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आचार्य आनंद शास्त्री का लेख

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मदरसों के तालीम की हकीकत–

असम के मुख्यमंत्री जी द्वारा अपंजीकृत मद्रसों को बंद करने की योजना को हम आप सभी को अपने आप में एक ऐतिहासिक संकल्प के रूप में देखना चाहिये, क्यूँ कि धरातलीय स्तर पर देखने पर ये धारणा धीरे-धीरे सत्य सिद्ध हो रही है कि-“इनमे केवल अल्लाह के नाम पर जिहाद सिखायी जाती है” यहाँ फिकाह ( इस्लामिक कानून ),आइने अकबरी,कुरान, हदीस सिखायी जाती है,यहाँ यह कहना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि भारतीय संस्कृत विद्यालय अथवा गुरूकुल में -“मनुस्मृति” अर्थात हिन्दूओं के वैदिकीय संविधान को नहीं सिखाया जाता,यहाँ पर व्याकरण तथा यज्ञात्मक(प्रकृति की सम्वर्धन विधा)कर्मकांड के साथ-साथ प्रस्थान-त्रयी अर्थात श्रीमद्भगवद्गीता,ब्रम्हसूत्र एवं उपनिषद सिखाये जाते हैं जिनमें किसी देवी-देवता अथवा कर्मकांड न होकर पूर्णतया वैज्ञानिकीय आध्यात्मिक वेदान्त होता है अतः इनपर विश्व के किसी भी देश ने कभी ऊंगली नहीं उठायी गयी।

भारतीय इतिहास इस तथ्य का साक्षी है कि मुस्लिम आक्रांताओं ने जब भी भारत पर आक्रमण किया ! तो कुरान का गुलाम बनाने के लिये विशाल संख्या में निरीह हिन्दू जनता का तलवार की नोक पर धर्मान्तरण किया,और तब उनके समक्ष यह समस्या थी कि हमने इनको मुस्लिम तो बना लिया ! किन्तु इनको मजहबी तालीम कैसे दी जाये ? 

इन्होंने हमारे मन्दिरों को ढहा दिया,हमारे विद्यालयों को नष्ट कर दिया,हमारे विद्वान शिक्षकों की हत्या कर दी,किन्तु जबरन मुस्लिम बनाये लोगों के लिये मन्दिर के अवशेषों पर मस्जिद बनानी पडी क्यूँ कि इनकी समस्या थी कि हमारे धर्मान्तरित पूर्वजों को  नमाज अता करना और मानसिक रूप से इस्लामिक रिवाजों,खानपान, जिल्लेइलाही (महान मुस्लिम बादशाहों) मुस्लिमों का इतिहास कैसे पढाया जाय ? ताकि वो यहाँ से निकल कर जिहाद कर सके,वो ये नहीं जानते कि-

जंग में कत्ल बेवकूफ्र फर्माबरदार सिपाही होंगे।

लेकिन सुर्ख रू तुर्किये जिल्ल ऐ इलाही होंगे॥

इन बेवकूफ काफिरों को इस्लामिक देशों का गुलाम कैसे बनाया जाय ? और इसके लिये आवश्यक था कि उनको आधुनिक शिक्षा पद्धति और भारतीय प्राचीन इतिहास से दूर रखा जाये।

इतिहास साक्षी है कि-“तालीब”अर्थात शिक्षित जमात आज तालिबान के नाम से जाती है,और मजहबी तालिब अर्थात मदरसों से मजहबी तालीम लेकर जिहाद की राह पर निकलने वालों को-“मुजाहिद्दीन” कहते हैं।

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि किसी भी मशलक के मशवरे देने वाले मदरसे हों,अगर वो पंजीकृत होंगे तो भी आप उनकी वेबसाईट पर जाकर देखना, वहाँ इंग्लिश अथवा हिन्दी में लिखा होगा कि यहाँ इंग्लिश,विज्ञान,गणित आदि-आदि सिखायी जाती है किन्तु इसके आगे-“अरबी”भाषा में अवस्य ही कुछ लिखा होता है और वो अरबी में इसलिये ताकि जल्दी कोई उसे पढ न पाये ! वैधानिक खाना-पूर्ति हो गयी और मुख्य बात ढंकी की ढंकी रह गयी।कलम में स्याही की जगह खून भरने इनको आता है,यही सिखाया जाता है।

इन्हें यहाँ चार बातें सिखाना अनिवार्य है,मदरसों की ये बुनियादी तालीम है-(१)”गर दुनिया में कहीं शिर्क (मूर्तिपूजा) होगा, कुफ्र होगा, इर्तिदाद होगा (मुसलमान इस्लाम छोड़कर जायेगा) तो उसकी सजा मौत होगी और वह सजा हमें नाफिज करने का हक है।इसीलिए किसी भी मुस्लिम के मजहब छोड़ने पर उसे मारने का फरमान देते हैं।

(२) दुनिया में गैर मुस्लिम सिर्फ महकूम (शासित) होने के लिए  हैं। मुसलमानों के सिवा किसी को दुनिया पर हुकूमत (शासन) का हक नहीं है। गैर मुस्लिमों की हर हुकूमत नाजायज है। जब हमारे पास ताकत होगी। हम उसको नेस्तेनाबूद कर देंगे।

(३) दुनिया में मुसलमानों की एक ही हुकूमत होनी चाहिए जिसको खिलाफत कहते हैं।मतलब इस्लाम के अलावा दुनिया के सभी मज़हबों के खिलाफ रहना बस “खलीफा” को मानना।

(४)और यह कि जो लोकतंत्र है वह”कुफ्र” है उसके लिए इस्लाम में कोई जगह नहीं है। प्रिय मित्रों “इन्हीं मजहबी कट्टरता सिखाने के केन्द्र होने कारण हमारे यशस्वी मुख्यमंत्री श्रीमान हेमन्तो बिस्वशर्मा जी द्वारा इनको प्रतिबंधित करने की बात कही गयी है,जिसका हम समर्थन करते हैं–“आनंद शास्त्री”

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