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‘मारवाड़ी समाज पुराणतो अर आजको”.
पुराणतो अर आजका मारवाड़ी समाज का लोंगां मं भोत फर्क है.आज है शक्ति सूं उपर दिखाओ अर कर्म की अपेक्षा जर, जोरु ,जमीं मं विशेष रुचि.पहली थी साधारण आवश्यकता की पूर्ती अर सुविधा.आज जो साधारणता है ,बा पूरी बदलगी. समयानुसार कोनी बदली, पर बदलगी आवश्यकता आपणां संस्कारां न किनारे फेंक कर.
पहली हल्का ( आर्थिक रुप सूं )परिवार में कुछ होणे सूं समाज का लोग आपकी तरफ सूं कुछ न कुछ स्हारो लगाता जियां छोरी का मुकलावा मं समाज का अर लाईलागता कई जणां मिलकर, कठेई एकला दोकला ही ईंयाको उपहार देता जिंसू जरुरत पूरी हो जाती,मदद देता आर्थिक भी अर गृहस्थी का साजो सामान सूं भी.पण,पण आज,आज सब उठग्या.ईब रासो बदल ग्यो अर लोग इसा ब्याव मं जाणे सूं कतरावे लाग्या.
इब थोड़ा या पूरा हाई फाई फंक्शन कानी देखे लागा.अर जाणीयां खासा मेहमानां की नजर दोड़े लागी, कठीणे है, के? मधुशाला यानि बार काऊंटर और के.? के है जोगाड़ ?कुणसे रूम मांय इंतजाम है? सेवा बानगी मं सर्विस बोय है तो सारो मूड खराब होग्यो. फेरुं ओलमा हाजीर है. के इंतजाम कियो है? इंयाकी है आज क मारवाड़ी समाज की सोच अर आजको मारवाड़ी समाज.
इब तो हालत और भी खराब है,छोरी को सावो करणों मतलब तोप के मुंह पर बैठकर तोपची को एक्सन देखणों कि कद के होवे.
दहेज को तो नाम ही कोनी लेवे पण छोरेहाला बतावे खरचो?पूछो मति, लाखां हाला पहूंच गया करोड़ां तक, पतों नहीं क्यूं ……….
देखां शादी विवाह के मामला मं सुधार तांई आगीने होणे हालो हाई फाई मारवाड़ी सम्मेलन के कारवाई करे.
मेरा बिचारां मं ईंयाके विवाह मं जरुर जा्वो,टाबरां न( उमर सूं टाबर नहीं) आशीर्वाद देवो, पण जीमों मति जे जीमों तो केवल साधारण पूड़ी-सब्जी,चावल खाकर आ जावो,भांति भांति की अणगिणत बानगी,माने छप्पन प्रकार की छिंयासी, मं हाथ मति घालो.ईंयां के कड़े पणे सूं सामाजिक कारवाई को विचार करणों चहिए.देखां समाज का मानीता के बिचार करे अर कठे तक सफल होवे.केवल विचार ही करे या अमल में भी लावे.
मेरी जांण मं ओर कुछ होवो या मति होवो, पण लेखक ने मानीता लोग इतणी गाल काडेगा कि सम्भाल कर रखणे के लिए पांच सात गोदामां किराए पर लेणे की आवश्यकता पड़ सके है.
मुरारी केडिया ९४३५०३३०६०.