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“धर्म ध्वजा लहरायेगा कौन? तुम जो रोकोगे अपने हस्त, तो विजय दिलायेगा कौन?”
योगी की विरासत से तमिलनाडु तक फैला सामाजिक समरसता का संदेश-रीना एन सिंह,अध्यक्ष मातृशक्ति विश्व हिंदू महासंघ
(शीतल निर्भीक ब्यूरो)
नई दिल्ली।“एकता में शक्ति है”इस विचार को साकार करते हुए गोरक्षपीठ की सनातन धर्म के प्रचार और सामाजिक समरसता की मुहिम आज देशभर में गूंज रही है।गोरक्षपीठ जो केवल आध्यात्मिक केंद्र नहीं बल्कि सामाजिक एकता का प्रतीक है, इसकी नींव ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी ने रखी थी। महंत अवेद्यनाथ जी का जीवन जाति, धर्म और क्षेत्रीयता के बंधनों को तोड़कर समाज को एकजुट करने की ऐतिहासिक मिसाल है।उक्त बातें विश्व हिंदू महासंघ मातृशक्ति की राष्ट्रीय अध्यक्ष रीना एन सिंह ने एक वार्ता में उन्होंने कहा।
विश्व हिंदू महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष महंत सुरेंद्रनाथ अवधूत जी और राष्ट्रीय संगठन महामंत्री योगी राजकुमार नाथ जी की प्रेरणा और मार्गदर्शन में विश्व हिंदू महासंघ न केवल भारत बल्कि संपूर्ण विश्व के लिए सामाजिक समरसता का प्रतीक बन रहा है। विश्व हिंदू महासंघ समाज के हर वर्ग को एक सूत्र में पिरोकर, समानता और सद्भावना का संदेश दे रहा है। इसकी कार्यप्रणाली और विचारधारा मानवता के कल्याण और विश्वशांति के लिए समर्पित है। यह एक अत्यंत प्रतिष्ठित सामाजिक संगठन है,जिसकी स्थापना ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी द्वारा की गई थी।
ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी गोरखपुर की गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर थे और वर्तमान में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के गुरु थे। गोरक्षपीठ हमेशा से सर्वधर्म समभाव का प्रतीक रहा है एवं समाज में एकजुटता का संदेश देता रहा है। सदियों से गोरक्षपीठ में नाथ योगियों एवं सूफी संतों की विचारधारा का भारत में एक साथ प्रचार-प्रसार हुआ है। उस काल में ऐसा भी देखा गया कि कुछ नाथ संतों ने सूफी धारा को अपना लिया तो कुछ सूफी संतों ने नाथ साधना पद्धति से प्रभावित होकर नाथ धारा को अपना लिया। कहने का तात्पर्य यह है कि वह ऐसा समय था जब जाति या धर्म का भेद नहीं होता था।
महंत अवेद्यनाथ जी का कहना था कि “धर्मांतरण, राष्ट्रांतरण के समान है” और उन्होंने मीनाक्षीपुरम (तमिलनाडु) जैसी घटनाओं का विरोध कर समाज के पिछड़े और अनुसूचित वर्गों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए अभूतपूर्व कार्य किए। गोरक्षपीठ का यह आध्यात्मिक और सामाजिक अभियान गोरखनाथ मठ के माध्यम से तमिलनाडु तक विस्तारित हुआ। तमिलनाडु में गोरखनाथ मठ को ‘कोरक्का सिद्धार’ के रूप में जाना जाता है, जो 18 महान सिद्धों में से एक माने जाते हैं। इनके शिष्य राजा भर्तृहरि और पट्टीनाथर जैसे संतों ने सनातन परंपरा को मजबूत किया।
महंत अवेद्यनाथ जी के समय जातिवाद राजनीति ने समाज को बांटने की कोशिश की, तब उन्होंने बनारस के डोमराजा के घर धर्माचार्यों के साथ बैठकर भोजन कर यह संदेश दिया कि हिंदू धर्माचार्य समाज के हर वर्ग को साथ लेकर चलते हैं। इसी तरह पटना के महावीर मंदिर में उन्होंने हरीजन पुजारी की नियुक्ति कर सामाजिक समानता की नई मिसाल पेश की। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में उनकी भूमिका को इतिहास कभी भुला नहीं सकता।
महंत अवेद्यनाथ जी की इस अद्वितीय विरासत को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी आगे बढ़ा रहे हैं। योगी आदित्यनाथ जी ने राम मंदिर शिलान्यास से लेकर गोरक्षपीठ की विचारधारा को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित किया है। गोरक्षपीठ न केवल उत्तर भारत बल्कि तमिलनाडु जैसे दक्षिण भारतीय राज्यों में भी अपनी जड़ें जमा चुका है। तमिलनाडु में गोरक्षपीठ की ऐतिहासिक और आध्यात्मिक विरासत को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है ताकि सनातन धर्म की एकता और समरसता मजबूत हो।
भाजपा के लिए तमिलनाडु में सफलता की कुंजी गोरक्षपीठ की विचारधारा हो सकती है। ओबीसी और एससी-एसटी वर्गों को महंत अवेद्यनाथ जी की सामाजिक समरसता की मुहिम से जोड़कर योगी आदित्यनाथ जी दक्षिण भारत में भी एक प्रभावशाली चेहरा बन सकते हैं। गोरक्षपीठ का यह अभियान “कश्मीर से कन्याकुमारी तक” देश को एक सूत्र में बांधने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है।
विश्व हिंदू महासंघ, जो गोरक्षपीठ की विचारधारा को आगे बढ़ा रहा है, आज देश और दुनिया को सामाजिक समरसता का संदेश दे रहा है। महंत सुरेंद्रनाथ अवधूत जी और योगी राजकुमार नाथ जी के नेतृत्व में यह संगठन सनातन धर्म की रक्षा और मानवता के कल्याण हेतु पूरी निष्ठा से कार्य कर रहा है। महंत अवेद्यनाथ जी के आदर्श और योगी आदित्यनाथ जी के नेतृत्व में सनातन धर्म का ध्वज पूरी ताकत से लहराया जा रहा है।
यह विश्वास किया जा सकता है कि आने वाले समय में गोरक्षपीठ की विचारधारा और योगी आदित्यनाथ जी का नेतृत्व देश को सामाजिक समरसता और एकजुटता के उस शिखर पर ले जाएगा, जहां से “धर्म ध्वजा” कभी झुकेगी नहीं।