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रानी अब्बक्का चौटा: भारत की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी | 

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रानी अब्बक्का चौटा: भारत की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी | 
साल 2009 में रानी अब्बक्का नामक गश्ती पोत को भारतीय तटरक्षक बल में शामिल किया गया है।
क्या आपको यह नाम कुछ सुना हुआ सा नहीं लगता? आमतौर पर ‘रानी’ शब्द सुनते ही रानी लक्ष्मीबाई का ख्याल आता है या फिर रानी अवंतिबाई और रानी दुर्गावती के नाम दिमाग में आते हैं। लेकिन रानी अब्बक्का? आखिर यह रानी अब्बक्का कौन हैं जिनके नामपर इस शिप का नाम रखा गया है ? तो आइए मिलकर जानते हैं रानी अबबक्का के बारे में।
अब्बक्का का जन्म उल्लाल (कर्नाटक में स्थित एक नगर) के चौटा राजघराने में हुआ था। चौटा वंश मातृवंशीय परंपरा का पालन करता था। ज़ाहिर है कि मातृवंशीय परंपरा एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था थी जिसमें परिवार की स्त्रियों का ओहदा प्रमुख होता था और संपत्ति व शासन का हक बेटों के बजाय बेटियों को दिया जाता था। इसी परंपरा के मुताबिक अब्बक्का के मामा तिरुमला राय ने उन्हें उल्लाल नगर की रानी घोषित किया। रानी अब्बक्का को युद्ध लड़ने और शासन व्यवस्था संभालने का अच्छा खासा प्रशिक्षण दिया गया थामुड़बद्री पर राज करने वाली रानी अबक्का चोटा जिस पर हमे गर्व होना चाहिए ।
साल था 1555 जब पुर्तगाली सेना कालीकट, बीजापुर, दमन, मुंबई जीतते हुए गोवा को अपना हेडक्वार्टर बना चुकी थी। टक्कर में कोई ना पाकर उन्होंने पुराने कपिलेश्वर मंदिर को ध्वस्त कर उस पर चर्च स्थापित कर डाली।
मंगलौर का व्यवसायिक बंदरगाह अब उनका अगला निशाना था। उनकी बदकिस्मती थी कि वहाँ से सिर्फ 14 किलोमीटर पर ‘उल्लाल’ राज्य था जहां की शासक थी 30 साल की रानी ‘अबक्का चौटा’ (Abbakka Chowta).।
पुर्तगालियों ने रानी को हल्के में लेते हुए केवल कुछ सैनिक उसे पकडने भेजा। लेकिन उन में से कोई वापस नहीं लौटा। क्रोधित पुर्तगालियों ने अब एडमिरल ‘डॉम अल्वेरो ड-सिलवीरा’ (Dom Álvaro da Silveira) के नेतृत्व में एक बड़ी सेना भेजी। शीघ्र ही जख्मी एडमिरल खाली हाथ वापस आ गया। इसके बाद पुर्तगालियों की तीसरी कोशिश भी बेकार साबित हुई।
चौथी बार में पुर्तगाल सेना ने मंगलौर बंदरगाह जीत लिया। सोच थी कि यहाँ से रानी का किला जीतना आसान होगा, और फिर उन्होंने यही किया। जनरल ‘जाओ पिक्सीटो’ (João Peixoto) बड़ी सेना के साथ उल्लाल जीतकर रानी को पकड़ने निकला।
लेकिन यह क्या..?? किला खाली था और रानी का कहीं अता-पता भी ना था। पुर्तगाली सेना हर्षोल्लास से बिना लड़े किला फतह समझ बैठी। वे जश्न में डूबे थे कि रानी अबक्का अपने चुनिंदा 200 जवान के साथ उनपर भूखे शेरो की भांति टूट पड़ी।
बिना लड़े जनरल व अधिकतर पुर्तगाली मारे गए। बाकी ने आत्मसमर्पण कर दिया। उसी रात रानी अबक्का ने मंगलौर पोर्ट पर हमला कर दिया जिसमें उसने पुर्तगाली चीफ को मारकर पोर्ट को मुक्त करा लिया।
रानी अबक्का के देशद्रोही पति ने पुर्तगालियों से धन लेकर उसे पकड़वा दिया और जेल में रानी विद्रोह के दौरान मारी गई।
वीर रानी अब्बक्का उत्सव
आज भी रानी अब्बक्का चौटा की याद में उनके नगर उल्लाल में उत्सव मनाया जाता है और इस ‘वीर रानी अब्बक्का उत्सव’ में प्रतिष्ठित महिलाओं को ‘वीर रानी अब्बक्का प्रशस्ति’ पुरस्कार से नवाज़ा जाता है।

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