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हिंदी आम जनता की भाषा है, हिंदी के बिना राष्ट्र गूंगा है – अमित शाह

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अंग्रेजी केवल भाषा नहीं पराधीनता का स्मारक है- अजय कुमार मिश्रा
द्वितीय अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन 2022 सूरत से विशेष प्रतिनिधि दिलीप कुमार द्वारा:आज सूरत में द्वितीय अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन व हिंदी दिवस समारोह 2022 का उद्घाटन दीनदयाल उपाध्याय इनडोर स्टेडियम में भारत के गृह और सहकारिता मंत्री अमित भाई शाह के कर कमलों द्वारा किया गया। उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए अमित शाह ने कहा कि हिंदी आम जनता की भाषा है, हिंदी के बिना राष्ट्र गूंगा है। अगले 25 साल में देश को विदेशी भाषा की दासता से मुक्त करके स्वभाषा के विकास का संकल्प लेना है। उन्होंने कहा कि सूर्यपुत्री ताप्ती के किनारे इस विशाल सभागार में उपस्थिति देख कर बहुत अच्छा लगा। मैंने कहा कि यह वीर नरमाद की भूमि है जिन्होंने कहा था कि हमें विदेशी भाषा में नहीं हिंदी में काम करना है।
अंग्रेजी केवल भाषा नहीं पराधीनता का स्मारक है- अजय कुमार मिश्रा
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार प्राथमिक शिक्षा स्वभाषा में होगी। स्थानीय भाषा और हिंदी इस देश का प्राण है। राजभाषा और स्थानीय भाषा मिलकर अंग्रेजों द्वारा निर्मित प्रतिस्पर्धा के भाव को उखाड़ फेंकने का समय आ गया है। उन्होंने कहा कि लोकमान्य तिलक के स्वराज्य में स्वभाषा,  स्वशासन व संस्कृति शामिल थी। उन्होंने युवा वर्ग से अपील किया और कहा कि देश के युवा भाषा की लघुता ग्रंथी से बाहर निकले और स्वभाषा को स्वीकार करें। उन्होंने कहा कि पूरे दुनिया में सबसे ज्यादा हिंदी को सुना जाता है। उन्होंने अभिभावकों से स्वभाषा में बच्चों के साथ बात करने की अपील की और कहा कि जब तक बच्चा  स्वभाषा से नहीं जुड़ता, वह देश के इतिहास और संस्कृति से नहीं जुड़ सकता। उन्होंने कहा कि अन्य भाषाओं के शब्दों को जोड़कर के हिंदी के शब्दकोष को वृहद बनाना है। हिंदी को लचीला और सर्व  स्वीकृत बनाना है।
अंग्रेजी केवल भाषा नहीं पराधीनता का स्मारक है- अजय कुमार मिश्रा
विज्ञान, चिकित्सा और विविध विषयों की शिक्षा हिंदी में देने की तैयारी चल रही है। उन्होंने कहा कि हिंदी का भारतीय भाषाओं से कोई स्पर्धा नहीं, वह तो सहेली हैं। हिंदी की समृद्धि से भारतीय भाषाएं भी समृद्ध होंगी। 2011 में जब मैं राष्ट्रीय राजनीति में आया, मुझे लोगों ने अंग्रेजी सीखने के लिए कहा लेकिन मैंने हिंदी सीखा और अब हिंदी बोल रहा हूं। मैं गुजराती माध्यम से पढ़ा, इसलिए हिंदी सीखने में आसानी हुई। उन्होंने कहा कि आजादी के आंदोलन के सभी नेताओं ने हिंदी और स्वभाषा के ऊपर जोर दिया। स्वामी दयानंद सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश हिंदी में लिखा और कहा इसे लोकोपयोगी बनाना है।
द्वितीय अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन का हुआ सूरत में शुभारंभ
मुख्य अतिथि अमित शाह सहित मुख्यमंत्री भूपेंद्र भाई पटेल, राजभाषा संसदीय समिति के उपाध्यक्ष भर्तृहरि महताब, गृह राज्य मंत्री द्वय अजय कुमार मिश्रा और निशिथ प्रमाणिक, रेल राज्य मंत्री स्थानीय सांसद दर्शना बेन, शिक्षा राज्य मंत्री राज कुमार रंजन, गुजरात के गृह मंत्री हर्ष रमेश तथा राजभाषा सचिव और अंशुली आर्या ने दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
हिंदी के बिना राष्ट्र गूंगा है - अमित शाह
नरेंद्र मोहन, दीक्षा कोहली ने अपने संचालन से कार्यक्रम में जान डाल दिया। राजभाषा सचिव अंशुली आर्या के प्रास्ताविक वक्तव्य के बाद भारतीय शब्दों का डिजिटल संकलन हिंदी शब्द सिंधु संस्करण-1 का गृह मंत्री ने लोकार्पण किया। अनुवाद टूल कंठस्थ 2.0 का भी लोकार्पण किया गया। राजभाषा सम्मेलन स्मारिका एवं इसरो द्वारा प्रकाशित काव्य गाथा का भी गृह मंत्री अमित शाह ने लोकार्पण किया। राजभाषा कीर्ति एवं गौरव पुरस्कार 2021- 22 से देश भर के विभिन्न मंत्रालयों, विभागों, सार्वजनिक उपक्रमों एवं नराकास समितियों को सम्मानित किया गया।
गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्र ने कहा कि अंग्रेजी को जल्दी से जल्दी देश से हटाना चाहिए, यह केवल एक भाषा नहीं पराधीनता का स्मारक है। गुलामी के चिन्हों से हमें मुक्त हो जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने अंग्रेजी को ही बढ़ावा दिया। संविधान में 15 साल के लिए अंग्रेजी को रखा गया था कांग्रेस सरकार ने उसे अनंत काल के लिए बढ़ा दिया। संयुक्त राष्ट्र में भारत अकेला देश है जिसने हिंदी के प्रयोग के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ से समझौता किया है। उन्होंने कहा कि 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से राजभाषा अनुपालन का प्रयास हो रहा है। मारीशस में विश्व हिंदी सचिवालय की स्थापना की गई है। मुख्यमंत्री भूपेंद्र भाई पटेल ने कहा कि भारत के लोगों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में सम्मान दिया है मातृभाषा  अलग-अलग है किंतु राष्ट्रभाषा हिंदी है। उद्घाटन समारोह का धन्यवाद ज्ञापन मीनाक्षी जोली ने किया।
द्वितीय सत्र को पूर्व केंद्रीय मंत्री और राजभाषा संसदीय समिति के पूर्व उपाध्यक्ष सत्यनारायण जटिया ने अपने शायरी और कविताओं से रोचक बना दिया। पिछले 75 वर्षों में राजभाषा की विकास यात्रा विषय पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि 75 साल का हिसाब लगाया जाए तो सब कुछ बेहिसाब हो जाता है। 15 साल के लिए अंग्रेजी को हिंदी के साथ लगाया गया था किंतु उसे सदा के लिए लाद दिया गया। उन्होंने कहा कि बड़ी कठिनाई से और बलिदान से आजादी मिली थी लेकिन कांग्रेस का गठन ही अंग्रेज, अंग्रेजी और अंग्रेजियत को बनाए रखने के लिए किया गया था। उन्होंने कहा कि हम कौन थे, कौन है, क्या हो गए और क्या होंगे अभी?
राजभाषा संसदीय समिति के उपाध्यक्ष भर्तृहरि महताब ने बताया कि जब हिंदी को राजभाषा बनाया गया तब देश में हिंदी बोलने वाले 30.39% थे। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में हिंदी बोलने वालों की संख्या 43.63 अर्थात 53 करोड़ थी जो अब बढ़कर के 63 करोड़ हो चुकी है। फिर भी कुछ लोग बोलते हैं कि हिंदी को ज्यादा प्रोत्साहन क्यों दिया जाता है? उन्होंने कहा कि 75 साल में राजभाषा का क्रियान्वयन हम नहीं कर पाए। लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।  बोलकर उन्होंने अपनी बात समाप्त की।
द्वितीय सत्र की अध्यक्षता कर रहे राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश जी ने कहा कि हिंदी बढ़ाने का ज्यादा काम और हिंदी भाषी महापुरुषों ने किया है। वे लोग भविष्य दृष्टा थे, उन्हें पता था कि इतिहास बनाने का काम जन भाषा ही करेगी। बदलाव की भाषा लोक भाषा ही हो सकती है।
द्वितीय अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन हिंदी दिवस समारोह 2022 सूरत की कुछ झलकियां
द्वितीय अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन हिंदी दिवस समारोह 2022 सूरत की कुछ झलकियां
तृतीय सत्र को फिल्म जगत की दो विख्यात हस्तियों प्रसून जोशी और पंकज त्रिपाठी तथा दो टॉप क्लास के प्रशासनिक अधिकारियों गंगा सिंह राजपूत और निशांत जैन ने संबोधित किया और कहा कि हिंदी हमें गर्व की अनुभूति कराती है हिंदी हमारी मां है। प्रसून जोशी के वक्तव्य पर श्रोताओं ने खूब तालियां बजाई उन्होंने अपनी कविताओं से सम्मेलन में आए लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने कहा कि हमें किसी अन्य संस्कृति का अनुवादित रूप नहीं बनना है। हमें मौलिक चिंतन करना है। हिंदी सोहर भाषाओं के लिए हमेशा उतार रही है इसको लेकर बहस निरर्थक है। अन्य भाषा के शब्द लेने से भाषा समृद्ध होती है इसमें हमें कोई आपत्ति नहीं किंतु शब्द की हत्या करके शब्द लेने से हमें आपत्ति है। हिंदी में जबरन अंग्रेजी के शब्दों को ठुंसा जाना स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने कहा कि भाषाएं नहीं लड़ते लड़ते तो लोग हैं। उन्होंने लघुता और न्यूनता के बोध को हटाने की अपील की। उन्होंने कहा भाषा मां होती है और मां से जो रिश्ता होता है वह अन्य किसी से नहीं हो सकता।

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