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पूर्ण गौरव के साथ राम जन्मभूमि मंदिर के शिखर पर लहराया भगवा ध्वज

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अयोध्या। 25 नवम्बर। रामराज्य का धर्मध्वज आज पूरे आदर और श्रद्धा के साथ श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर के उत्तुंग शिखर पर लहराया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने ध्वज को 191 फिट ऊंचाई पर चढ़ाने की प्रक्रिया पूरी की। अत्यंत उल्लास के बीच धीरे-धीरे शिखर की ओर बढ़ते ध्वज को लोग सांस थामे देखते रहे। हजारों की संख्या में उपस्थित हर जाति वर्ग के लोग भाव विभोर होकर पांच सौ वर्षों के निरंतर संघर्ष के बाद आए इस सार्थकता दिवस के साक्षी बने। इसके पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व सरसंघचालक डॉ. भागवत ने रामदरबार में आरती कर रामलला का दर्शन पूजन भी किया।
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चम्पत राय के संचालन में हुए कार्यक्रम के प्रारंभ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री, सरसंघचालक जी समेत सभी आगंतुकों का हृदय से अभिनंदन किया। उन्होंने कहा कि भव्य मंदिर पर ध्वजारोहण एक यज्ञ की पूर्णाहुति ही नहीं अपितु नए युग का शुभारंभ है। रामराज्य के मूल्य कालजयी हैं। अनगिनत पीढ़ियों की प्रतीक्षा भव्य मंदिर के रूप में है। यह ध्वज धर्म और मर्यादा के साथ ही राष्ट्रधर्म और विकसित भारत की संकल्पना का प्रतीक है। “नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना..” की रामराज्य की परिकल्पना में सभी को अन्न, स्वास्थ्य सुविधा, आवास आदि उपलब्ध कराना है। यही रामराज्य की उद्घोषणा का संकल्प है। 500 वर्षों के संघर्ष के बाद इस ध्वजारोहण से अयोध्या अब उत्सवों की वैश्विक राजधानी बन गई है। मुख्यमंत्री ने अयोध्या के निरंतर विकसित होते स्वरूप पर भी चर्चा की।
इस अवसर पर डॉ. भागवत ने कहा कि आज का दिन हम सबके लिए सार्थकता का दिवस है। इसके लिए कितने लोगों ने सपना देखा, कितनों ने प्रयास किया, कितनों ने अपने प्राण अर्पण किए। आज वास्तव में अशोक जी, महंत रामचंद्र दास जी महाराज, डालमिया जी सहित कितने संत पुरुषों, गृहस्थ, विद्यार्थियों ने अपना प्रणार्पण किए, उनकी आत्माएं तृप्त हो रही होंगी। जो रह गए वह भी रोज मंदिर कब बनेगा की इच्छा व्यक्त करते थे। आज उस मंदिर निर्माण की शास्त्रीय प्रक्रिया पूर्ण हो गई। यह उसी ध्वज का आरोहण व रामराज्य का ध्वज है जो कभी अयोध्या में फहरता था और संपूर्ण विश्व में अपने आलोक से सुख शांति प्रदान करता था। उसी ध्वज को आज फिर से हमने नीचे से ऊपर चढ़ता हुआ, अपने शिखर पर विराजमान होते अपनी आंखों से देखा है। मंदिर बनने में भी समय लगा, 500 साल छोड़ें तो भी 30 साल तो लगे ही हैं। मंदिर के रूप में हमने कुछ तत्वों को उच्चतम शिखर पर पहुंचाया जिससे सारा विश्व ठीक चले। व्यक्तिगत, पारिवारिक जीवन से लेकर तो संपूर्ण सृष्टि का जीवन ठीक चले यहीं धर्म है। उस धर्म का प्रतीक भगवा रंग ही इस ध्वज का रंग है। इस धर्म ध्वज पर रघुकुल का प्रतीक कोविदार वृक्ष है। देखा जाए तो यह कचनार जैसे लगता है। जबकि मदार और पारिजात दो वृक्षों का एक तरह से शंकर है। दोनों वृक्षों के औषधि गुण विद्यमान हैं। यह वृक्ष उस रघुकुल की सत्ता का प्रतीक है जिससे यह व्यक्त होता है कि स्वयं धूप में खड़े रहकर दूसरों के लिए छाया प्रदान करें। ध्वजारोहण यह भी संदेश देता है कि इस जीवन का झंडा शिखर तक पहुंचना है, चाहे जितनी प्रतिकूलता, कठिनाई क्यों न हों। भले ही सारी दुनिया स्वार्थ में बैठी हो, लेकिन हमारा संकल्प उन सूर्य भगवान के तेज जैसा है जिस रथ में एक ही चक्र है। रास्ता भी खराब है, संचालन के लिए सात-सात घोड़े हैं जिन्हें नियंत्रित करने के लिए सांपों के लगाम है और सारथी के पैर भी नहीं हैं। इसके बाद भी वह बिना थके पृथ्वी की गति के साथ गतिशील हैं। क्योंकि कार्य सिद्धि के भरोसे होते हैं। हिंदू समाज ने लगातार 500 साल और बाद के दीर्घ आंदोलन में अपने इस तत्व को सिद्ध किया और रामलला आ गए, मंदिर बन गया, ऐसे संदेश वाला भारत हमको खड़ा करना है। यह ध्यान रहे संपूर्ण दुनिया में सुख बांटने वाला भारतवर्ष खड़ा करने का काम शुरू हो गया है। इस प्रतीक को देखकर हिम्मत रखकर इस प्रकार सतत प्रयास करते हुए, सब प्रकार की प्रतिकूलताओं में भी हम सबको मिलकर करना पड़ेगा।
उन्होंने कहा कि आज हमारे पुरुषार्थता, संकल्प की पुनरावृत्ति का यह दिवस है, जो संकल्प हमारे पूर्वजों ने दिया है। यह देश जहां हम जन्मे हैं, सबसे प्राचीन है, इसलिए बड़े भाई हैं, ऐसा जीवन जिएं कि चरित्र मानवता, जीवन की विद्या सभी लोग भारतवासियों से सीखें। ऐसे भारतवासियों का परम वैभव, सर्वशक्ति संपन्न और सबके लिए खुशी, शांति बांटने वाला हो। सबको विकास की सफलता देने वाला भारतवर्ष खड़ा करना है। यह विश्व की अपेक्षा है, यही हमारा कर्तव्य है। मंदिर में श्रीरामलला विराजमान हैं, उनका नाम लें और इस कार्य की गति बढ़ाएं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि देश और दुनिया इस ऐतिहासिक पल के साक्षी बन रहे हैं। आज अयोध्या नगरी भारत की सांस्कृतिक चेतना के एक और उत्कर्ष बिंदु की साक्षी बन रही है। संपूर्ण भारत, संपूर्ण विश्व राममय है। हर राम भक्तों को संतोष, असीम कृतज्ञता, अपार अलौकिक आनंद है। सदियों का संकल्प आज सिद्धि को प्राप्त हो रहा है। आज उस यज्ञ की पूर्णाहुति है जिसकी अग्नि 500 वर्ष तक प्रज्वलित रही। यह एक पल भी आस्था से डिगी नहीं, एक पल भी विश्वास से टूटी नहीं। आज भगवान श्रीराम के गर्भगृह की अनंत ऊर्जा श्रीराम परिवार का दिव्य प्रताप, इस धर्म ध्वजा के रूप में यह दिव्यतम्, भव्यतम् मंदिर प्रतिस्थापित हुआ। उन्होंने कहा कि यह पुनर्जागरण का ध्वज है, इसका भगवा रंग इस पर रचित सूर्यवंश की ख्याति, वर्णित ‘ॐ’ शब्द और अंकित कोविदार वृक्ष राम राज्य की कीर्ति को प्रतिरूपित करता है। यह ध्वज संकल्प है, सफलता है, संघर्ष से सृजन की गाथा है, सदियों से चले आ रहे सपनों का साकार स्वरूप है। यह ध्वज संतों की साधना और समाज की सहभागिता की सार्थक परिणति है। यह आने वाली सदियों तक प्रभु राम के आदर्श और सिद्धांतों का उद्घोष करेगा। यह धर्म ध्वज आह्वान करेगा सत्यमेव जयते का। यह धर्म ध्वज प्रेरणा बनेगा ‘प्राण जाय पर वचन न जाई’ का। अर्थात जो कहा जाए वही किया जाए। धर्म ध्वजा कामना करेगा परेशानी से मुक्ति समाज में शांति और सुख हो, यह ध्वज दूर से ही रामलला की जन्मभूमि के दर्शन कराएगा। युगों युगों तक प्रभु श्री राम के आदेशों और प्रेरणा को मानव मात्र तक पहुंचाएगा। संपूर्ण विश्व के करोड़ों राम भक्तों को इस अद्वितीय अवसर की हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं। आज उन सभी भक्तों को भी प्रणाम करता हूं हर उसे दानवीर का आभार व्यक्त करता हूं जिसने राम मंदिर निर्माण के लिए अपना सहयोग दिया मैं राम मंदिर के निर्माण से जुड़े हर श्रमवीर, हर कारीगर, हर योजनाकार, हर वास्तुकार सभी का अभिनंदन करता हूं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि अयोध्या वह भूमि है जहां आदर्श आचरण में बदलते हैं। यही वह नगरी है जहां श्रीराम ने अपना जीवन पथ शुरू किया था। इसी अयोध्या में संसार को बताया कि एक व्यक्ति कैसे समाज की शक्ति से, उसके संस्कारों से, पुरुषोत्तम बनता है जब श्रीराम अयोध्या से वनवास को गए तो वे युवराज राम थे, लेकिन जब लौटे तो मर्यादा पुरुषोत्तम बन करके आए। उनके मर्यादा पुरुषोत्तम बनने में महर्षि वशिष्ठ का ज्ञान, महर्षि विश्वामित्र की दीक्षा, महर्षि अगस्त्य का मार्गदर्शन, निषाद राज की मित्रता, मां शबरी की ममता, भक्त हनुमान का समर्पण इन सब की शक्ति की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
उन्होंने कहा कि विकसित भारत बनाने के लिए भी समाज की इसी सामूहिक शक्ति की आवश्यकता है। मुझे बहुत खुशी है की राम मंदिर का दिव्य प्रांगण भारत के सामूहिक समर्थ्य की भी चेतन स्थल बन रहा है। यहां सप्त मंदिर बने हैं, यह माता शबरी का मंदिर बना है जो जनजातीय समाज के प्रेम भाव और आतिथ्य परंपरा की प्रतिमूर्ति है। यहां निषादराज का मंदिर बना है यह उस मित्रता का साक्षी है जो साधन नहीं साध्य को उसकी भावना को पूजती है। यहां एक ही स्थान पर माता अहिल्या है, महर्षि वाल्मीकि है, महर्षि वशिष्ठ है, महर्षि विश्वामित्र है, महर्षि अगस्त्य है और संत तुलसीदास हैं। रामलला के साथ-साथ इन सभी ऋषियों के दर्शन भी यहीं पर होते हैं। यहां जटायु जी और गिलहरी की मूर्ति भी हैं, जो बड़े संकल्पों की सिद्धि के लिए हर छोटे से छोटे प्रयास के महत्व को दिखाती है। मैं आज हर देशवासी से कहूंगा कि वह जब भी राम मंदिर आए तो सप्त मंदिर के दर्शन भी आवश्यक करें। यह मंदिर हमारी आस्था के साथ साथ मित्रता, कर्तव्य, और सामाजित श्रद्धाओं से मूल्यों को भी शक्ति देते हैं। हम सब जानते हैं कि हमारे राम भेद से नहीं भाव से जुड़ते हैं। उनके लिए व्यक्ति का कुल नहीं उसकी भक्ति महत्वपूर्ण है। उन्हें वंश नहीं मूल्य प्रिय है। शक्ति नहीं, सहयोग महान लगता है। हम भी उसी भावना से आगे बढ़ रहे हैं। पिछले 11 वर्षों में महिला, दलित, पिछड़े, अति पिछड़े, आदिवासी, वंचित किसान, श्रमिक, युवा हर वर्ग को विकास के केंद्र में रखा गया है। जब देश का हर व्यक्ति, हर वर्ग, हर क्षेत्र होगा, तब संकल्प की सिद्धि में सब का प्रयास लगेगा और सबसे प्रयास से ही 2047 जब देश आजादी के 100 साल मनाएगा, हमें 2047 तक विकसित भारत का निर्माण करना ही होगा। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के इतिहास के अवसर पर मैंने राम से राष्ट्र के संकल्प की चर्चा की, मैंने कहा था कि हमें आने वाले 1000 वर्षों के लिए भारत की नींव मजबूत करनी है। हमें याद रखना है जो सिर्फ वर्तमान का सोचते हैं वह आने वाली पीढ़ियों के साथ-साथ भावी पीढ़ियों के बारे में भी सोचना है, क्योंकि हम जब नहीं थे यह देश तब भी था, जब हम नहीं रहेंगे यह देश तब भी रहेगा। हम एक जीवंत समाज हैं, हमे दूरदृष्टि के साथ ही काम करना होगा। इसके लिए भी हमें प्रभु राम से सीखना होगा। हमें उनके व्यक्तित्व को समझना होगा। हमें उनके व्यवहार को आत्मसात करना होगा। हमें याद रखना होगा, राम यानी आदर्श, राम यानी मर्यादा, राम यानी जीवन का सर्वोच्च चरित्र, राम यानी सत्य और पराक्रम का संगम।
भारत को साल 2047 तक विकसित बनाना है, अगर समाज को समर्थ सामान बनाना है तो हमें अपने भीतर राम को जागना होगा। हमें अपने भीतर के राम की प्राण प्रतिष्ठा करनी होगी। 25 नवंबर का दिन अपनी विरासत पर गर्व का एक और अद्भुत धन तो लेकर आया है। इसकी वजह है धर्मध्वजा पर अंकित कोविदार वृक्ष। यह कोविदार वृक्ष इस बात का उदाहरण है कि जब हम अपनी जड़ों से कट जाते हैं तो हमारा वैभव इतिहास के पन्नों में दब जाता है। आज राममंदिर प्रांगण में कोविदार फिर से प्रतिष्ठित हो रहा है, यह केवल वृक्ष की वापसी नहीं है, यह हमारी स्मृति की वापसी है, हमारी अस्मिता का पुनर्जागरण है। हमारी स्वाभिमानी सभ्यता का पुनरोद्घोष है। यह हमें याद दिलाता है कि जब हम अपनी पहचान भूलते हैं तो हम स्वयं को खो देते हैं, और जब पहचान लौटी है तो राष्ट्र का आत्मविश्वास भी लौट आता है। इसलिए मैं कहता हूं देश को आगे बढ़ना है तो अपनी विरासत पर गर्व करना होगा। इसके साथ-साथ एक और बात भी महत्वपूर्ण है और वह है गुलामी की मानसिकता से पूरी तरह मुक्ति। आज से 190 साल पहले साल 1835 में मैकाले नामके एक अंग्रेज ने भारत को अपनी जड़ों से उखाड़ने के बीज बोए थे। मैकाले ने भारत में मानसिक गुलामी की नींव रखी थी। 10 साल बाद यानी 2035 में उस अपवित्र घटना को 200 वर्ष पूरे हो रहे हैं। कुछ दिन पहले एक कार्यक्रम में आग्रह किया था कि हमें आने वाले 10 वर्षों तक उसे 10 वर्षों का लक्ष्य लेकर चलना है कि भारत को गुलामी की मानसिकता से मुक्त करके रहेंगे।
सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि मैकाले ने जो कुछ सोचा था उसका प्रभाव कहीं व्यापक हुआ। हमें आजादी मिली लेकिन हीन भावना से मुक्ति नहीं मिली। हमारे यहां एक विकार आ गया कि विदेश की हर चीज हर व्यवस्था अच्छी है और जो हमारी अपनी चीज हैं उनमें खोट ही खोट है। गुलामी की यही मानसिकता है जिसने लगातार स्थापित किया हमने विदेश से लोकतंत्र लिया, कहा गया कि हमारा संविधान भी विदेश से प्रेरित है, जबकि सच यह है कि भारत लोकतंत्र की जननी है।
हमारी व्यवस्था के हर कोने में गुलामी कि मानसिकता ने डेरा डाला हुआ था। भारतीय.नौ सेना का ध्वज में सिर्फ एक डिजाइन (प्रारूप) में बदलाव नहीं हुआ यह मानसिकता बदलने का क्षण था। यह वह घोषणा थी कि भारत अब अपनी शक्ति अपने प्रतीकों से परिभाषित करेगा न कि किसी और की विरासत से। यही परिवर्तन आज अयोध्या में भी दिख रहा है। यह गुलामि की मानसिकता ही है जिसने इतने वर्षों तक रामत्व को नकारा है, भगवान राम अपने आप में वैल्यू सिस्टम, ओरछा के राम राजा से लेकर रामेश्वरम के भक्त राम तक और शबरी के प्रभु राम से लेकर मिथिला के पाहुन रामजी तक भारत के हर घर में राम है। आने वाले 1000 वर्ष के लिए भारत की नींव तभी सशक्त होगी जब मैकाले की गुलामी के पौधे को हम अगले 10 साल में पूरी तरह ध्वस्त करके दिखा देंगे। अयोध्या धाम में रामलला का मंदिर परिसर भव्यतम हो रहा है और साथ ही अयोध्या को संवारने का काम लगातार जारी है। त्रेता युग की अयोध्या ने मानवता को नीति दी। 21वीं सदी की अयोध्या मानवता को विकास का नया मॉडल दे रही है। तब अयोध्या मर्यादा का केंद्र थी अब अयोध्या विकसित भारत का मेरुदंड बन कर उभर रही है। भविष्य की अयोध्या में पौराणिकता और नूतनता का संगम होगा। सरयू जी की अमृत धारा और विकास की धारा एक साथ बहेगी। यह अध्यात्म और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस दोनों का तालमेल दिखेगा। रामपथ, भक्तिपथ और जन्मभूमि पथ से नई अयोध्या के दर्शन होते हैं। अयोध्या में भव्य एयरपोर्ट है, आज शानदार रेलवे स्टेशन है। वंदे भारत और अमृत भारत एक्सप्रेस अयोध्या को बाकी देश से जोड़ रही है। अयोध्या वासियों को सुविधा मिले उनके जीवन में समृद्धि आए इसके लिए निरंतर काम चल रहा है। साथियों जब से प्राण प्रतिष्ठा हुई है तब से लेकर आज तक करीब क ई करोड़ श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आ चुके हैं। इससे अयोध्या और आसपास के लोगों की आय में आर्थिक परिवर्तन आया है। आज यूपी के अग्रणी शहरों में से एक बन रही है। आने वाला समय बहुत महत्वपूर्ण है। आने वाला समय नए अवसरों का है। नई संभावनाओं का है। भगवान राम के विचार हमारे प्रेरणा बनेंगे। हमें वह भारत बनाना है जो राम राज्य से प्रेरित हो और यह सभी संभव है जब स्वयं हित से पहले देश हित होगा, जब राष्ट्र हित सर्वोपरि रहेगा।
कार्यक्रम में राज्यपाल आनंदी बेन पटेल, ट्रस्ट अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास, कोषाध्यक्ष स्वामी गोविंददेव गिरि सहित अन्य न्यासीगण व आमंत्रित संत समाज व अनेक प्रतिष्ठित लोग मौजूद थे।

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