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सूरत में ऐतिहासिक राजभाषा सम्मेलन का हुआ भव्य समापन, रूप अनेक ईश्वर एक, भाषाएं अनेक भाव एक- चमू कृष्ण शास्त्री

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राजभाषा के मंच पर छा गए पुलिस कमिश्नर अजय तोमर

द्वितीय अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन 2022 सूरत से विशेष प्रतिनिधि दिलीप कुमार द्वारा:

भव्य ऐतिहासिक राजभाषा सम्मेलन सूरत में हुआ संपन्न
रूप अनेक ईश्वर एक, भाषाएं अनेक भाव एक। सूरत में आयोजित द्वितीय अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन 2022 में बोलते हुए अखिल भारतीय भाषा परिषद के चेयरमैन और संस्कृत के प्रकांड विद्वान चमू कृष्ण शास्त्री ने उपरोक्त मंतव्य प्रकट किया। सम्मेलन के दूसरे दिन आयोजित पांचवे सत्र में भाषाई समन्वय का आधार है हिंदी विषय पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं का ये मंच भी एक समन्वय है। जैसे सुर्योदय के साथ कमल पुष्पित पल्लवित होता है, वैसे ही जब भारतीय भाषाओं का सूर्योदय होगा तब भारतवासियों का हृदय भी पल्लवित पुष्पित होगा। उन्होंने कहा कि पहले देश में अनुवाद की आवश्यकता नहीं थी कोई भी दुभाषिया लेकर नहीं घुमता था। उन्होंने कहा ये भा-रत है, जो ज्ञान में तल्लीन है वही भारत है। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाएं समृद्ध है, हर भारतीय भाषा के शब्दों की अंग्रेजी नहीं है, जैसे पाप की अंग्रेजी है, पूण्य की अंग्रेजी नहीं है। उन्होंने कहां कि भाषा के विकास के लिए सात आवश्यकता हैं- बोलने वाले लोग, माध्यम के रूप में प्रयोग, वर्तमान साहित्य, समकालीन शब्द निर्माण, तकनीक, पठन-पाठन में उपयोग तथा प्रशासनिक प्रयोग।

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गुजरात के सूरत में आयोजित दो दिवसीय हिंदी दिवस समारोह और द्वितीय अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन का आज सायं काल समापन हुआ। प्रथम दिन 14 सितंबर को 3 सत्र हुए, उद्घाटन सत्र में केंद्रीय गृह और सहकारिता मंत्री अमित शाह के साथ गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्र, निशीथ प्रमाणिक, शिक्षा राज्य मंत्री राजकुमार रंजन, रेल राज्य मंत्री दर्शना बेन, गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र भाई पटेल, संसदीय राजभाषा समिति के उपाध्यक्ष भर्तृहरि महताब, गुजरात के गृह मंत्री हर्ष सिंघवी, राजभाषा सचिव अंशुली आर्या, उपसचिव मीनाक्षी जोली सहित अनेकों सांसद विधायक, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी, कुलपति, निदेशक, चेयरमैन, कलाकार, पत्रकार और विद्वान उपस्थित थे।

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सम्मेलन के द्वितीय सत्र को संसदीय राजभाषा समिति के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ सत्यनारायण जाटिया, संसदीय राजभाषा समिति के उपाध्यक्ष भर्तृहरि महताब कथा राज्यसभा के उपाध्यक्ष हरिवंश जी ने संबोधित किया।
तृतीय सत्र को सेंसर बोर्ड के चेयरमैन प्रसून जोशी, अभिनेता पंकज त्रिपाठी तथा दो टॉप आईएएस निशांत जैन गंगा सिंह राजपूत ने संबोधित किया।

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सम्मेलन के प्रथम दिन तीन सत्र हुए। केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित भाई शाह ने राजभाषा पर विभिन्न विभागों द्वारा आयोजित प्रदर्शनी का उद्घाटन भी किया, कई पुस्तकों का लोकार्पण भी किया। डिजिटल शब्दकोश, अनुवाद टूल का भी लोकार्पण किया गया। सम्मेलन में देशभर के विभिन्न क्षेत्रों से राजभाषा विभाग के 9000 से ज्यादा अधिकारी और कर्मचारी उपस्थित थे।

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सम्मेलन के दूसरे दिन चौथे सत्र में डॉ रीता बहुगुणा जोशी ने सम्मेलन में उपस्थित राजभाषा विभाग के हजारों अधिकारियों कर्मचारियों को संबोधित करते हुए कहा कि अंग्रेज सांस्कृतिक लुटेरे थे, वे हमारी संस्कृति को लूटने आए थे। इसलिए हमें अंग्रेजी और अंग्रेजियत से मुक्त होना होगा। हमारे प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र भाई मोदी जब हिंदी में बोलते हैं तो पूरी दुनिया सुनती है। उन्होंने कहा कि मैंने 500 कार्यालयों का निरीक्षण किया है, एक भी कार्यालय मानक के अनुरूप नहीं है। सभी कार्यालयों को राष्ट्रीय मानक कमीशन के अनुरूप बनाना होगा। राजभाषा को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए हम सबको मिलकर प्रयास करना होगा। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के तीन वर्षों के भीतर देश को एकसूत्र में बांधने का काम किसी ने किया तो वो लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल ही थे। उन्होंने घोषणा किया सभी रियासतें स्वेच्छा से विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दे, उनका सम्मान किया जाएगा अन्यथा जो जैसे मानेगा उसे वैसे मना दिया जाएगा। अधिकांश रियासतों ने स्वेच्छा से विलय कर दिया, कुछ ने हिचकिचाहट से कर दिया। हैदराबाद, जूनागढ़ को बलपूर्वक मिलाना पड़ा। जूनागढ़ का नवाब पाकिस्तान भाग गया, कश्मीर पर पाकिस्तान ने हमला कर दिया, भारत की सेनाओं ने जवाबी कार्रवाई की और आधा कश्मीर कब्जा किया। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी का उपयोग कम करना है अपनी भाषा का संवर्धन करना है, सरल हिंदी को प्रोत्साहित करना है।

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दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के पूर्व कुलपति प्रोफेसर राममोहन पाठक ने कहा कि अंग्रेजी की राख ने हमारी स्वभाषा को दबा रखा है, हमें इस राख को हटाना है। सूरत में आए हैं, अभी हिंदी की सूरत बदलनी चाहिए। गुलामी के प्रतीको को किनारे करना है, पराधीनता के चिन्हों को मिटाना है। उन्होंने कहा कि देश के एकीकरण के लिए सरदार पटेल ने जो जैसे माना उसे वैसे मनाया। बात करके, पुचकार के, समझा बुझाकर, दंडित करके 535 रियासतों को एकजुट किया। सत्र को गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आर एस दूबे ने भी संबोधित किया।

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उत्तर प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि अंग्रेजी को दैनिक जीवन में उपयोग करने के मोहपाश से मुक्त होना होगा। अंग्रेजी को अंतर्राष्ट्रीय भाषा कहा जाता है किंतु चीन, जर्मनी, जापान जैसे विकसित देशों में अंग्रेजी की कोई भूमिका नहीं। भारत के राजनीतिज्ञों को अंग्रेजी से मोह हो गया था। जिस राष्ट्र के लोग अपनी राष्ट्रभाषा का अनादर करते हैं, वो अपनी राष्ट्रीयता को खो देते हैं। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने संविधान अंग्रेजी में लिखे जाने पर दुख व्यक्त किया था।

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सम्मेलन के पांचवें सत्र में बोलते हुए पद्मश्री प्राप्त वरिष्ठ पत्रकार आलोक मेहता ने कहा कि समन्वय की भाषा कट्टर नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि कानून कितना भी बनाए दुर्घटनाएं होती हैं। उन्होंने कहा कि दक्षिण के लोगों ने भी हिंदी में साहित्य सृजन किया है। गुजरात के नरसी मेहता की हिंदी हम पढ़ते हैं। गुरु नानक के पंजाबी के साथ हिंदी में भी लिखा है। असम के शंकरदेव के भजनों में, रविंद्र नाथ टैगोर के साहित्य में भी हिन्दी है। हिंदी की सरल पुस्तकों को आम लोगों तक पहुंचाना है। सरकारी दायित्व पूर्ती के अलावा कम से कम 5 लोगों को हिंदी सिखाने का संकल्प लें। चीन का मुकाबला परमाणु बम से नहीं भारतीय भाषाओं से हो सकता है।

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पांचवें सत्र को संबोधित करते हुए राज्यसभा सांसद श्रीमती संगीता यादव ने कहा कि हमें राजभाषा और राष्ट्रभाषा के बीच के अंतर को समाप्त करना है। हिंदी 18 बोलियों का सम्मिश्रण है, इसलिए हिंदी में समन्वय की कोई समस्या नहीं है। यशस्वी प्रधानमंत्री माननीय मोदी जी ने कहा है राजनीतिक दासता से मुक्ति मिल गई, सांस्कृतिक दासता से कब मिलेगी? सत्र की अध्यक्षता लोकसभा सांसद सुश्री पूनमबेन हेमत भाई ने की।
सम्मेलन के अंतिम सत्र में सूरत के पुलिस कमिश्नर आईपीएस अधिकारी अजय तोमर छा गए। सम्मेलन के दौरान उन्होंने सर्वाधिक तालियां बटोरी। लोग उनके धाराप्रवाह भाषण से इतने प्रभावित हुए की तालियां बजाते बजाते, उनके सम्मान में खड़े हो गए। उन्होंने देश में संस्कृत से हिंदी तक की यात्रा को कविताओं, गीतो, शेरो- शायरी, साहित्यकारों, विद्वानों, फिल्मों, कहानियों, उपन्यासकारो आदि के माध्यम बिना कोई नोट देखे बताया। उन्होंने कहा कि भाषा को व्याकरण में बांधने के चलते भाषाएं लुप्त होती गई। उन्होंने कहा कि कबीर की लोकभाषा जिंदा है। उन्होंने कहा कि मर गया देश, जिंदा रह गए हम। उन्होंने कहा कि हिंदी सिनेमा में लोगों के दिल को स्पर्श करने का जो दम है, वह राजभाषा विभाग के किसी पत्र में नहीं है।


भारतीय जनसंचार संस्थान के महानिदेशक प्रोफेसर संजय द्विवेदी ने भी अंतिम सत्र में सम्मेलन को संबोधित किया और सब से राजभाषा के अनुपालन की अपील की। प्रसिद्ध फिल्म निर्माता निर्देशक महेश मांजरेकर ने लोगों के प्रश्नों का जवाब दिया और कहा कि मेरी याद जो पहचान है वह हिंदी के कारण ही है। पद्मश्री सम्मान से विभूषित चाणक्य सीरियल के निर्माता फिल्मकार और निर्देशक डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने कहा कि भाषा की समृद्धि उदारता और समन्वय से होती है कट्टरता से नहीं। हिंदी में ऐसे बहुत सारे शब्दों का प्रयोग होता है जो अन्य भाषा से आई है और हिंदी में उनका विकल्प नहीं है। उन्होंने लोगों से पूछा साबुन का हिंदी कोई बता सकता है, रोटी सब्जी भी विदेशी शब्द है।

भव्य ऐतिहासिक राजभाषा सम्मेलन सूरत में हुआ संपन्न
सम्मेलन में राजभाषा पूर्वोत्तर क्षेत्र के क्षेत्रीय प्रभारी बद्री प्रसाद यादव, नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति के सदस्य वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता दिलीप कुमार, शिलचर से एनआईटी के सौरभ वर्मा, असम विश्वविद्यालय के सुरेंद्र उपाध्याय, पृथ्वीराज ग्वाला, पीएनबी के गुलशन कुमार, नवोदय विद्यालय के विकास उपाध्याय और हिंदीभाषी समन्वय मंच के रितेश नुनिया, चंडीगढ़ से केंद्रीय विद्यालय संगठन के आशुतोष यादव गुवाहाटी निवासी बैंक ऑफ इंडिया सूरत के प्रीतम गोस्वामी आदि ने भी भाग लिया।

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