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भूपेंद्रनाथ दत्त का जन्म 4 सितंबर, 1880 ई. को कोलकाता में हुआ था। इनके परिवार का बंगाल के प्रबुद्ध व्यक्तियों से निकट का संबंध था। भूपेंद्रनाथ की आरंभिक शिक्षा ईश्वर चंद्र विद्यासागर द्वारा स्थापित विद्यालय में हुई थी। उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों के साथ अपना अध्ययन भी जारी रखा और अमेरिका से एम.ए. और जर्मनी से पी.एच.डी. की डिग्री प्राप्त की।
भूपेंद्रनाथ दत्त शीघ्र ही क्रांतिकारियों के संपर्क में आ गए और बंगाल क्रांतिकारी दल के मुख्य पत्र ‘युगांतर’ के संपादक बने। 1902 में उन्हें राजद्रोह के अपराध में गिरफ्तार करके एक वर्ष कैद की सजा दे दी गई। जेल से छूटने पर जब भूपेंद्रनाथ दत्त को ‘अलीपुर बम कांड’ में फंसाने की तैयारी हो रही थी, वे देश से बाहर अमेरिका चले गए। प्रथम विश्वयुद्ध के समय भूपेंद्रनाथ जर्मनी में थे। उन्होंने अमेरिका में स्थापित ‘गदर पार्टी’ से भी संबंध रखा। 1925 में वे भारत आए। भूपेंद्रनाथ दत्त को यह देखकर दु:ख हुआ कि स्वयं को मार्क्सवादी कहने वाले लोग भारत के स्वतंत्रता संग्राम का विरोध कर रहे हैं।
भूपेंद्रनाथ दत्त कांग्रेस में सम्मिलित हो गए। 1930 की कराची कांग्रेस में किसानों, मजदूरों के हित संबंधी प्रस्ताव को स्वीकार कराने में उनका बड़ा हाथ था। उसके बाद उन्होंने अपना ध्यान श्रमिकों को संगठित करने पर लगाया। भूपेंद्रनाथ दो बार अखिल भारतीय श्रमिक संघ के अध्यक्ष भी रहे। समाज सुधार के कामों में भी भूपेंद्रनाथ दत्त बराबर भाग लेते रहे। वे जाति-पांत, छुआछूत और महिलाओं के प्रति भेदभाव के विरोधी थे।
भूपेंद्रनाथ दत्त अच्छे लेखक थे। उनकी लिखी हुई कुछ प्रसिद्ध पुस्तकें निम्नलिखित हैं-
‘डाइलेक्टिक्स ऑफ़ हिंदू रिच्यूलिज़्म’
‘डाइलेक्टिक्स ऑफ़ लैंड-इकॉनामिक्स ऑफ़ इंडिया’
‘स्वामी विवेकानंद पैट्रियट-प्रोफॅट’
‘सेकंड फ्रीडम स्ट्रॅगल ऑफ़ इंडिया’
‘ऑरिजिन एण्ड डेवलपमेंट ऑफ़ इंडियन सोशल पॉलिसी’
26 दिसंबर, 1961 को भूपेंद्रनाथ दत्त का कोलकाता में देहांत हो गया।