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हम संस्कृति और संस्कारों से दूर होते जा रहे हैं…. आनंद शास्त्री

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सम्माननीय मित्रों ! बराक उपत्यका अर्थात कछार,करीमगंज एवं हाइलाकांदी तीनों जनपदों में स्थित हिन्दी विद्यालय एवं उनमें हिन्दी शिक्षकों की नियुक्ति के साथ-साथ उनका हिन्दी ज्ञान और उपस्थिति इन तीनों के लिये बराक उपत्यका में-“राजभाषा विद्यापीठ” को पुनर्जीवित करने के साथ-साथ किसी स्थानीय हिन्दी भाषी संगठन समीति की शिक्षामंत्री जी द्वारा पुनर्गठन की योजना बनाना और उसे कार्यान्वित करना एक अच्छा विकल्प होगा।
मैं समझता हूँ कि इस हेतु-“हिन्दीभाषी समन्वय मंच” को स्वतंत्र रूप से भी प्रयास करना चाहिए। इस हेतु मुझे आदरणीय उदय शंकर गोश्वामी,अशोक वर्मा एवं राजन कुंवर जी के प्रयास वास्तविक रूप से प्रभावित करते हैं।
मित्रों ! सन् २१~२२ से ही ६४६ हिन्दी शिक्षकों के पद रिक्त हैं ! इनकी यथाशिघ्र पूर्ति के साथ-साथ राज्य सरकार को इनकी नियुक्ति के संदर्भ में हिन्दी भाषी समुदाय के दलित-शिक्षित अध्यापकों का चयन करने से समाज में एक अच्छा संदेश जायेगा और मुख्यमंत्री जी की छवि और निखरेगी।
मैं समझता हूँ कि बागान एवं ग्रामीण अंचल के हम हिन्दी भाषी निवासी लोगों ने यहाँ की संस्कृति को अपनाया ! बांग्ला को अपनाया ! बहुत ही अच्छा किया ! किन्तु अपनी भाषा,जडें, और संस्कृति के साथ-साथ अपने आहार विहार,वेष-भूषा को छोड़ दिया ये बहुत ही गंभीर अपराध किया है ! जब हमारे छोटे बच्चों को बाल्यावस्था में माँ की गोद में बैठकर हिन्दी के-“क ख ग घ”
पढने को नहीं मिलेगा ! वे घर से ककहरा नहीं सीखेंगे तो कक्षा-“एक दो तीन चार” में उनकी हिन्दी कमजोर भी होगी और उनको कठिन भी लगेगी।
हिन्दी विद्यालयों की स्थिति बिगडने का दायित्व  हमारा भी है ! हमारी आपसी बोलचाल की भाषा बांग्ला होती जा रही है ! हम अपने पडोसियों को तो छोड़िये अपने बच्चों तक से सामान्यतया बांग्ला में बात करते हैं ! बाजार में बांग्ला बोलते हैं ! अंग्रेजी में अपना हस्ताक्षर करते हैं ! शोषल मीडिया,फेसबुक,यूट्यूब,× पर अपनी आईडी अंग्रेजी में बनाते हैं ! अर्थात हम स्वयं ही हिन्दी को पिछडी भाषा सिद्ध करना चाहते हैं ? केवल सरकार ही दोषी नहीं है ! सरकार से सैकड़ों गुना अधिक दोषी हमलोग हैं।
परिणामस्वरूप सरकार कुछ गलत निर्णय लेने को बाध्य हो जायेगी। अतः हमें हिन्दी की पहली पाठशाला अपने घर खोलने की आवश्यकता है।
मित्रों ! समस्या हममें भी है ! एक चाय बेचने वाला भारत का प्रधानमंत्री बन सकता है ! सामान्य सरकारी पाठशाला में पढकर हमारे लाल बहादुर शास्त्री जी भारत के प्रधानमंत्री बन सकते हैं ! मैं स्वयं भी केवल कक्षा पांच तक सरकारी विद्यालय में पढा हूँ, एवं उसके पश्चात केवल महात्माओं से शास्त्रों का अध्ययन उनकी सेवा द्वारा मिला ! किन्तु हमारे अपने-“मध्यम निम्न,उच्च निम्न एवं निम्न-उच्च” वर्गीय परिवार अपने बच्चों को -“सेंट जेवियर्स,होलीक्रास,साउथ प्वाइंट,सेंट केपेटेनियो और डाॅन बाॅक्सो” में पढाकर उनकी बुद्धि को बिलकुल पश्चिमी बाॅक्स में बन्द करते जा रहे हैं ! एवं -“मध्य उच्च तथा उच्च वर्गीय” परिवारों के लोग जो अधिकांशतः कारपोरेट जगत अथवा कि राजनेताओं के हैं वे बातें तो स्वदेशी की करते हैं! किन्तु उनके बच्चे विदेशों में पढकर अपनी भारतीय संस्कृति और संस्कारों से दूर ! बहुत दूर ! होते जा रहे हैं।
मित्रों ये भी एक ऐसा कारण है जिससे हिन्दी विद्यालयों के प्रति हमारे अभिभावक तथा बच्चों का ध्यान टूटता जा रहा है ! उपरोक्त विद्यालयों ने बच्चों के लिये ट्रान्सपोर्ट की सुविधा बना रखी है ! हम सरकार से विनम्र अनुरोध करते हैं कि हिन्दी, असमिया,बांग्ला एवं मणिपुरी,प्राथमिक विद्यालयों में भी कुछ दूर से आने वाले बच्चों के लिये उचित सरकारी वाहनों की उपलब्धता अनिवार्य की जाये। सुधिजनों ! अभी भी सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में शौचालयों के दरवाजे अस्सी प्रतिशत टूटे पडे हैं इस कारण भी हमारे बच्चे विद्यालय जाने से कतराते हैं ! उनके रखरखाव की उचित व्यवस्था हमारी राजकीय शिक्षा नीति में आमूल-चूल परिवर्तन ला देगी।
मित्रों ! भले ही आने वाली आंधी थम गयी हो ! हमारे यशस्वी मुख्यमंत्री जी एवं पियूष हजारिका जी की जागरूकता से थम गयी हो ! किन्तु इसका श्रेय स्थानीय सांसद और विधायकों पर बिलकुल भी नहीं जाता ! उनका श्रेय बस इतना सा है कि उन्होंने फेसबुक पर सरकारी नोटीफिकेशन के साथ अपनी फोटो चिपका कर मुख्यमंत्री जी एवं हजारिका जी के सद्कार्यों पर डकैती डाल ली। ये तो हमारी आपकी कोशिश थी कि हिन्दी हित रक्षार्थ स्थानीय अनेक समूहों के एक मंच पर आने से सरकार श्री को अपनी भूल का आभास हुवा और उन्होंने स्थानीय राजनैतिकों के अबतक दिये संदेशों की भ्रामकता को समझा और यह उचित कदम उठाया।
मित्रों ! अभी भी जनता में एक मान्यता है कि सरकारी विद्यालय जीर्ण-शीर्ण और अध्यापक कुछ धनाढ्य होते हैं जबकि नीजी विद्यालय भव्य अत्याधुनिक और उनके अध्यापक अत्यंत ही गरीब होते हैं ! और तिसपर भी सरकारी हिन्दी विद्यालयों को तो अभीतक की सभी राज्य सरकारों ने अत्यंत ही दयनीय और जीर्ण-शीर्ण अवस्था में रखा ! जो बजट आया वो सब न जाने कहाँ गया ! कागजों में फर्नीचर से लेकर पेन्सिल तक के झूठे भारी भरकम बिल पास हो गये ! हिन्दी की पाठ्यपुस्तकों की अनुपलब्धता के बहाने बनाये जाते रहे और कागजों पर कमरे बने अधिक टूटे तो पहले से ही पडे हैं ! मैं आशा करता हूँ कि हमारे यशस्वी मुख्यमंत्री जी इन बिन्दुओं पर धरातलीय स्थल पर ! दिसपुर से अचानक किसी कमेटी को भेजकर सर्वे कराते तो वस्तुस्थिति दर्पण की तरह स्पष्ट हो जाती-.. आनंद शास्त्री सिलचर, सचल दूरभाष यंत्र सम्पर्कांक 6901375971″

विजयी होकर मृत्यु का वरण करेंगे…
सम्माननीय मित्रों-“कौन कहता है आसमां में सुराख हो नहीं सकता। एक पत्त्थर तो तबियत से उछालो यारों”हमारी एकता ने बिलकुल यही संदेश दिया है ! ये आप सभी के शिव संकल्प का परिणाम है कि हमारे मुख्यमंत्री जी ने हिन्दी के विरुद्ध हो रहे षड्यंत्र को विफल कर दिया। यहाँ मुझे बहुत सारी पुरानी स्मृतियों भीतर से झिंझोड़ कर रख देती हैं ! ये कडवी सच्चाई है कि इतिहास अपने-आप को दुहराता है ! अभी भी आपमें बहुत सारे व्यक्ति ऐसे होंगे जिनमें मेरे प्रति अनेक अनुत्तरित प्रश्न होंगे ! वे सभी प्रश्न इस एक ही घटना के विभिन्न पहलुओं से स्पष्ट हो जायेंगे।
काशी प्रान्त से हिन्दू वादी संस्था के तत्त्वावधान में दिलीप कुमार के प्रयास से मुझे उस समय बराक उपत्यका में निमंत्रित किया गया जब यहाँ बीजेपी-“संतोष मोहन देव”के कुशाषन एवं कांग्रेस और अगप के द्वारा बुरी तरह प्रताड़ित की जा रही थी!
मुझे यहाँ पर हिन्दी भाषी समुदाय और बांग्ला भाषी जनता के बीच एक सेतु स्थापित करने के उद्देश्य से लाया गया था ! यहाँ के लगभग सभी चायबागानों में संस्था के समर्थन से दो सौ से अधिक धर्मसभा हुयीं ! धीरे-धीरे प्रभाव बढता गया ! दिलीप कुमार के परिश्रम का ये परिणाम हुवा कि मेरी सभा में जन सैलाब आता ! लोग घंटों मुझे सुनते ! अपनी संस्कृति और तद्कालीन सत्तासीन दल से उनका मोह भंग होता ! एक मुहिम मैंने चलायी थी- “मन्दिर एवं धार्मिक अनुष्ठानों में मोमबत्ती” का बहिष्कार ! यह अत्यंत ही सफल रहा ! तद्कालीन समाज को जोडने एवं राजनीति की दिशा मोड़ने के लिये ऐसी ही जनजागरण अभियान की आवश्यकता थी।
मित्रों !ज्योतिष  एवं आयुर्वेदाचार्य होने के कारण धर्मसभाओं के साथ-साथ निःशुल्क आयुर्वेदिक औषधियों का वितरण मैंने दिलीप कुमार,उदय शंकर गोश्वामी जी, पुष्पा गोश्वामी,रवीं नोनिया, अशोक वर्मा,अमरनाथ खण्डेलवाल, मेरी माँ के सदृश्य दिवंगत शकुन्तला गोश्वामी,श्रीमान दीप चन्द्र शर्मा जी,बाबू लाल भूरा जी,परमेश्वर काबरा जी,सुतपा चक्रवर्ती जी जैसे सैकड़ों लोगों ने तन-मन-धन से इस कार्य में सहयोग किया ! इस हेतु काशी से आते समय मैं स्वयं दो लाख लेकर आया था जिसके साक्षी अमरनाथ खण्डेलवाल जी है जिसका पूरा व्यय मैंने आश्रम पर किया। इसी हेतु-“सिद्धि विनायक सेवाश्रम”की स्थापना हुयी ! सब कुछ सुचारू रूप से चल रहा था ! उपरोक्त लोगों के साथ दर्जनों हमारे आत्मीय मासिक रूप से बहुत धन देते थे ! जिसके लिये ट्रस्ट था ! दैनिक दो से ढाई सौ लोगों को निःशुल्क औषधियों के वितरण एवं उनके निर्माण हेतु बहुत सारे धन एवं लोगों की आवश्यकता थी ! ट्रस्ट साक्षी है कि उसके द्वारा आवंटित धन एवं दानपेटी से प्राप्त घन बहुत ही अपर्याप्त था ! मेरा व्यक्तिगत व्यय तो उदय शंकर जी,आदरणीया माता जी पूरा पूरा वहन करते थे ! उस अवसर पर मेमोदा के सहयोग का मै आजीवन ऋणी रहूँगा ! उन्होंने जो किया वो असाधारण था! जीवन में पहली बार मैं लकडी की पलंग पे सोया जो मुझे अशोक वर्मा जी ने दी थी। और मञ्जू खण्डेलवाल जी के दिये पात्र,गद्दे,रजाई मेरी वह पूंजी थी जो अभीतक एक अनमोल धरोहर के रूप में सुरक्षित है ।
हम ,दिलीप कुमार और सुतपा दीदीजी दिनभर चौदह से भी अधिक घंटे जी तोड़ परिश्रम करते थे,औषधियों के निर्माण एवं वितरण के कार्य में मेरी सहायता माता जी,सुतपा जी ,राजकुमारी जी,पुष्पा भारती जी प्राण प्रण से करती थीं। उस समय सुतपा चक्रवर्ती जी अत्यंत ही बीमार भी रहती थीं उसके कुछ समय पहले ही उनका एम्स में बहुत खतरनाक ह्रदयरोग की शल्य-चिकित्सा होने के कारण उनके हाथ पांव की उंगलियां बिलकुल ही टेढी और जकड गयीं थीं ! मेरी चिकित्सा से वे स्वस्थ होने के कारण अपने-आप को उन्होंने सिद्धिविनायक आश्रम की सेवा में झोंक दिया।
चुनाव हुवे ! मैंने संस्था के लिये अपने आप को सन्यासी होते हुवे भी बीजेपी के प्रचार-प्रसार में झोंक दिया,चुनाव सम्पन्न हुवे ।
बस ! दिलीप कुमार को सिद्धि विनायक आश्रम से इसीलिए हटाया गया जिससे आश्रम बन्द हो जाये !—“” यही वह समय था जब मुझे और दिलीप कुमार को भाषायी भेदभाव के कारण संस्था ने जड से उखाड़ फेंका।””
क्यों कि सिद्धि विनायक आश्रम की उपयोगिता माननीय श्री कवीन्द्र पुरकायस्थ जी की विजय के साथ समाप्त हो चुकी थी ! धन की व्यवस्था करने में हमलोगों की प्रतिष्ठा और अस्मिता घायल हो रही थी ! अंततः ट्रस्ट की सार्वजनिक सभा हुयी, जिसमें सभी औपचारिकताओं के साथ-साथ विधिवत् आश्रम के समापन की घोषणा हुयी, तब मैंने समीति की अंतिम सभा में स्पष्ट घोषणा की थी कि मैं -“वापस आऊँगा ! अपने लक्ष्य के लिये फिर आऊँगा” और मैंने फिलहाल सिल्चर छोड़ दिया ! और चलो सिद्धि विनायक आश्रम भी बन्द हो गया।
मुझे भलीभांति स्मरण है कि तब दिपचन्द्र शर्मा जी,मञ्जू खण्डेलवाल,बाबूलाल भूरा एवं हमारी भगिनी दिवंगत प्रमिला गोश्वामी जी ने मुझे यहाँ से किसी सर्वथा ही अज्ञात पथ पर जाने के लिये-दस दस हजार” रुपये की बिना मांगे सहायता की थी।
उस समय सुतपा चक्रवर्ती जी ने मुझसे कहा था कि मेरा ये जीवन आपकी औषधियों से बचा अब यह आपकी सेवा हेतु ही जीवित रहेगा अन्यथा नहीं रहेगा ! और तब उनको मैं अपनी जन्मदात्री माँ के रूप मे स्वीकार कर अपने साथ लेकर गया ! उनके परिवार की सर्वसहमति से लेकर और अज्ञात पथ पर गया।
मेरे पीछे ! मुझपर आरोप लगाया गया था कि मैं एक बंगाली लडकी को लेकर भाग गया ! किन्तु आज ये स्पष्ट हो चुका है कि “श्रीसुतपा चक्रवर्ती जी” मेरी मानसिक माँ हैं ! वैसे ऐसा ही मिथ्या आरोप लगभग अट्ठाइस वर्ष पूर्व उधारबंध की भी एक बच्ची के संदर्भ में संस्था(!!!) ने दिलीप कुमार पर लगाया था। अर्थात ये निश्चित है कि कितनी भी बडी समस्या हो वो परिवार से बडी नहीं होतीं ! राजनीति की बलिवेदी पर जैसे मुझे तब बलिदान किया गया था वही इतिहास पुनश्च लिखा जा रहा है !
“मैं पुनश्च व्यक्तिगत रूप से अपने-आप को सम्हाल कर सुतपा चक्रवर्ती जी के साथ वापस आ गया” जहाँ से मुख के पीछे बदनामी के दाग लेकर गया था वहाँ फिर आ गया ये बताने के लिये कि-“न हिन्दू पतितो भवेत्” और अंत में ये फिर कहूँगा कि-“संघे शक्ति कलियुगौः” हमलोग विजयी होने के लिये जन्म लिये हैं और विजयी होकर मृत्यु का वरण करेंगे.. आनंद शास्त्री सिलचर, सचल दूरभाष यंत्र सम्पर्कांक 6901375971″

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