Hindi Diwas Par Kavita Hindi Mein (हिंदी पर छोटी सी कविता): क्या आप जानते हैं कि हमारे देश की राष्ट्रभाषा को समर्पित भी एक दिन है। इस खास दिन को हिंदी दिवस के रूप में सेलिब्रेट किया जाता है। हर साल 14 सितंबर को हम भारतीय हिंदी दिवस मनाते हैं। इस दिन स्कूल, कॉलेज और दफ्तर में तरह-तरह के कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। लोग राष्ट्रभाषा पर स्पीच से लेकर कविता तक सुनाते हैं। अगर आप भी हिंदी दिवस पर कविता पढ़ना चाहते हैं तो ये खबर आपने लिए ही है। कई कवियों ने हमारी प्यारी हिंदी के मान में खूबसूरत कविताएं लिखी हैं। यहां आप हिंदी की टॉप 5 कविताएं देख सकते हैं, जिसमें संजय जोशी और अटल बिहारी वाजपेयी की कविता भी शामिल है।
Best Hindi Poems On Hindi Diwas (हिंदी दिवस पर कविता, 10 लाइन की हिंदी कविता)-
1) मां भारती के भाल का शृंगार है हिंदी
हिंदोस्तां के बाग की बहार है हिंदी
घुट्टी के साथ घोल के मां ने पिलाई थी
स्वर फूट पड़ रहा, वही मल्हार है हिंदी
तुलसी, कबीर, सूर औ’ रसखान के लिए
ब्रह्मा के कमंडल से बही धार है हिंदी
सिद्धांतों की बात से न होयगा भला
अपनाएंगे न रोज के व्यवहार में हिंदी
कश्ती फंसेगी जब कभी तूफानी भंवर में
उस दिन करेगी पार, वो पतवार है हिंदी
माना कि रख दिया है संविधान में मगर
पन्नों के बीच आज तार-तार है हिंदी
सुन कर के तेरी आह ‘व्योम’ थरथरा रहा
वक्त आने पर बन जाएगी तलवार ये हिंदी
– डॉ. जगदीश व्योम की कविता भाल का शृंगार
2) हम सबकी प्यारी, लगती सबसे न्यारी।
कश्मीर से कन्याकुमारी, राष्ट्रभाषा हमारी।
साहित्य की फुलवारी,
सरल-सुबोध पर है भारी।
अंग्रेजी से जंग जारी,
सम्मान की है अधिकारी।
जन-जन की हो दुलारी,
हिन्दी ही पहचान हमारी।
– संजय जोशी ‘सजग’ की कविता
3) गूंजी हिन्दी विश्व में
गूंजी हिन्दी विश्व में,
स्वप्न हुआ साकार;
राष्ट्र संघ के मंच से,
हिन्दी का जयकार;
हिन्दी का जयकार,
हिन्दी हिन्दी में बोला;
देख स्वभाषा-प्रेम,
विश्व अचरज से डोला;
कह कैदी कविराय,
मेम की माया टूटी;
भारत माता धन्य,
स्नेह की सरिता फूटी!
– अटल बिहारी वाजपेयी की कविता
4) करो अपनी भाषा पर प्यार ।
जिसके बिना मूक रहते तुम, रुकते सब व्यवहार ।।
जिसमें पुत्र पिता कहता है, पतनी प्राणाधार,
और प्रकट करते हो जिसमें तुम निज निखिल विचार ।
बढ़ायो बस उसका विस्तार ।
करो अपनी भाषा पर प्यार ।।
भाषा विना व्यर्थ ही जाता ईश्वरीय भी ज्ञान,
सब दानों से बहुत बड़ा है ईश्वर का यह दान ।
असंख्यक हैं इसके उपकार ।
करो अपनी भाषा पर प्यार ।।
यही पूर्वजों का देती है तुमको ज्ञान-प्रसाद,
और तुमहारा भी भविष्य को देगी शुभ संवाद ।
बनाओ इसे गले का हार ।
करो अपनी भाषा पर प्यार ।।
– मैथिली शरण गुप्त की कविता
5) हैं ढेर सारी बोलियां
भाषाओं की हमजोलियां
फिर भी सभी के बीच
हिंदी का अलग ही ढंग है
इसका अलग ही रंग है।
मीठी है ये कितनी जबां
इस पर सरस्वती मेहरबां
कविता-कथा-आलोचना
हर क्षेत्र में इसका समां;
सब रंक – राजा बोलते
बातों में बातें तोलते
महफिल में भर जाती खनक
हर सिम्त उठती तरंग है
इसका अलग ही रंग है।
इसमें भरा अपनत्व है
भारतीयता का सत्व है
इसके बिना तो संस्कृति
औ सभ्यता निस्सत्व है
इसमें पुलक आतिथ्य की
इसमें हुलस मातृत्व की;
मिलती है खुल के इस तरह
जिस तरह मिलती उमंग है
इसका अलग ही रंग है।
इस बोली में मिलती है लोरियां
इस भाषा में झरती निबोरियां
इस बोली में कृष्ण को छेड़ती
गोकुल – बरसाने की छोरियां;
कहीं पाठ चलता अखंड है
कहीं भक्तिमय रस रंग है
कहीं चल रहा सत्संग है
इसका अलग ही रंग है।
इसका अलग ही ढंग है।
– डॉ. ओम निश्चल