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सावन का महीना भगवान शिव का महीना माना जाता है और इस पूरे महीने में रुद्राभिषेक करने का विशेष महत्व होता है। रुद्राभिषेक क्यों किया जाता है और किस पदार्थ से किया जाता है , आइए कुछ जानकारी लेते हैं।
भोलेनाथ माता पार्वती से कहते हैं कि हे देवी सांसारिक लोग जब सभी कार्यों को छोड़कर अत्यंत शांत मन से रुद्राभिषेक करेंगे तो अवश्य ही उनके दुखों का नाश हो जाएगा। हे देवी भिन्न-भिन्न वस्तुओं से रुद्राभिषेक करने पर उसका फल भी भिन्न-भिन्न होता है जो इस प्रकार है।
जल से अभिषेक करने पर सुवृष्टि और स्वास्थ्य लाभ होता है। कुश द्वारा अभिषेक करने पर रोग से छुटकारा मिलता है। गन्ना रस से अभिषेक करने पर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। इच्छा पूर्ति के लिए दुग्ध से अभिषेक करना चाहिए।
यह माना जाता है कि पूरे सावन महीने में भगवान शिव कैलाश पर्वत पर माता पार्वती के साथ विराजमान रहते हैं।जिससे कि यह महीना रुद्राभिषेक के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है।यही कारण है कि भोलेनाथ के भक्त इस महीने में रुद्राभिषेक कराते हैं।
परंतु सावन के शुरू होने से पहले इस धरती पर कुछ ऐसे परजीवी व्यक्तियों के विचार सामने आने लगते हैं,जो कि सावन आने के कुछ दिन पहले अपने विचारों का आदान -प्रदान तो करते हैं, परंतु सावन खत्म होने के बाद पता नहीं कहां गायब हो जाते हैं।
ये वे परजीवी हैं जो रहते तो हैं इस धरती पर जहां ऋषि -मुनियों देवी देवताओं ने जन्म लिया। जिनकी गाथाएं हमारे धार्मिक ग्रंथों, पुराणों में वर्णित है ,और उन ग्रंथों में वर्णित कथा को इस धरती के महापुरुष , कथावाचक समय-समय पर हमारे जैसे आम जनता के सामने वर्णन करते रहते हैं। जिससे कि हम अपने सनातन संस्कृति से जुड़े रहे और उस संस्कृति को, उन धार्मिक विचारों को लेकर आगे बढ़ते रहें जो हमें प्यार सद्भाव के साथ साथ आस्था से जुड़ना सिखाता है।
किंतु ये जो परजीवी हैं,वे इन सभी विचारों को परे करके अपनी मिथ्या अनर्गल प्रलापों द्वारा ईश्वर के प्रति आस्था रखने वाले लोगों को भटकाते रहते है। और हमें ज्ञान देते हैं कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं।किसे दान देना चाहिए और किसे नहीं।अगर ऐसे लोगों की बातें शास्त्र परक हो तो माना भी जा सकता है परंतु ये अपनी बातें अपने स्वभाव और अपने कर्म के अनुरूप ही प्रस्तुत करते हैं।
तो मैं बताना चाहूंगी कि
स्वामी विवेकानंद जी शिकागो में अपना प्रसिद्ध वक्तव्य देने के बाद जब भारत लौटते हैं तो भारत के साथ साथ देश विदेशों में वेदांत धर्म और भारतीय संस्कृति के प्रचार -प्रसार हेतु अपना वक्तव्य दिया था जो कि *कोलंबो से अल्मोड़ा तक* पुस्तक पुस्तक में वर्णित है।जिसमें एक वक्तव्य *विवेकानंद जी की क्रांतिकारी योजना* थी। इसमें उन्होंने अपना वक्तव्य रखते हुए कहा था कि , हम इस धरा पर चाहे जो भी समाज सुधारक कार्य करें,चाहे वो राजनीतिक हो सामाजिक आर्थिक ,शैक्षणिक हो, तभी फलीभूत हो सकता हैं जब हम उन्हें अपने सनातन संस्कृति से जोड़ कर रखें और हर क्षेत्र के कार्यों में अपने धार्मिक विचारों को रखते हुए ही आगे बढ़ें।
अगर हम ऐसा करते हैं तो हम पथ भ्रष्ट नहीं होते और ना ही हममें वैमनस्यता की भावना आती है।जब हम धार्मिक विचारों से कटने लगेंगे तो हमारा पतन निश्चित हो जाता है और तब हमारा राष्ट्र भी मृत प्राय हो जाता है।
मेरे कहने का अभिप्राय यह है कि जो लोग सावन महीने में होने वाले रूद्राभिषेक पर अपने बहुमूल्य विचार बांटते हैं कि उन्हें अभिषेक नहीं करके उन पदार्थों को जरूरतमंदों में बांट देना चाहिए।
तो पहली बात कि अभिषेक किन किन पदार्थों से की जाती है ये तो वर्णित कर दिया है। अतः इच्छा आपकी है।दुसरी बात कि जब भी दान की बात आती है तो इन परजीवियों को सावन महीना और दूध ही दिखाई देता है।तो मैं बताते चलती हूं कि ऐसे लोग मानसिक रोगी होतें है जो कि रुद्राभिषेक के पीछे की सच्चाई जो कि सनातन संस्कृति से जुड़ी हुई है उसे नहीं जानते और अपने प्रलापों द्वारा अपनी पहचान खुद ही दे देते हैं।
दान करना गलत नहीं है। मनुष्य संवेदनशील प्राणी है। उसे किसी का दुख दर्द सहन नहीं होता। अतः वह अपने सामर्थ्य अनुसार प्रतिपल परोपकार की भावना रखते हुए दूसरों की मदद करते रहता है। मदद करने का कुछ और भी सरल उपाय है जिस तरफ शायद उन परजीवियों का ध्यान नहीं जाता ।तो मैं उनका ध्यान आकर्षित करना चाहती हूं।
शुरुआत करते हैं शादी विवाह में होने वाले बेवजह खर्च से। अक्सर लोग दिखावे में आकर खुद को संपन्न साबित करने में शादी विवाह में इतना ज्यादा खर्च करते हैं, भिन्न-भिन्न प्रकार के व्यंजन बनवाते हैं, कि वह व्यर्थ जाता है।
यही नहीं जिनकी आय कम होती है वह धीरे धीरे इस तरह के शादी- ब्याह से चिंतित रहते हैं कि वह अपने बेटे-बेटियों का विवाह कैसे करेंगे? इतना खर्च कहां से लाएंगे ? इसी चिंता में वे डूबे रहते हैं। अगर हम चाहे तो शादी ब्याह में होने वाले इन खर्चों को कम करके उन पैसों से दान दे सकते हैं।
दूसरों की मदद कर सकते हैं और जो व्यक्ति कम पूंजी वाले हैं वे भी अपने डर को दूर कर सकते हैं।
अक्सर कुछ लोग आनंद के लिए तो कुछ लोग तनाव दूर करने के लिए मदिरापान करते हैं।आनंद मनाने और तनाव दूर करने के और भी कई सरल उपाय है जैसे योगा कीजिए। धार्मिक ग्रंथों को पढ़िए।अपने घर परिवार दोस्तों के साथ सुखद पल बिताइए अथवा कोई पुस्तक पढ़िए जिससे आपका दैनिक जीवन सहज और सरल तरीके से आगे बढ़ सके। निश्चित रूप से आपको रात में अच्छी नींद आएगी ।और इन मदिरापान में, जो कि सेहत के लिए हानिकारक है, खर्च होते हैं, उन खर्चों को बचाकर आप दान कर सकते हैं।
कुछ लोगों में जुए की लत होती है।वह पैसे को दांव पर लगाते हैं जीत गए तो अच्छा नहीं जीते तो तनाव में पड़ जाते हैं।आप जो इन पैसों को अनैतिक कार्यों में लगाते हैं जिसका कोई भविष्य नहीं होता, इन पैसों को बचाकर भी हम दान कर सकते हैं।
जब माता लक्ष्मी की कृपा लोगों पर बनती है तो वे दिखावे में पड़कर बहुत अधिक खर्च करने लगते हैं। अगर वे इन बेकार के खर्चों में कटौती करके उन पैसों से दान करेंगे तो कई जिंदगियां सवर जाती है।
तो आइए आज से हम प्रण लेते हैं कि इन सब बुरी आदतों को, दिखावे भरी जिंदगी में आते खर्च को कम करते हुए उन बचे हुए पैसों का सदुपयोग करें और जरूरतमंदों की सहायता करें।
माया चौबे
तिनसुकिया ( असम )