दिल्ली, समा. एजेंसी 19 सितंबर : अभी हम सबने राष्ट्रीय हिंदी दिवस मनाया है। स्वतंत्र भारत में लोगों का और विशेष रूप से सरकारी प्रतिष्ठानों में अधिकारियो का यह प्रचलन हो चुका है कि वह हिंदी दिवस पर अंग्रेजी में भाषण झाड़ते हैं। इस प्रकार राष्ट्रीय हिंदी दिवस केवल औपचारिकता बनकर रह गया है, परंतु इसी समय कुछ ऐसे मातृ भक्त, संस्कृति भक्त और देश भक्त लोग भी हैं जो अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी के लिए प्राणपण से कार्य कर रहे हैं। उन्हें राष्ट्रभाषा हिंदी के सम्मान के लिए चाहे जो करना पड़े, वह कर रहे हैं।
राष्ट्रभाषा हिंदी के लिए समर्पित एक ऐसे ही व्यक्तित्व हैं मोतीलाल गुप्ता आदित्य। श्री गुप्ता वैश्विक हिंदी सम्मेलन के संस्थापक हैं। नाम से ही स्पष्ट है कि वह हिंदी के प्रति कितने समर्पित हैं ? एक विशेष बातचीत में उन्होंने बताया कि जंतर मंतर पर आगामी 25 सितंबर को एक विशेष धरने का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें मातृभाषा हिंदी को न्याय दिलाने की दिशा में सरकार से विशेष पहल करने की मांग की जाएगी।
मोतीलाल गुप्ता “आदित्य” का मानना है कि भारत को अभी भी इंडिया कहना और इंडिया के नाम से ही उसे संविधान में उल्लिखित करना हमारी स्वाधीनता और हमारे स्वाभिमान के लिए बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह है। इसे जितनी शीघ्रता से हटा दिया जाएगा, उतना ही अच्छा रहेगा। किसी भी देश का संविधान उस देश की भाषा में लिखा जाए तो निश्चित रूप से उस संविधान में देश की मनीषा बोलने लगती है, परंतु भारत का संविधान विदेशी भाषा में लिखा गया है। जिससे यह संविधान देश की मनीषा और देश की चेतना से वंचित रहा है।
उन्होंने कहा कि मातृभाषा में न्याय, शिक्षा और रोजगार दिया जाना समय की आवश्यकता है। यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि 75 वर्ष स्वाधीनता के होने पर देश जहां अमृत महोत्सव मना रहा है, वहां न्याय, शिक्षा और रोजगार अभी भी अंग्रेजी भाषा में दिए जा रहे हैं। इसके लिए उनका संगठन आगामी 25 सितंबर को देश के यशस्वी प्रधानमंत्री मोदी जी से यह मांग करेगा कि देश की राष्ट्रभाषा हिंदी में न्याय, शिक्षा और रोजगार दिलाने के लिए विशेष पहल की जाए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और गृह मंत्री पर हमें विश्वास है कि वह इस दिशा में जनाकांक्षाओं का सम्मान करेंगे और देश की राष्ट्रभाषा को उचित सम्मान दिलाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाएंगे।
मिडिया के साथ बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृत भाषा संसार की सभी भाषाओं की जननी है। इस बात को स्वीकार करने के उपरांत भी विदेशी भाषाओं को देश की आत्मा का प्रतिनिधित्व करने वाली हिंदी पर वरीयता देना स्वयं अपने साथ भी अन्याय करना है। एक स्वावलंबी भारत के निर्माण के लिए हमें अपनी भाषा का सम्मान करना सीखना होगा। इसके लिए देश के बुद्धिजीवियों का आवाहन किया गया है कि वह 25 सितंबर को दिल्ली के जंतर मंतर पर पहुंचकर अपने विचारों से हम सब का मार्गदर्शन करें। उन्होंने कहा कि अपनी भाषा में बोलना ,अपनी भाषा में न्याय देना, अपनी भाषा में रोजगार पाना किसी भी देश के युवाओं के लिए आत्म सम्मान का प्रतीक होना चाहिए, परंतु दुर्भाग्य से भारत में हिंदी के साथ ऐसा नहीं किया गया है। पर अब इस प्रचलित व्यवस्था के विरुद्ध आवाज उठाकर इसे ठीक करने के लिए युवा वर्ग में चल रहा है। जिसकी आवाज को हमें सुनना होगा।