810 Views
भाजपा ने असम की करीमगंज लोकसभा सीट जीतकर असंभव को संभव में बदल दिया। इसके पीछे असम के मुख्यमंत्री डॉक्टर हिमंत विश्वशर्मा की दूरदर्शिता और सोची समझी रणनीतिक सुझबुझ थी। करीमगंज लोकसभा में अल्पसंख्यक मतदाताओं की संख्या बहुसंख्यक से लगभग 2 लाख ज्यादा होने के बावजूद सीधे मुकाबले में कांग्रेस प्रत्याशी एडवोकेट हाफिज राशिद चौधरी को 18360 मतों से पराजित करके भाजपा के निवर्तमान सांसद कृपानाथ माला ने लगातार दूसरी बार विजय हासिल की। लोगों का कहना है कि कृपानाथ माला इतने भाग्यशाली है कि वह तीन बार विधायक और दूसरी बार सांसद चुने गए।
आईए देखते हैं हिमंत विश्वशर्मा ने असंभव को संभव कैसे किया? पूरे लोकसभा क्षेत्र में इस बात का जोर-शोर से प्रचार किया गया की अल्पसंख्यक मतदाताओं का वोट कांग्रेस, यूडीएफ और निर्दलीय में बंट जाएगा। यूडीएफ के फेल मारने के बावजूद 14 निर्दलीय अल्पसंख्यक प्रत्याशियों ने अपना काम बखूबी निभाया। निर्दलीय लगभग 50000 वोट ले गए, 29000 वोट यूडीएफ को मिला। हिमंत विश्वशर्मा ने कांग्रेस की मुख्य टीम को जिसमें दो विधायक और अनेकों वरिष्ठ कार्यकर्ता थे भाजपा के पक्ष में ला खड़ा किया। इससे कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा कमजोर हो गया, कांग्रेस में अपेक्षाकृत-नए आए लोकसभा के प्रत्याशी हाफिज रसीद चौधरी ध्रुवीकरण का फायदा उठाने में विफल रहे फिर भी उन्होंने भाजपा प्रत्याशी को कड़ी टक्कर दी।
मैं निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ूंगा लगभग सबको पता था, इसकी जानकारी डा. हिमंत विश्वशर्मा को भी थी, उन्होंने भांप लिया कि अगर चाय बागान से उम्मीदवार नहीं रहेगा तो हिंदीभाषी और चाय जनगोष्ठी के मतदाताओं को एकजुट करना मुश्किल होगा। इसके लिए उन्होंने एक बार फिर से करीमगंज सामान्य सीट होने के बावजूद अनुसूचित जाति के वर्तमान सांसद कृपानाथ माला पर दांव आजमाने का निश्चय किया। हालांकि करीमगंज भाजपा की टीम और भाजपा के विधायक कृपानाथ माला के समर्थन में नहीं थे। लेकिन हिमंत विश्वशर्मा को यह मालूम था की चाय जनगोष्ठी और हिंदीभाषी मतदाताओं को एकजुट करने और अल्पसंख्यकों का भी वोट खींचने में कृपानाथ माला कामयाब होंगे। उन्हें पता था कि बांग्लाभाषी मतदाता भाजपा के परंपरागत वोटर है, उनका वोट बीजेपी को मिलेगा ही। उन्होंने चाय श्रमिक नेता राजदीप ग्वाला और बराक चाय श्रमिक यूनियन को काम में लगाया। यूनियन के लोगों ने और स्वयं राजदीप ग्वाला ने पूरे लोकसभा क्षेत्र के चाय जनगोष्ठी और हिंदीभाषी क्षेत्रों में सघन संपर्क किया और जहां कहीं भी मेरे संपर्क में भाजपा के नाराज कार्यकर्ता आते थे, लोग उन्हें मनाने के लिए तुरंत पहुंच जाते थे। चाय बागान का वोट मेरे पक्ष में न जाए, इसके लिए पूरी बीजेपी ने अथक परिश्रम किया, जिसका सुनहरा परिणाम सामने है।
पाथरकांदी के विधायक कृष्णेन्दु पाल की कृपानाथ माला से नहीं बनती, इसके चलते भाजपा को नुकसान हो सकता था किंतु यहां भी मुख्यमंत्री ने कृष्णेंदु पाल को मंत्रिमंडल में शामिल करने का ऑफर देकर काम में लगा दिया। यही नहीं तो राताबाड़ी के विधायक विजय मालाकार को भी कम से कम 10000 वोट बढ़ाने का दायित्व दे दिया। कृपानाथ माला को जिताने में विजय मालाकार की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण थी। राताबाड़ी में विजय मालाकार की लोकप्रियता के चलते भी भाजपा की विजय आसान हो गई। जहां एक तरफ कांग्रेस प्रत्याशी अकेले लड़ रहे थे, उनके साथ ना तो कोई विधायक था और ना ही मजबूत संगठनात्मक ढांचा, वहीं भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में भाजपा का मजबूत संगठनात्मक तंत्र, चार-चार विधायक, परोक्ष रूप से यूडीएफ के विधायक भी भाजपा के लिए काम कर रहे थे, स्वयं मुख्यमंत्री ने पांच-पांच सभाएं की और कृपानाथ माला के विजय को सुनिश्चित किया। डॉ हिमंत विश्वशर्मा ने छोटी से छोटी बातों को भी नजरअंदाज नहीं किया और पूरे करीमगंज में मजबूत किलेबंदी करके अपनी दुरदर्शिता भरी रणनीति से असंभव लगने वाली करीमगंज सीट पर भाजपा को विजय दिलाई। कृपानाथ माला ने भी सिद्ध कर दिया कि वे भाग्यशाली हैं और सफलता उनका चरण चुमती है।