है लोगों का भ्रम बना रहता है कि हम भी धर्म के नाम पूछ कर रहे हैं सुनो सबकी करो किसी की नहीं साधन और मार्ग भले ही गलत हो अनैतिक तौर तरीके से कमाओ दान कर शुद्धि बाबा की जीवन को भोगो के गर्त में धकेल पर जाओ देखिए शुद्ध सत्य ज्ञान की पोस्टिंग खुराक को छोड़ आज हम मिलावट बनावट वाले मन मती फास्ट फूड की आदत बन गए हैं समय की पुकार सुनने में रस आवे और धारण करने में शक्ति विकास ना हो तो ऐसा ज्ञान हमारे में और ही मिथ्याभिमान में पथ दंभ अहम बहन की बीमारियां पैदा करता है सत्य ज्ञान हमें नंबर सेवाभावी त्यागी तपस्वी परोपकारी अंतर्मुखी बनाता है आज पतन का परिमाण आ चुका है संसार पुत्र घोर कलयुग बन गया है मन को केवल केवल बहलाने वाले धर्म के ओढ़े हुए झूठ क्लोवर को और सुपर हिट उसे समान फास्ट फूड को छोड़ना अब जरूरी बन गया है सत्य शक्ति प्रदायक आचार विचार को ही हम आत्मा भोजन बनाएं संतोष भी सत्य भाषी बने और सत्य संसार का निर्माण करने में परमात्मा पिता के मददगार बन जाये -यही समय की पुकार है।

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