प्रस्तुत है, जीवों के प्रति दया भाव रखने वाली, कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित, जिनके ऊपर राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय, समाचार माध्यमों ने स्टोरी किया है, गुवाहाटी और आसपास में लोकप्रिय पशु प्रेमी डॉक्टर आशंमा बेगम के विचार
कोविड-19 के परिस्थिति के कारण मानव समाज के साथ साथ साथ जीव जंतुओं को भी बहुत सारी दिक्कते आई है! खाने की समस्या प्रमुख हैं !
हम शायद भगवान के बनाये हुए इस दुनिया को या उनके जो प्राकृतिक नियम हैं, उसका उल्लंघन किए है या कहीं ना कहीं हमसे बहुत बड़ी गलती या पाप हुआ है, या फिर उनकी क्रिएशन हमने नष्ट किया है। नहीं तो उनकी जो क्रिएशन है, उनमे कोई दिक्कत या कमी नहीं है।
आज लोग अपनों से झगड़ा, हिंसा, मारकाट, लूट, धर्म, दिखवाबाजी, गरीबो को मदद न करना, पेड़ पौधा, जंगल को काटना, जानवरो को परेशान करना, उनका घर को बर्बाद करना , लोगो की ज़मीन हरपना या कब्जा करना आदि चल रहा है।
भगवान ने दुनिया मे कोई भी चीजों का कमी कभी नहीं किया है, फिर भी आज हम परेशान है। हमने नदी के पानी को दूषित किया है, प्रकृति को दूषित किया है। तापमान बढ़ रहा है और इसमें भी हम सब कही न कही जिम्मेदार है।
शायद इसीलिए सभी धर्म के धर्म गुरुओं ने अपने- अपने घर के दरवाजे हम सब के लिए बंद कर दिए है। आज मंदिर, मस्जिद सब बंद है।
यह शायद उनका एक संकेत है, हम सब के लिए कि अब भी समय है, संभल जाओ। मैंने तुम सब के लिए अब अपना दरवाजे बंद कर दिया है। अब भी समय है संभल जाओ, नहीं तो परिणति और भयंकर होंगी।
आज ऐसा परिस्थिति है की परिवार के किसी सदस्य की अगर मृत्यु होती है तो, पारिवार से ही कन्धा देने क़े लिए कोई आगे नहीं बढ़ता। कन्धा देने क़े लिए, वहीं परिजन नहीं मिलते, जिनकी सलामती की हम दुआ करतें हैं या जिन परिजनो क़े लिए कमाते है। लोग आज अपने परिजन का मुख नहीं देख पाते।
यह दुनिया सब से ज्यादा पानी से भरा हुवा है, आज वही महादेश में पानी बोतल में खरीद कर पीना पड़ता है।
जहां दुनिया की हर कोने कोने मे पेड़- पौधे, जंगल है और ओक्सिजन से भरपुर हों, वही आज ओक्सीजन की कमी है। लोगो को आज ऑक्सीजन की कमी है, लोग आज सीलेंडर में ओक्सीजन खरीदकर जिने की कोशिश कर रहे है, और अब ऐसा है की पैसा देने की बाद भी ओक्सिजन नसीब नहीं होता। अच्छे कपड़े या ब्रांडेड कपड़े पहनने के शौकीन को आज कफ़न भी नसीब नहीं होता। ब्रांडेड तो दूर की बाद है, 50 रूपया वाला मार्किन कपड़ा का कफ़न भी नसीब नहीं होता है।
अपनों का साथ नहीं मिलता, मरने की बाद चिता को आग मिलना या जनाजा की मिटटी मिलना मुश्किल हों गया है।
आज की तारीख में जिन्दा रहना खुद एक चैलेंज हों गया है, आलीशान घर में रहने वाले हॉस्पिटल के बाहर जीने के लिए तड़प रहे है।
बड़ी-बड़ी गाड़ियों में घूमने वालों को मरने के बाद आज कब्रिस्तान जाने के लिए और शमशान जाने के लिए गाड़ियां नहीं मिलती। आज इंसानों में हर चीज के लिए हाहाकार मचा है। शायद भगवान हमसे नाराज है, हमने अपनी कूकर्मो से उनको नाराज़ कर दिया है।
आपस में एक दूसरे से दुरी, धार्मिक उतार-चढ़ाव, मारकाट, इंसान को इंसान नहीं समझना, रेस्पेक्ट नहीं करना, जानवरों की हत्या, अधिक से अधिक हिंसा, पाप, इसीलिए भगवान अभी हम सभी से रुष्ट हो गए हैं। शायद इसीलिए उन्होंने एक ऐसी बीमारी दुनिया में भेजी है कि, लोग एक साथ अपने ही घर पर कैद रहे और प्यार बढ़े।
आज जो जानवर जंगल में रहते थे या पिंजरे में रहते थे, वह अभी मुक्त खुले खुलेआम खुला आसमान के नीचे आराम से घूम रहे हैं और हम जीव श्रेष्ठ प्राणी इंसान, जो हमेशा खुले आसमान के नीचे घूमते थे आज वह घर रूपी पिंजरे में कैद है ।
हमने उनकी सृष्टि को इतना प्रदूषित किया है, जंगल काट कर साफ कर दिया है, गरीब को निंदा, जानवर को मारना और बहुत कुछ।
उन्होंने कहा होगा अभी वक्त है, संभल जाओ। घर में एक दूसरे के साथ रहो, आपस मे प्यार करो, जानवरों को प्यार करो, अपने घर में खेती करो और एक दूसरे की साथ प्यार से रहो।
यह दुनिया बहुत खूबसूरत और रंगीन है, देखो और इसको उपलब्धि करो, जब तक ऑंखें बंद न हों जाये, क्युंकि कोई नहीं जानता की कब किसका ऑंखें बंद हों जाये और सब कुछ अँधेरा हों जॉय।
इसीलिए मैं आस्मां बेगम गुवाहटी महानगर के मठ मंदिर की आस पास में रहनेवाले जीव जंतु जो लाकडाउन के कारण भुख से बिलबिला रहे थे ! कारण यह है की कोविड के चलते अब मठ मंदिर पर श्रद्धालु या भक्त गण का आना बंद हो गया ! बहुत सारे लोगों ने इनके खाने की ख्याल रखा है ! इनमे से एक नाम मेरा भी है, डा. आशमा बेगम। पिछले साल से ही सतत खाली मठ मंदिर के जीवों को ही नहीं बाकी बहुत सारी जगहों में खाना खिलाते आयी हूं , मंदिर चाहे कोई भी हो, गीता मंदिर ,बशिष्ठ मंदिर, कामाख्या मंदिर, नबग्रह मंदिर, इनको खाना खिलाते आ रही हूं और केबल इन मंदिरो में ही नहीं आस पास के बाकी जगहों की लिए भी खाने का जुगाड़ करती हूं। उन सबके लिए आशमा बेगम एक जाना पहचाना नाम हों गया है। मेरा यह कहना है की हम मनुष्य इन जीव जन्तुओ की घर रहने की जगह को नष्ट किये है, प्रकृति को नष्ट किया है, पेड़ पौधा काटे है, धर्म को लेकर झगड़ा करते हैं। चारों ओर अशांति फैलाते है और विवाद करते हैं। मारना- काटना यह सब साधारण हो गया है। हमारे कर्मों से भगवान हमसे रूठ गए हैं।