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समा. एजेंसी बलिया, 2 सितंबर: अपने जीवन के पहले प्रवास में प्रभु श्रीराम बलिया आए थे। पहली यात्रा में जिले में छह स्थानों पर प्रभु राम ने आगमन किया। इस संबंध में श्रीराम सांस्कृतिक शोध संस्थान दिल्ली की ओर से श्रीराम के जीवन से जुड़े पुरातात्विक महत्व के स्थानों पर शोधकार्य कर रहे इतिहासकार डॉ. शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने बताया कि श्रीमद वाल्मीकी रामायण के बालकाण्ड के अध्याय 22-23 में इसका विस्तार से उल्लेख वाल्मीकिजी ने किया है। महर्षि विश्वामित्र के साथ दोनों राजकुमार राम-लक्ष्मण अयोध्या से सरयू नदी के प्रवाह पथ पर चलते हुए बलिया जिले के सिधागर घाट (गाजीपुर-मऊ-बलिया की सीमा पर पहुंचे थे। यही से रक्षराज रावण की यूथपति ताड़का के राज्य की सीमा आरंभ होती थी। तरवाडीह (गाजीपुर) में ताड़का की मरीची में मारीच की सुरक्षा चौकी थी महर्षि विश्वामित्र ने लखनेश्वरडीह में रात्रि विश्राम और राम-लक्ष्मण को राक्षसों के मायावी युद्ध कला पर विजय प्राप्त करने के लिये बला- अतिबला विद्या सिखाया था। यहां एक शिवलिंग विग्रह भी स्थापित किए। इस लिंग विग्रह को बालू से लक्ष्मण जी ने बनाया था। वर्तमान तमसा- लकड़ा नदी वास्तव में पुरानी सरयू नदी का छाड़न है। यहां से यह तीनों लोग रामघाट नगहर आए और सरयू पार कर तरवाडीह होते हुए कामेश्वर धाम, कारों पहुंच कर रात्रि विश्राम किए। यहां से ब्राह्म मुहूर्त में बलिया में प्रभु राम ने बितायी थी दो रातें। डॉ. कौशिकेय ने बताया कि अयोध्या के दोनों राजकुमारो ने अपनी पहली यात्रा में बलिया जिले में दो रातें बिताई और राक्षसों से युद्ध
करने की विद्या सीखा था।
वर्तमान बलिया जिले के भू-भाग का अवध से बहुत प्रगाढ़ संबंध त्रेतायुग रामायणकाल के पहले से भी रहा है। प्रभु श्रीराम ने अपने जीवनकाल में तीन प्रमुख यात्राएं की थी। पहली यात्रा महर्षि विश्वामित्रजी के साथ राजकुमार राम की है, जिसमें उनका सीता जी से विवाह भी शामिल है। इस यात्रा में जिले के लखनेश्वरडीह, रामघाट नगहर, कामेश्वर धाम कारों, सुजायत और भरौली, उजियार कुल छः स्थान चिन्हित किए गए हैं। जब उजाला हुआ तो उजियार पहुंच गए थे। यहां से गंगा नदी पार कर और बागी बलिया जनपद आपका हार्दिक स्वागतम् हुआ।