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निकल गयी रे ! निकल गयी रे !
शिवशम्भू की बैल की सवारी रे!
मेरे शिवशम्भू की भोली सी बारात
आज तक निकली न ऐसी बारात
दूल्हा शिवजी का श्रृंगार अद्भुत है
न सेहरा, न पौशाक, न ही जूती है
संपूर्ण तन तो भस्म से रमा हुआ है |
यह दूल्हा तो सर्पों से सजा हुआ है |
बारातियों का दल कितना अद्भुत
देवताओं संग शामिल पिशाच भूत
नाचते गाते जब चलीं ऐसी बारात
माता मैना के कान तक पहुँची बात
माता मैना तो हो गयी अति व्याकुल
दूल्हे को देखते ही हो गयी वो घायल
नारद मुनि ने संभाली फिर सारी बात
कहा,”यह जोड़ी तो जन्मों की है मात’
शिवशंकर ने बदल दिया अपना भेष
ऐसी सुंदर जोड़ी में राज छुपा विशेष
शिवशक्ति से संसार का बेड़ा पार है
शिवरात्रि की महीमा तो अपरंपार है!!!
स्वरचित रचना : –
ऋतु अग्रवाल
दुमदुमा ( असम )