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वेदान्त शास्त्र के अनुबन्ध पर डॉ. श्रीकर जी एन का उद्बोधन, ‘शास्त्रमन्थन’ व्याख्यानमाला का प्रथम व्याख्यान

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नलबाड़ी, 26 अप्रैल 2025। कुमार भास्कर वर्मा संस्कृत एवं पुरातनाध्ययन विश्वविद्यालय के सर्वदर्शनविभाग एवं सर्वदर्शनपरिषद् के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित ‘शास्त्रमन्थन’ कार्यक्रम के १०८ व्याख्यानमाला की प्रथम कड़ी का सफल आयोजन आज आभासीय माध्यम से सम्पन्न हुआ। इस उद्घाटन सत्र में विश्वविद्यालय के शिक्षकों एवं विद्यार्थियों के साथ-साथ, असम विश्वविद्यालय, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, एकलव्य परिसर, अगरतला एवं अन्य संस्थानों के छात्रों की उल्लेखनीय उपस्थिति रही।
कार्यक्रम के प्रथम व्याख्यान का विषय था, ‘वेदान्त शास्त्र का अनुबन्ध’, जिसे केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, एकलव्य परिसर, अगरतला के सहायकाचार्य डा. श्रीकर जी एन ने प्रस्तुत किया। डा. श्रीकर ने अपने व्याख्यान में वेदान्त के अनुबन्ध चतुष्टय – विषय, प्रयोजन, सम्बन्ध और अधिकारी – का सुगम्भीर विश्लेषण किया।
उन्होंने बताया कि वेदान्त शास्त्र का विषय ब्रह्म और जीव का तात्त्विक स्वरूप है, प्रयोजन मोक्ष है, सम्बन्ध जीव-ब्रह्म का अभिन्नत्व है तथा अधिकारी वह साधक है जो विवेक, वैराग्य, षट्सम्पत्ति और मुमुक्षुत्व से सम्पन्न हो।
डा. श्रीकर ने उदाहरणों और शास्त्रीय सन्दर्भों के माध्यम से श्रोताओं को यह भी समझाया कि अनुबन्ध चतुष्टय का सम्यक् ज्ञान ही वेदान्त के गहन रहस्यों तक पहुँचने का द्वार खोलता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलगुरू, आचार्य प्रह्लाद रा. जोशी ने की। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में उन्होंने कहा कि शास्त्रों का अध्ययन केवल बौद्धिक अभ्यास नहीं, अपितु साधनामूलक आध्यात्मिक यात्रा है। अनुबन्ध चतुष्टय को जानना इस यात्रा की प्रथम शर्त है। कार्यक्रम का शुभारंभ शोधच्छात्र लिराज काफ्ले द्वारा मंगलाचरण से हुआ, जिससे वातावरण में भक्तिभाव व्याप्त हो गया। संचालन एवं वक्ता परिचय का दायित्व पूर्वछात्रा जिमि डेका ने निर्वाह किया।
इस व्याख्यानमाला का संयोजन सर्वदर्शनविभागाध्यक्ष डा. रणजीत कुमार तिवारी के निर्देशन में किया गया। कार्यक्रम के समापन पर विद्यार्थियों ने व्याख्यान से मिली गहन ज्ञानवृद्धि के लिए आयोजकों एवं वक्ता का आभार व्यक्त किया। ‘शास्त्रमन्थन’ व्याख्यानमाला का उद्देश्य शास्त्रचिन्तन की परम्परा को सुदृढ़ करना तथा नवीन पीढ़ी में शास्त्राध्ययन के प्रति गहरी रुचि उत्पन्न करना है। आगामी व्याख्यानों के प्रति विश्वविद्यालय परिवार में विशेष उत्साह देखा जा रहा है।

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