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अग्रहन के सुनहरे महीने में बराक के खेतों में सोने सी फसल
किसानों में खुशी की लहर—उचित मूल्य मिले तो बढ़ेगा कृषि उत्साह, विशेषज्ञों की राय
हीरक बनिक, रामकृष्णनगर, 8 दिसंबर:
कई वर्षों बाद इस बार ग्राम बराक में धान की फसल बेहद शानदार हुई है। न बाढ़, न सूखा—किसी भी प्राकृतिक बाधा ने उत्पादन को प्रभावित नहीं किया। ऐसा प्रतीत होता है मानो प्रकृति ने इस बार विशेष कृपा बरसाई हो। सुनहरा ‘अग्रहन’ महीना इस वर्ष सचमुच सोने की फसल लेकर आया है। ग्राम बराक के अधिकांश खेत सुनहरे धान से लहलहा उठे हैं और किसानों की खुशी देखते ही बनती है।रामकृष्णनगर उप–जिला तथा बराक के विभिन्न इलाकों में इस वर्ष धान की पैदावार बेहद उत्साहजनक है। पुराने जमाने की किस्में—बड़दाना, आईआर-8 या चानमनी—अब लगभग बंद हो चुकी हैं। आजकल छोटे दाने वाले चावल की मांग ज्यादा होने से किसान मुख्य रूप से ‘रंजित’ किस्म की खेती करते हैं। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, सही तरीके से देखभाल करने पर प्रति बीघा 12 से 18–19 मन तक उत्पादन संभव है। उत्पादन अच्छा होने पर किसानों को खर्च निकालकर कुछ लाभ भी मिल जाता है। लेकिन उत्पादन कम होने पर किसानों को नुकसान झेलना पड़ता है।एक बीघा खेती पर खर्च और आय का अनुमान, किसानों के अनुसार—
हल चलाने पर करीब 2000 रुपये,
धान की पौध तैयार करने पर 500–600 रुपये,
रोपाई मजदूरी पर 2500 रुपये,
खाद–बीज व अन्य खर्च पर 500 रुपये,
कटाई पर करीब 3000 रुपये,
और मड़ाई–झाड़ाई पर 1000 रुपये खर्च होता है।
कुल मिलाकर एक बीघा धान की खेती में लगभग 10,000 रुपये तक की लागत आती है। वर्तमान बाजार में धान की कीमत मन–प्रति लगभग 900 रुपये मिल रही है। यदि उत्पादन 13–14 मन प्रति बीघा तक हो तो किसानों को कुल 11–12 हजार रुपये तक मिल सकते हैं।विशेषज्ञों की राय है कि यदि धान का मूल्य 1100–1200 रुपये प्रति मन तय हो जाए, तो किसानों में कृषि कार्य को लेकर काफी उत्साह बढ़ेगा। हालांकि ज्यादातर किसान इतनी हिसाब–किताब नहीं करते। उनके लिए सबसे बड़ी खुशी यही है कि फसल अच्छी हुई है। गांवों की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है। धान, साग–सब्ज़ी, पान, सुपारी आदि का उत्पादन और उचित मूल्य मिलने पर ग्रामीण परिवारों में खुशहाली आती है। गरीब किसान एक ही उम्मीद करता है—“साल भर दुध–भात खाकर दिन कट जाए।” इस वर्ष वह उम्मीद काफी हद तक पूरी होती दिखाई दे रही है। रामकृष्णनगर उप–जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में इन दिनों धान की कटाई जोरों पर है। खेतों से कटे हुए सुनहरे धान चातलों (खलिहान) में पहुँचाए जा रहे हैं।पहले जहां बैल या गाय से मड़ाई की जाती थी, अब उसकी जगह पावर टिलर और ऑटो रिक्शा ने ले ली है। इस समय धान की कीमत क्विंटल–प्रति 2200 रुपये चल रही है। हालांकि इस वर्ष सुपारी का उत्पादन बहुत अच्छा नहीं रहा, फिर भी स्थिति खराब भी नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस बार सुपारी उपत्यका क्षेत्र से बाहर भी भेजी जा रही है, जिससे बाजार में तेजी है।ट्रक–भर सुपारी बाहर भेजे जाने से स्थानीय किसानों को अच्छी कीमत मिल रही है। पिछले वर्षों में विभिन्न कारणों से सुपारी को बाहर जाने की अनुमति नहीं थी, जिससे स्थानीय बाजार में दाम गिर जाते थे और किसान घाटे में रहते थे। इस बार स्थिति उलट है। समय पर बारिश होने से साग–सब्ज़ी एवं धान—दोनों की पैदावार अधिक हुई है। किसान स्थानीय सब्ज़ियों को भी अच्छी कीमत पर बेच पा रहे हैं, जिससे उनकी आय में वृद्धि हुई है। किसानों का कहना है कि यदि धान का उचित मूल्य मिल जाए, तो कोई भी किसान मेहनत से पीछे नहीं हटेगा।हालांकि सरकार किसानों के लिए करोड़ों की परियोजनाएँ लाती है, लेकिन उनका सही क्रियान्वयन कितना हो रहा है—यह बड़ा प्रश्न है। पावर टिलर, पावर पंप, ट्रैक्टर आदि के लिए जो सहायता योजनाएँ आती हैं, वे कितने वास्तविक किसानों तक पहुँचती हैं—इस पर ग्रामीणों ने सवाल उठाए हैं। किसान आरोप लगाते हैं कि कई योजनाओं में भ्रष्टाचार और लूट की घटनाएँ सामने आती हैं। रबी सीजन के लिए आलू के बीज की आपूर्ति भी किसानों के अनुसार पर्याप्त नहीं होती। समूह–आधारित वितरण के नाम पर कई किसानों को केवल 2–3 किलो तक ही बीज मिलता है। किसान यह भी बताते हैं कि अब कृषि अधिकारी शायद ही कभी गाँवों में आते हैं और किसानों की समस्याएँ सीधे समझने का प्रयास करते हैं। फिर भी किसान अपने स्तर पर खेती जारी रखे हुए हैं। ग्रामीण अर्थव्यवस्था के उत्थान और किसानों की समृद्धि के लिए सरकारी योजनाओं का पारदर्शी और प्रभावी क्रियान्वयन अत्यंत आवश्यक है। यदि कृषि विभाग गंभीरता से अपनी भूमिका निभाए और किसानों को उचित मूल्य मिले, तो निश्चित रूप से ग्रामीण समाज के साथ–साथ देश की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में भी व्यापक सुधार संभव है।





















