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राष्ट्र-चिंतन ट्रम्प टेरिफ को भारत ने निष्प्रभावी कैसे किया? -आचार्य श्रीहरि

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महंगाई से बचने के लिए ट्रम्प ने घटायी टेरिफ

डोनाल्ड ट्रम्प ने जब भारत पर अनावश्यक और भारी टैक्स लगाया था तब दुनिया की प्रतिक्रिया बहुत ही नकरात्मक थी और भारत को हतोत्साहित करने वाली थीं। दुनिया की समझ थी कि भारत ट्रम्प टेरिफ को झेल नहीं पायेगा, भारत की अर्थव्यवस्था चरमरा जायेगी, उद्योग-फैक्टरियां बंद हो जायेगी, लोग बेरोजगार हो जायेंगे, बेरोजगार लोग सडकों पर उतरेंगे और नरेन्द्र मोदी की सत्ता का संहार कर देंगे। नरेन्द्र मोदी की सरकार के सामने सबसे बडी चुनौती होगी कि वह बेरोजगारों के आक्रोश का नियंत्रण कैसे करेगे? सही भी यही था कि बेरोजगारी के नाम पर जेन जी आंदोलन दुनिया के कई हिस्सों में चर्चित रहा था, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि सत्ता पलटने का माध्यम बन गया था। भारत के पडोसी देशों जैसे श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में जेन जी ने अपना प्रभाव दिखाया था और अपने आंदोलन के तेज से जड जमायी हुई सरकार और सत्ता को उखाड फेका था। इसलिए भारत के सत्ता विरोधियों ने खुली घोषणा कर रखी थी कि नरेन्द्र मोदी अमेरिका के टेरिफ युद्ध में पराजित हो जायेंगे और भारत की अर्थव्यवस्था का विध्वंस कर देंगे।

स्ंायम सबसे बडा प्रतिकार होता है, हथियार होता है। नरेन्द्र मोदी की सरकार ने संयम दिखाया था, जवाबी प्रतिक्रिया में उलझने से बचने का कार्य किया था और पहले देखो उसके बाद प्रतिक्रिया दो, फिर जवाबी कदम उठाओ की नीति अपनायी थी। बिना प्रभाव को देखे ही कदम उठा लेना या फिर किसी टेरिफ युद्ध में उलझ जाना भी समझदारी की बात नहीं हो सकती है। डोनाल्ड टम्प का गुस्ता, उनकी तुगलकी चाल में कितना दम है, यह देखना जरूरी था। फिलहाल यह कहा जा सकता है कि ट्रम्प टेरिफ को निष्प्रभावी करने के लिए भारत को कोई खास नीतियां नहीं बनानी पडी, कोई उलझन पूर्ण परिस्थियां नहीं बनानी पडी, सावधानियां और ध्यैर्य भारत के लिए वरदान साबित हुआ और भारत ने अपनी टेरिफ कूटनीति का लोहा मनवा लिया।

टेरिफ नीति अमेरिका और ट्रम्प के लिए भी घातक सिद्ध हुई, मंहगाई बढाने वाली और अर्थव्यवस्था को चैपट करने वाली आत्मघाती साबित हुई। ट्रम्प के खिलाफ आक्रोश उत्पन्न हो गया, महंगाई से लोग परेशान हो गये। ट्रम्प को टेरिफ प्रतिशत घटाने के लिए बाध्य होना पडा। ट्रम्प ने काॅफी, केला, टमाटर, बीफ, जेनेरिक दवाओं सहित दो सौ से अधिक खाध वस्तुओं पर टेरिफ घटाई है। आम, अनार, चाय और जेनरेटिक दवाओ पर टेरिफ घटने से भारत को लाभ होगा। भारत जेनेरिक दवाओं का सबसे बडा निर्यातक है।

ट्रम्प टेरिफ का कितना प्रभाव पडा भारत पर? इसका कोई सटीक आकलन तो नहीं है पर यह कहा जा सकता है कि ट्रम्प के मंसूबे पूरे नहीं हुए, भारत विरोधियों की इच्छाएं पूरी नहीं हुई, भारत के अंदर नरेन्द्र मोदी के विरोधियों के बगावत होने जैसी उनकी धारणाएं पूरी नहीं हुई। कहने का अर्थ यह है कि कोई हाहाकारी और बाध्यकाराी प्रभाव नहीं पडा। भारतीय औद्योगिक इंकाइयों की उत्पादन प्रक्रियाएं ठप नहीं हुई, उनकी उत्पादन प्रक्रियाएं टेरिफ युद्ध की पूर्व की तरह चलती रहीं। मजदूरों और तकनीकी समूहों को बेरोजगार होने की जरूरत नहीं पडी। औद्योगिक इंकाइयों और मजदूर समूहों को यह मालूम था कि यह ट्रम्प का तुगलकी फरमान है, टम्प की सनक है, चैधराहट का कदम है जो थोडे दिनों में खुद ही दम तोड देगा, खुद ही ध्वस्त हो जायेगा। अगर अमेरिका में कोई परेशानी होगी, भारतीय वस्तुओं के निर्यात पर प्रतिकुल असर पडा तो फिर अन्य मार्केट की ओर कदम रखना होगा। भारत सरकार ने बहुत ही सावधानी से खेल खेला। अमेरिका पर ध्यान देने की जगह अन्य क्षेत्रों पर ध्यान देना शुरू कर दिया। सिर्फ अमेरिका ही एक बाजार नहीं है, अमेरिका के अलावा भी दुनिया में कई बाजार है, ऐसे भी अमेरिकी बाजार पर भारत का एकाधिकार नहीं रहा है, अमेरिका के बाजार पर चीन का एकाधिकार रहा है, कनाडा, ब्राजील और बांग्लादेश, दक्षिण कोरिया की भी अमेरिकी बाजार में हिस्सेदारी है। भारत ने यूरोप के छोटे-छोटे देशों की ओर देखना शुरू कर दिया, अफ्रीका देशों में बाजार की अपार संभावनाएं हैं, जहां पर चीनी एक छ़त्र राज के सामने अपना प्रभाव जमाया जा सकता है और अपनी जगह बनायी जा सकती है, मिडिल इस्ट का बाजार भी महत्पूपर्ण है, भारत पिछले कई सालों से पूर्व की ओर देखो की नीति अपना रखी है।

नरेन्द्र मोदी ने टम्प टेरिफ को निष्प्रभावी करने के लिए एक ऐसा ब्रम्हास्त्र खोजा जिसकी लोग कल्पना ही नहीं की थी। वह ब्रम्हास्त्र स्वदेशी का है। नरेन्द्र मोदी की समझ थी कि स्वदेशी के ब्रम्हास्त्र से डोनाल्ड ट्रम्प को पराजित किया जा सकता है, उनकी हेकडी को तोडा जा सकता है, उनकी चैधराहट को बेअसर किया जा सकता है और भारत अपनी स्वतंत्र कूटनीति और राष्ट्रीयता का डंका दुनिया के सामने बजा सकता है। नरेन्द्र मोदी ने देशवासियों से स्वदेशी अपनाने की अपील कर डाली, कह दिया कि स्वदेशी अपनाओ और राष्ट्र को जींवत रखो। स्वदेशी का मंत्र अचूक है। स्वदेशी का मंत्र अचूक कैसे है? हम दुनिया की सबसे बडी आबादी वाला देश हैं। हमारी जनसंख्या 140 करोड से उपर है। पूरे यूरोप की आबादी से बडा तो हमारा उत्तर प्रदेश है। चीन भी हमारी आबादी के सामने पीछे है। इसलिए हमारे पास घरेलू बाजार की अपार संभावनाएं हैं। अगर स्वदेशी का अभियान सफल हो गया तो फिर कई अमेरिकी कंपनियों का ही नहीं बल्कि चीनी, जापानी, कोरियाई और यूरोपीय कपंनियों का बाजा बज सकता है। हमारी अर्थव्यवस्था का एक बडा आधार घरेलू मार्केट भी है। नरेन्द्र मोदी का स्वदेशी अभियान ने देशवासियों का ध्यान भी खींचा। देशवासी नरेन्द्र मोदी के स्वदेशी अभियान से भी जुडे। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपील पर जोहो मेल को अपना लिया। जोहो मेल स्वदेशी मेल है जो गूगल, जीमेल, याहू आदि को चुनौती दे रहा है। अमित शाह ने जैसे ही अपना जोहो मेल को सार्वजनिक किया और सोशल मीडिया पर लिखा कि मैने स्वदेशी जोहो मेल को अपना लिया है और मुझसे इस जोहो मेल पर संपर्क किया जा सकता है, संवाद किया जा सकता है वैसे ही जोहो मेल भारत में विख्यात हो गया, लाखों-करोडों ने जीमेल आदि विदेशी कंपनियों की जगह जोहो मेल को अपना लिया। जोहो मेल की बढती साख और बढता प्रसार अमेरिकी कपंनियों के लिए चिंता के विषय हैं और इसके लिए वे भारत को दोषी कम समझते हैं और डोनाल्ड ट्रम्प को ज्यादा दोषी मानते हैं। संकट में भी अवसर आता है, अवसर को देखने और आकलन की शक्ति होनी चाहिए।

वास्तव में ट्रम्प की टेरिफ चैधराहट का ही नमूना था और भारत को झुकाने और भारत पर चैधराहट लादने का हथकंडा था। निशाना कहीं ओर था। निशाना रूस और ब्लादमीर पुतिन थे। पुतिन का यूक्रेन युद्ध इसके पीछे कारण था। भारत अपनी इंधन की जरूरतों को ेपूरा करने के लिए रूस से इंधन खरीद रहा था। अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद रूस ने सस्ता इंधन बेचना शुरू कर दिया था। खासकर भारत को और भी सस्ता इंधन बेच रहा था। सस्ते इंधन खरीद कर भारत अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत किया ही इसके अलावा भारत ने अपने नागरिकों को राहत दिया। भारत के नागरिक इंधन समस्याओं से ग्रसित रहे हैं, मंहगे इंधन का अर्थ नागरिकों के सुंदर भविष्य पर प्रहार करना। महंगे इंधन से महंगाई बढती है और जेब खाली होती है। भारत ने सस्ते तेल खरीद कर बेचा भी। अमेरिका और यूरोप को यह स्वीकार नहीं हुआ कि उनके हितों को बलि देकर भारत अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करे और राष्ट्रीय बचत करे। सस्ते तेल को बेचकर पैसे कमाये। अमेरिका ने पहले भारत को धमकाया, डराया और प्रतिबंधों का प्रहार किया। लेकिन भारत डरने का कार्य नहीं किया। भारत ने रूस से तेल खरीदना बंद नहीं किया। फिर डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत को नियंत्रित करने के लिए टेरिफ युद्ध का सहारा लिया और पाकिस्तान का समर्थन कर दियां। भारत ने टेरिफ युद्ध के सामने भी समर्पण करने से इनकार कर दिया और रूस के साथ इंधन खरीदना बंद नहीं किया। भारत ने इधर रूस के साथ अपनी आर्थिक और सामरिक दोस्ती भी प्रगाढ की है, जिसकी चिंता अमेरिकी कूटनीतिज्ञ को हो रही है।

भारत अब ऐसी स्थिति में है कि वह अमेरिकी टेरिफ हथकंडे के सामने बिना झुके सौदेबाजी-समझौते बाजी कर सकता है। क्योंकि ट्रम्प टेरिफ पूरी तरह निष्प्रभावी हो गया है। अमेरिका के सामने लाभ लेने की संभावनाएं बची नहीं है। इसलिए टेरिफ के प्रश्न पर अमेरिका और भारत के बीच कोई समझौता और सहमति बनती है तो फिर भारत के हित सुरक्षित ही होंगे। ऐसी परिस्थितियां भारत की आर्थिक शक्ति और कूटनीतिक महाशक्ति होने के संकेत देती हैं।

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