फॉलो करें

शिक्षक दिवस पर विशेष-कोरोना काल में शिक्षकों की डिजिटल चुनौतियां:प्रो. संजय द्विवेदी, महानिदेशक, भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली

47 Views

साल 2020 में ये मार्च का महीना था। कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को एक ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया था, जहां सबकी गति मानो थम सी गई थी। भागते-दौड़ते शहर रुक से गए थे। शिक्षा का क्षेत्र अपने सामने गंभीर संकट को देख रहा था। बच्चे हैरान थे, तो अभिभावक परेशान। लेकिन उस दौर में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर में स्थित दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय के 260 शिक्षकों ने जो काम कर दिखाया, वो आज पूरे देश के शिक्षकों के लिए एक मिसाल है। इन शिक्षकों ने दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय के पोर्टल पर लगभग 2,192 ऑडियो-वीडियो लेक्चर अपलोड किए। इनमें से प्रत्येक वीडियो को लगभग एक लाख से ज्यादा छात्रों ने देखा। इन शिक्षकों में से अधिकतर ने अपने अध्यापन काल में कभी भी इस तरह की तकनीक का प्रयोग नहीं किया था। डिजिटल शिक्षा की तरफ बढ़ते भारत के कदमों की ये पहली आहट थी।

भारत में ऑनलाइन शिक्षा की नई और चुनौतीभरी दुनिया में आवश्यकता, आविष्कार की या कहें कि नवाचार की जननी बन गई है। भारत में शिक्षा विशेषज्ञ लंबे अरसे से ब्लैकबोर्ड और चॉक की जगह स्क्रीन और कीबोर्ड को देने की सिफारिश करते रहे हैं, पर इस दिशा में हम कभी भी ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाए। लेकिन शायद हमें इस मामले में कोरोना को धन्यवाद देना चाहिए, क्योंकि कोविड ने भारत में डिजिटल शिक्षा को एक नया आयाम दिया है। आज जब सोशल डिस्टेंसिंग नया नियम बन गई है, कक्षाओं में शारीरिक निकटता ने जानलेवा खतरा पैदा कर दिया है, स्कूल और शिक्षक सभी ऑनलाइन पढ़ाई के इस दौर में शामिल होने की तैयारी कर रहे हैं, तो शिक्षा के शब्दकोष में डेस्क, कुर्सी और पेंसिल की जगह तेजी से कंप्यूटर और कनेक्टिविटी लेते जा रहे हैं।
ऑनलाइन शिक्षा का मतलब केवल डिलिविरी मॉडल बदलना नहीं है। टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके शिक्षक, अवधारणाओं को असरदार ढंग से समझाते हुए पढ़ाई को ज्यादा दिलचस्प बना सकते हैं। टेक्नोलॉजी और डेटा उन्हें फौरन फीडबैक देता है। वे विश्लेषण कर सकते हैं कि छात्र क्या चाहते हैं, उनके सीखने के पैटर्न क्या हैं और इस के आधार पर वे छात्रों की जरुरत के हिसाब से तैयारी कर सकते हैं। ‘अमेरिकन इंस्टिट्यूट फॉर रिसर्च’ की एक रिपोर्ट के अनुसार आमने-सामने पढ़ाई में छात्र जहां 8 से 10 फीसदी बातें याद रख पाते हैं, वहीं ई-लर्निंग ने याद रखने की दर बढ़ाकर 25 से 60 फीसद तक कर दी है। टेक्नोलॉजी छात्रों को सीखने के लिए प्रेरित करती है और शर्मिंदगी या संगी-साथियों के दबाव से मुक्त फीडबैक देती है। असल कक्षाओं की तरह छात्रों को यहां नोट्स नहीं लेने पड़ते और वे शिक्षक की बातों पर ज्यादा ध्यान दे पाते हैं। ऑनलाइन शिक्षा की शुरुआत, उच्च शिक्षा का सकल नामांकन अनुपात बढ़ाने में भी भारत की मदद कर सकती है। सकल नामांकन अनुपात का अर्थ है कि कितने प्रतिशत विद्यार्थी कॉलेज और विश्वविद्यालय में एडमिशन लेते हैं। 18 से 23 वर्ष के छात्रों की अगर बात करें, तो इस स्तर पर भारत का नामांकन अनुपात लगभग 26 फीसदी है, जबकि अमेरिका में ये आंकड़ा 85 फीसदी से भी ज्यादा है। एक अनुमान के मुताबिक अगर हमें 35 फीसदी के नामांकन अनुपात तक भी पहुंचना है, तो अगले पांच सालों में हमें कॉलेज में 2.5 करोड़ छात्र बढ़ाने होंगे। और इसके लिए हर चौथे दिन एक नया विश्वविद्यालय और हर दूसरे दिन एक नया कॉलेज खोलना होगा। जो लगभग असंभव सा प्रतीत होता है, लेकिन ऑनलाइन क्लासेस से ये सब संभव है।
हालांकि भारत में ऑनलाइन शिक्षा की अभी भी कुछ दिक्कते हैं। वैश्विक शिक्षा नेटवर्क ‘क्यूएस’ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में इंटरनेट का बुनियादी ढांचा अभी ऑनलाइन लर्निंग को सक्षम बनाने के लिए तैयार नहीं है। ‘इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 के अंत तक भारत में इंटरनेट के लगभग 45 करोड़ मंथली एक्टिव यूजर्स थे और इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के मामले में चीन के बाद भारत दूसरे स्थान पर था। शिक्षा पर वर्ष 2018 के ‘नेशनल सैंपल सर्वे’ की रिपोर्ट के अनुसार, 5 से 24 साल की उम्र के सदस्यों वाले सभी घरों में से केवल 8 प्रतिशत के पास ही कंप्यूटर और इंटरनेट कनेक्शन है। ‘नीति आयोग’ की वर्ष 2018 की रिपोर्ट भी ये कहती है कि भारत के 55,000 गांवों में मोबाइल नेटवर्क कवरेज नहीं है। हैदराबाद विश्वविद्यालय के शिक्षकों द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में छात्रों के बीच डिजिटल पहुंच की विविधता पर भी प्रकाश डाला गया है। इस सर्वेक्षण में शामिल लगभग 2500 छात्रों में से 90 प्रतिशत छात्रों का कहना था कि उनके पास मोबाइल फोन तो है, लेकिन केवल 37 प्रतिशत ने ही कहा कि वे ऑनलाइन क्लासेज से जुड़ सकते हैं। शेष छात्रों का कहना था कि कनेक्टिविटी, डेटा कनेक्शन की लागत या बिजली की समस्याओं के कारण वे ऑनलाइन क्लासेज से नहीं जुड़ पा रहे थे। इसके अलावा ऑनलाइन परीक्षाएं भी बड़ा मुद्दा है। ‘कैंपस मीडिया प्लेटफॉर्म’ द्वारा 35 से अधिक कॉलेजों के 12,214 छात्रों के बीच किए गए एक ऑनलाइन सर्वेक्षण में पाया गया कि 85 प्रतिशत छात्र ऑनलाइन परीक्षाओं से खुश नहीं थे, 75 प्रतिशत के पास उन कक्षाओं में भाग लेने या परीक्षाओं के लिए बैठने के लिए लैपटॉप नहीं था, जबकि 79 प्रतिशत के पास हाईस्पीड वाला ब्रॉडबैंड नहीं था। लगभग 65 प्रतिशत ने कहा कि उनके पास अच्छा मोबाइल इंटरनेट कनेक्शन उपलब्ध नहीं है, जबकि लगभग 70 प्रतिशत ने दावा किया कि उनके घर ऑनलाइन परीक्षा देने के लिए अनुकूल नहीं थे। यानी इस डिजिटल खाई को पाटने के लिए अभी हमें और मेहनत करने की जरुरत है।
सरकार इस दिशा में कई प्रयास भी कर रही है। ‘नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क’, जिसे अब ‘भारत नेटवर्क’ कहा जाता है, का उद्देश्य 40,000 करोड़ रुपए से अधिक की लागत के साथ देश की सभी 2,50,000 पंचायतों को आपस में जोड़ना है। भारत नेट के माध्यम से सरकार की, प्रत्येक ग्राम पंचायत में न्यूनतम 100 एमबीपीएस बैंडविड्थ प्रदान करने की योजना है, ताकि ऑनलाइन सेवाओं को ग्रामीण भारत के सभी लोगों तक पहुंचाया जा सके। इस नेटवर्क को स्थापित करने का कार्य पूरा हो जाने के बाद यह संरचना न केवल एक राष्ट्रीय संपत्ति बन जाएगी, बल्कि नवाचार और प्रौद्योगिकी विकास की दिशा में एक गेम चेंजर भी साबित होगी। इसके अलावा ‘नेशनल नॉलेज नेटवर्क’ अखिल भारतीय मल्टी-गीगाबिट नेटवर्क है, जो भारत में कम्युनिकेशन इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास और अनुसंधान को बढ़ावा देता है तथा अगली पीढ़ी के एप्लीकेशन्स और सेवाओं के निर्माण में सहायता देता है। नेशनल नॉलेज नेटवर्क का उद्देश्य ज्ञान बांटने और सहयोगात्मक अनुसंधान की सुविधा के लिये एक हाई स्पीड डाटा कम्युनिकेशन नेटवर्क के साथ उच्च शिक्षा और शोध के सभी संस्थानों को आपस में जोड़ना है।
नई शिक्षा नीति में भी ये कहा गया है कि डिजिटल खाई को पाटे बिना ऑनलाइन शिक्षा का लाभ उठा पाना संभव नहीं है। ऐसे में ये जरूरी है कि ऑनलाइन और डिजिटल शिक्षा के लिए तकनीक का उपयोग करते समय समानता के सरोकारों को नजरअंदाज ना किया जाए। शिक्षा नीति में तकनीक के समावेशी उपयोग यानि सबको साथ लेकर चलने की बात कही गई है, ताकि कोई भी इससे वंचित ना रहे। इसके अलावा शिक्षकों के प्रशिक्षण की बात भी नई शिक्षा नीति में कही गई है, क्योंकि ये जरूरी नहीं कि जो शिक्षक पारंपरिक क्लासरूम शिक्षण में अच्छा है, वो ऑनलाइन क्लास में भी उतना ही बेहतर कर सके। कोविड महामारी ने साफ कर दिया है कि ऑनलाइन कक्षाओं के लिए के लिए ‘टू-वे वीडियो’ और ‘टू-वे ऑडियो’ वाले इंटरफेस की सख्त जरूरत है।
कोरोना के पहले यह माना जाता था कि ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली का हर स्तर पर सीमित तथा सहयोगात्मक उपयोग ही होगा, क्योंकि डिजिटल कक्षा और भौतिक कक्षा कभी भी समकक्ष नहीं हो सकते हैं। खेल कंप्यूटर पर भी खेले जाते हैं, मगर स्क्रीन कभी भी खेल के मैदान का विकल्प नहीं बन सकती है। खेल के मैदान पर जो संबंध बनते हैं और जो मानवीय मूल्य सीखे और अन्तर्निहित किये जाते हैं, वह मैदान की विशिष्टता है, उसका विकल्प अन्यत्र नहीं है। इसी तरह अध्यापक और विद्यार्थी का आमने-सामने का संपर्क जिस मानवीय संबंध को निर्मित करता है, वह आभासी व्यवस्था में संभव नहीं होगा। लेकिन डिजिटल शिक्षा ने सब कुछ बदल दिया है। डिजिटल साक्षरता के जरिए बच्चे अपने आसपास की दुनिया से बातचीत करने के लिए टेक्नोलॉजी का जिम्मेदारी से इस्तेमाल करना सीख सकते हैं। बच्चे की जिंदगी में अहम बदलाव लाने में डिजिटल शिक्षा से कई फायदे होते हैं, जैसे मोटर स्किल्स, निर्णय क्षमता, विजुअल लर्निंग, सांस्कृतिक जागरुकता, बेहतर शैक्षिक गुणवत्ता और नई चीजों की खोज। ये सब शिक्षा को इंटरेक्टिव बनाते हैं। सीखना बुनियादी तौर से एक सामाजिक गतिविधि है। इसीलिए बच्चों को ऑनलाइन नेटवर्क से जुड़ने से रोकने के बजाय, हमें उन्हें सुरक्षा के साथ सीखने के लिए प्रोत्सहित करना चाहिए। क्योंकि डिजिटल शिक्षा अब हमारे जीवन का एक अंग बन चुकी है।
शिक्षा में सूचना एवं संचार का प्रयोग, तकनीक के विकास एवं क्रांति का युग है। हर दिन नई-नई तकनीकों तथा माध्यमों का विकास किया जा रहा है। डिजिटल शिक्षा सभी वर्गों के लिये आज शिक्षा का एक आनंददायक साधन है। विशेष रूप से बच्चों के सीखने के लिये यह बहुत प्रभावी माध्यम साबित हो रहा है, क्योंकि ऑडियो-वीडियो तकनीक बच्चे के मस्तिष्क में संज्ञानात्मक तत्त्वों में वृद्धि करती है और इससे बच्चों में जागरुकता, विषय के प्रति रोचकता, उत्साह और मनोरंजन की भावना बनी रहती है। इस कारण बच्चे सामान्य की अपेक्षा अधिक तेज़ी से सीखते हैं। डिजिटल लर्निंग में शामिल इंफोटेंमेंट संयोजन, इसे हमारे जीवन एवं परिवेश के लिये और अधिक व्यावहारिक एवं स्वीकार्य बनाता है।
अंग्रेजी में एक कहावत है Technology knocks at the door of students यानी तकनीक अब छात्रों के घर पहुंच रही है। आधुनिक कम्प्यूटर आधारित तकनीक ने न केवल शैक्षिक प्रसार के स्वरूप को परिमार्जित किया है, बल्कि तकनीक के समावेशन की प्रक्रिया को जन्म देकर, शिक्षा के क्षेत्र को एक प्रामाणिक व सर्वसुलभ आयाम प्रदान किया है। तकनीक के विकास से शिक्षा के क्षेत्र में हम जिस क्रांति की कल्पना करते थे, आज कंप्यूटर आधारित तकनीक ने इस कल्पना को साकार करके शैक्षिक क्षेत्र में नये युग का सूत्रपात किया है। हमारे लिए यही मौका है कि हम शिक्षा को अनुभव-आधारित और अनुसंधान-उन्मुख बनाएं, बजाए इसके कि छात्रों को परीक्षा के लिए रट्टा लगाना सिखाएं। भारत के पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय प्रणब मुखर्जी ने कहा था कि छात्रों को चरित्र निर्माण की शिक्षा भी दी जानी चाहिए। इसलिए यह ध्यान रखना आवश्यक है कि शिक्षा सिर्फ पढ़ाई-लिखाई और डिग्री भर न रह जाए, बल्कि मानवीय मूल्यों और संस्कारों से युक्त शिक्षा हमारे विद्यार्थियों को बेहतर इंसान भी बनाए।
भविष्य की शिक्षा में तकनीक का हस्तक्षेप बढ़ेगा और अनेक अनजाने तथा अनदेखे विषय अध्ययन के क्षेत्र में आएंगे। बावजूद इसके हमें परंपरागत एवं तकनीक आधारित शिक्षा पद्धति के बीच संतुलन बनाकर अपनी शिक्षा व्यवस्था को लगातार परिष्कृत करना होगा। वर्तमान सदी इतिहास की सबसे अनिश्चित तथा चुनौतीपूर्ण परिवर्तनों की सदी है। इसलिए भविष्य की अनजानी चुनौतियों को ध्यान में रखकर हमें स्वयं को तैयार करना होगा। आने वाले समय में केवल एक विषय के ज्ञान से हमारा भला नहीं हो सकता है, इसलिए हमें हर विषय की जानकारी को शिक्षा का अभिन्न अंग बनाना होगा। सरकार का पूरा प्रयास है कि वह इस दिशा में भविष्यवादी दृष्टि के अनुरूप सुधार तथा बदलाव करती रहेगी। ऐसा करके ही हम शिक्षा के भविष्य को सुरक्षित कर सकते हैं और भविष्य की शिक्षा को समय के अनुरूप बना सकते हैं।

Share this post:

Leave a Comment

खबरें और भी हैं...

लाइव क्रिकट स्कोर

कोरोना अपडेट

Weather Data Source: Wetter Indien 7 tage

राशिफल