एजेंसी समाचार, गुवाहाटी, 17 मई: पिछले कुछ दिनों से असम में सोशल मीडिया पर कथित “पाक समर्थक” पोस्ट के मामले में गिरफ्तारियों का सिलसिला तेज हो गया है। राज्य पुलिस अब तक कुल 58 लोगों को हिरासत में ले चुकी है, जो देश भर में सबसे अधिक है। इन गिरफ्तारियों के चलते राज्य के नागरिकों, विशेष रूप से अल्पसंख्यक समुदाय में सोशल मीडिया को लेकर भय और असमंजस का माहौल बन गया है।
इन गिरफ्तारियों की शुरुआत 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद हुई, जिसमें 26 लोगों की जान चली गई थी। इसके बाद असम में 26 अप्रैल को विपक्षी पार्टी एआईयूडीएफ के विधायक अमीनुल इस्लाम को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया। बाद में उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत निरुद्ध कर दिया गया।
मुख्यमंत्री हिमंत विश्वशर्मा ने इस मुद्दे पर स्पष्ट रुख अपनाते हुए कहा है कि “राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में संलिप्त किसी भी व्यक्ति को बख्शा नहीं जाएगा।” मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि “मेरी लड़ाई पाकिस्तान और बांग्लादेश समर्थक तत्वों से है, और उनके समर्थकों पर कड़ी कार्रवाई जारी रहेगी।”
राज्य भर से गिरफ्तारियां, सोशल मीडिया पर निगरानी तेज
अब तक की गिरफ्तारियां राज्य के 21 जिलों से की गई हैं, जिनमें सर्वाधिक मामले बांग्लाभाषी बहुल कछार जिले से सामने आए हैं। यहां के पुलिस अधीक्षक ने बताया कि “सोशल मीडिया पोस्ट की निगरानी के लिए जिला स्तर पर मॉनिटरिंग सेल सक्रिय किया गया है और राज्य मुख्यालय से भी आपत्तिजनक पोस्ट की जानकारी साझा की जा रही है।”
गिरफ्तार किए गए लोगों में विपक्षी नेता, छात्र, पत्रकार और आम नागरिक शामिल हैं। तेलंगाना से भी एक युवक को गिरफ्तार किया गया है। इस मामले में एबीवीपी की शिकायत पर कुछ छात्रों को भी हिरासत में लिया गया है।
पत्रकार और महिला की भी गिरफ्तारी
गिरफ्तार लोगों में हाइलाकांदी के पत्रकार जाबिर हुसैन और गुवाहाटी की एक महिला डिंपल बोरा का नाम भी शामिल है, जो पहले पत्रकार रह चुकी हैं और अब एक दुकान चलाती हैं। यह मामला इसलिए भी संवेदनशील हो गया है क्योंकि अधिकतर गिरफ्तार लोग अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं।
सोशल मीडिया से दूरी बना रहे लोग
इस पूरे घटनाक्रम के चलते राज्य में सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं में डर का माहौल बन गया है। कई लोग फिलहाल सोशल मीडिया से दूरी बनाए हुए हैं। एक वरिष्ठ पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “मैंने फिलहाल सोशल मीडिया से दूर रहने का फैसला किया है। पता नहीं कौन सी बात सरकार को आपत्तिजनक लग जाए।”
राजनीतिक चुप्पी और विश्लेषकों की राय
इस संवेदनशील मुद्दे पर अब तक किसी भी प्रमुख विपक्षी दल ने खुलकर सरकार की आलोचना नहीं की है। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “गिरफ्तारियों की संख्या अभूतपूर्व है, लेकिन मामला इतना संवेदनशील है कि कोई सार्वजनिक टिप्पणी करने की स्थिति में नहीं है।”
राजनीतिक विश्लेषक जयंत गोस्वामी का मानना है कि “मुख्यमंत्री लगातार ऐसे मुद्दों को उठा रहे हैं जिनसे उनका राष्ट्रीय स्तर पर कद मजबूत हो। लेकिन इस प्रक्रिया में राज्य में असहमति की आवाजों पर दबाव बढ़ता जा रहा है।”
निष्कर्ष:
असम में चल रही इस कार्रवाई ने न केवल संवैधानिक अधिकारों पर बहस को जन्म दिया है, बल्कि लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर चिंता भी बढ़ा दी है। यह देखना बाकी है कि आने वाले दिनों में सरकार की यह नीति किस दिशा में जाती है और इसका राज्य की सामाजिक-सांप्रदायिक संरचना पर क्या प्रभाव पड़ता है?