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सरकार आपके द्वार अभियान की तर्ज पर चुनाव आयोग को “एएसआई आपके द्वार” कार्यक्रम एवं राज्य सरकार को आई हेल्प यू कार्यक्रम चलाना होगा तब ही झारखण्ड में चुनाव आयोग की एसआईआर प्रक्रिया के नाम पर लाखों गरीब, प्रवासी और ग्रामीण/शहरी मतदाताओं का नाम कटने से बचेगा —विजय शंकर नायक
अनिल मिश्र/ रांची
आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच के केन्द्रीय उपाध्यक्ष एवं पूर्व विधायक प्रत्याशी विजय शंकर नायक ने झारखंड के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी को ईमेल पत्र भेजकर चुनाव आयोग की S प्रक्रिया को “लोकतंत्र पर सीधा हमला” और “मतदाता उन्मूलन अभियान” करार दिया है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि 12 लाख गरीब, प्रवासी, आदिवासी मूलवासी एवं ग्रामीण मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से काटे गए तो झारखंड की जनता अपने लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए सड़क पर उतरेगी और चुनाव प्रक्रिया की विश्वसनीयता ही खत्म हो जाएगी।नायक ने इसे “मताधिकार पर सुनियोजित प्रहार” बताते हुए कहा कि प्रवासी मजदूर, आदिवासी-मूलवासी और दलित-पिछड़े समुदाय में गहरी बेचैनी है। लाखों परिवार रोजगार के लिए बाहर जाते हैं, ग्रामीण /शहरी क्षेत्रों में पता बदलता रहता है और बीएलओ की पहुंच न के बराबर है। ऐसे में बिना ठोस सत्यापन के नाम काटना संवैधानिक अपराध है।
नायक ने आगे कहा की आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच के 6 प्रमुख सुझाव, चुनाव आयोग के लिए है जिन्हें तुरंत लागू किया जाना चाहिए
सरकार आपके द्वार” अभियान की तर्ज पर चुनाव आयोग “एसीआई आपके द्वार” अभियान शुरू हो – हर पंचायत, वार्ड और नगर निकाय में हफ्ते में 2-3 दिन विशेष कैंप लगें।
बीएलओ, सुपरवाइज़र व एइआरओ के मोबाइल नंबर पंचायत भवन व अखबारों में अनिवार्य रूप से प्रकाशित हों; 100 से ज्यादा नाम कटने पर कड़ी कार्रवाई हो। बिना दो लिखित नोटिस और घर-घर भौतिक सत्यापन के एक भी नाम न काटा जाए।
प्रवासी मजदूरों के लिए नाम काटने से पहले कम-से-कम 6 माह का सत्यापन पीरियड अनिवार्य हो। सभी बदलाव, कैंप और संपर्क नंबर स्थानीय अखबारों में नियमित प्रकाशित हों। दूरस्थ आदिवासी इलाकों में “मोबाइल वोटर सेवा वैन” चलाई जाए।इस बीच विजय शंकर नायक ने साफ कहा, “चुनाव आयोग का काम मतदाता जोड़ना है, काटना नहीं। 12 लाख नाम कटे तो झारखंड चुप नहीं बैठेगा। यह लोकतंत्र की चोरी है, इसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”जनता में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। अब देखना यह है कि चुनाव आयोग इन सुझावों को मानता है या झारखंड के मताधिकार पर संकट गहराता जा रहा है।




















