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क्यूं लिपटा है, इस मोह जाल में
कुछ ना साथ जाएगा,
जिसे मोह पड़ा हो डाल का
वो पक्षी ना अब उड़ पायेगा।
|जिसके पीछे दौड़ रहा तू
मैं तो मिथ्या साया हूँ,
मैं मोह दुःखदायक कहलाता हूँ।।
करूंमती के सौन्दर्य के वशीभूत,
ब्रह्मदत्त ने बांधे नगर के द्वार
ये बेड़िया ऐसी है,
जो ना करे किसी का उद्धार
पहन के चोलना आसक्ति का,
मैं कर्म बांधने आया हूँ,
मैं मोह दुःखदायक कहलाता हूँ।
| हर दुःख का जनक बन छाया
|कचा धागा अनुराग का,
सांसारिकता के चकाचौंध में
मैं शत्रु हूँ वैराग्य का।।
• मीना दूधोलिया, शिलांग