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मेरे पिताजी राष्ट्रभक्ति की अलख जगाते रहते थे- तनसुख राठी 

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मैं तनसुख राठी अपने पिताजी के बारे में कुछ लिखना चाहता हूं, मेरे पिताजी राष्ट्र भक्ति की जलती हुई मशाल थे। हर वक्त उनके दिल में राष्ट्रप्रेम की अलख जगती ही रहती थी हर कार्यकर्ता के दिल में राष्ट्रीयता की अलख जगाते हुए देश भक्ति गीत की ज्वाला सुलगाते रहते थे।
अधिकांश मारवाड़ियों के बारे में कहा जाता है कि मारवाड़ी असम में कमाई के लिए आते हैं किसी मेरे पिताजी ने इस कथन को झुठलाते हुए समाज के प्रति समर्पण की भावना से ओतप्रोत अपना संपूर्ण जीवन देश हित में न्योछावर कर दिया ऐसे वीर पुरुष थे  हमारे पिताजी स्मृतिशेष भंवर लाल जी राठी।
    आपका जन्म 1929 में राजस्थान में चुरू जिले में सुजानगढ़ गांव में हुआ था बचपन से ही आपके अंदर देशभक्ति के संस्कार थे वे बाल्य काल से ही संघ के कार्यक्रमों में जाना शुरू कर दिया था उसे आपके साथ में रूपचंद जी नाहटा,रामकुमार जी दाधीच,गिरधारी जी बागड़ा आदि संघ कार्य कर्ताओं के साथ एक टोली के रूप में काम करते थे।
              1945 में मैट्रिक परीक्षा पास करके कोलकाता चले गए 2 साल में 12वीं कक्षा पास की थी।
       1947 में जब देश आजाद हुआ और 1948 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगा तो उन्होंने कोलकाता में ही सत्याग्रह करके गिरफ्तारी दी थी लगभग तीन महीने जेल में रहे उसके बाद 1950 में असम में जोहराट के पास देर गांव चले आए ।
  1952 में संघ कार्य हेतु गुवाहाटी में आए थे अपनी नौकरी के साथ-साथ संघ कार्य करते थे 1960 में गुवाहाटी महानगर में व्यवस्था प्रमुख का कार्यभार संभाला 1965 से 1975 तक असम प्रांतीय व्यवस्था प्रमुख का दायित्व भी निभाया 1968 में श्री कृपात्री जी महाराज ने देशव्यापी गो-हत्या आंदोलन चलाया था उसमें गुवाहाटी से एक जत्था सत्याग्रह के लिए प्रेरित किया जिसमें मेरे पिताजी के साथ केशव देव जी बावरी, कुंदन मल जी मित्तल, धर्म नारायण जी जोशी,तिवारी जी आदि अनेक कार्यकर्ताओं ने दिल्ली में जाकर गिरफ्तारी दी थी।
1970 से असम में संघ के विचारों का एक असमीज भाषा में “आलोक अखबार साप्ताहिक पेपर” निकलता था तो पिताजी ने असम में गांव-गांव में जाकर इस पेपर का का सदस्य बनाया था आलोक प्रेस के लिए कोई भूमि नहीं थी अपनी निजी जमीन हरियाणा भवन के पास जो थी उसे “आलोक  प्रेस”को दान में दे दिया और मान मल जी नाहर जो जोहराट में रहते थे उनको गुवाहाटी में लाकर आलोक में संपादक का कार्य- दायित्व दिया और उन्होंने इस कार्य को आगे बढ़ाया।
    उस समय माननीय ठाकुर राम सिंह जी असम प्रांत के प्रचारक थे उनके साथ में पिताजी एक प्रचारक की भांति प्रवास करके संघ कार्य को गति प्रदान की उस समय श्री गिरधरजी शर्मा,श्री रजनीकांतजी भूमि देवजी गोस्वामी, हरेकृष्णजी भराली और चित्तो बनर्जी के साथ मिल कर संघ कार्य समर्पण की भावना से किया आपका संघ के भूतपूर्व सर संचालक श्री बाला साहब देवरस जी,भाऊरावजी देवरस,श्री गुरु जी माधव राव जी गोलवलकर से इनका घनिष्ठ सम्पर्क था आप संघ की अखिल भारतीय केंद्रीय कारिणी के सदस्य भी थे।
1975 में इंदिरा गांधी ने जब  आपातकाल लगाया था और संघ पर प्रतिबंध लगा दिया तब आपके ऊपर भी गिरफ्तारी का वारंट था पुलिस ने आपके ऊपर 5000 रुपये का इनाम भी रखा किंतु पुलिस आपको पकड़ नहीं सकी थी।
आपातकाल के समय आप असम के जंगलों में रहते थे तभी आपको कैंसर रोग हो गया था तथा 1977 में टाटा मेमोरियल अस्पताल मुंबई में आपका इलाज शुरू हुआ और ऑपरेशन भी हुआ 1977 में डाक्टरों के जवाब देने के बाद राजस्थान आ गए थे तभी 1977 में इनसे मिलने के लिए नागपुर से श्री माननीय भाऊरावजी देवरसजी भी सुजानगढ़ मिलने आए थे और भाजपा के राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री भैरों सिंह जी शेखावत,और श्री ललित किशोर चतुर्वेदीजी, हरिशंकर जी भावड़ा कोटा के के.के. गोयल भी मिलने के लिए आते थे अटलजी बिहारी वाजपेयी से भी घनिष्ठ संपर्क था  वे भी लगातार बीमारी के बारे में हाल-चाल लेते रहते थे।
माननीय श्री सुंदर सिंह जी भंडारी बीकानेर वा जोधपुर विभाग का काम देखते हैं,लक्ष्मण जी सिंह जी व कृष्ण चंद्र जी भार्गव चूरू व नागौर जिला का काम देखते थे भंडार जी के मार्गदर्शन में संघ का कार्य किया था उस समय संघ टोली में रूप चंद जी नाहटा,मदन लाल जी,व्यास मदन लाल जी व्यास, मदन जी वोचीवाल,शंकर लाल जी बगड़िया,दुर्गा जी चोटिया,त्रिलोकजी सोनी गणनायक थे।
     मेरे पिताजी राठी जी के नाम से पूरे असम व राजस्थान में जाने जाते थे  पिताजी संघ कार्य के अलावा विश्व हिंदू परिषद, अखिल भारतीय मजदूर संघ, कल्याण आश्रम जनसंघ, मारवाड़ी पुस्तकालय में भी कार्य किया पिताजी एक कुशल संगठक भी थे और साथ-साथ एक ओजस्वी वक्ता भी थे उनकी बुलंद वाणी दूर-दूर तक गुंजायमान होती थी लोग उनके कथन का शत-प्रतिशत पालन करते थे। उनका एक ही लक्ष्य था कि -:
लक्ष्य तक पहुंचे बिना पथ में पथिक विश्राम कैसा
 अंत में मैं ये दुखद खबर देते हुए कहना चाहूंगा कि 16 जून 1978 में मेरे पिताजी का स्वर्गवास हो गया और धरती से एक सितारा अस्त हो गया उन्होंने शरीर त्याग भले दिया हो लेकिन उनके कर्मों का यशोगान आज भी लोगों की जुबान पर है “राठीजी” नाम लेते ही लोग उनकी तारीफ के पुल बाँधने लगते हैं आज भी आसमान में एक सितारा आसमान में चमकता है ऐसे वीर सपूत मां भारती के लाल थे हमारे पिताजी! उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें कोटि-कोटि सादर नमन।
             आपका अपना बेटा लोकतंत्र सेनानी
                तनसुख राठी, भाई- श्री लक्ष्मी निवास राठी,  प्रमोद राठी श्री लक्ष्मी टेक्सटाइल आठ नंबर राधा बाजार गुवाहाटी, मोबाइल नं.   6001609101

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