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आज का शब्द: किरीट और रामधारी सिंह “दिनकर” की कविता- ओ आशिक होनेवाले!

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‘हिंदी हैं हम’ शब्द शृंखला में आज का शब्द है- किरीट, जिसका अर्थ है- सिर पर बाँधने का एक आभूषण। प्रस्तुत है रामधारी सिंह “दिनकर” की कविता- ओ आशिक होनेवाले !

 

लेना अनल-किरीट भाल पर ओ आशिक होनेवाले!

कालकूट पहले पी लेना, सुधा बीज बोनेवाले!

 

1

धरकर चरण विजित श्रृंगों पर झंडा वही उड़ाते हैं,

अपनी ही उँगली पर जो खंजर की जंग छुडाते हैं।

 

पड़ी समय से होड़, खींच मत तलवों से कांटे रुककर,

फूंक-फूंक चलती न जवानी चोटों से बचकर , झुककर।

 

नींद कहाँ उनकी आँखों में जो धुन के मतवाले हैं?

गति की तृषा और बढती, पड़ते पग में जब छले हैं।

 

जागरूक की जाय निश्चित है, हार चुके सोने वाले,

लेना अनल-किरीट भाल पर ओ आशिक होनेवाले।

 

2

जिन्हें देखकर डोल गयी हिम्मत दिलेर मर्दानों की

उन मौजों पर चली जा रही किश्ती कुछ दीवानों की।

 

बेफिक्री का समाँ कि तूफाँ में भी एक तराना है,

दांतों उँगली धरे खड़ा अचरज से भरा ज़माना है।

 

अभय बैठ ज्वालामुखियों पर अपना मन्त्र जगाते हैं।

ये हैं वे, जिनके जादू पानी में आग लगाते हैं।

 

रूह जरा पहचान रखें इनकी जादू टोनेवाले,

लेना अनल-किरीट भाल पर ओ आशिक होनेवाले।

3

तीनों लोक चकित सुनते हैं, घर घर यही कहानी है,

खेल रही नेजों पर चढ़कर रस से भरी जवानी है।

 

भू संभले, हो सजग स्वर्ग, यह दोनों की नादानी है,

मिट्टी का नूतन पुतला यह अल्हड़ है, अभिमानी है।

 

अचरज नहीं, खींच ईंटें यह सुरपुर को बर्बाद करे,

अचरज नहीं, लूट जन्नत वीरानों को आबाद करे।

 

तेरी आस लगा बैठे हैं , पा-पाकर खोनेवाले,

लेना अनल-किरीट भाल पर ओ आशिक होनेवाले।

4

संभले जग, खिलवाड़ नहीं अच्छा चढ़ते-से पानी से,

याद हिमालय को, भिड़ना कितना है कठिन जवानी से।

 

ओ मदहोश! बुरा फल हल शूरों के शोणित पीने का,

देना होगा तुम्हें एक दिन गिन-गिन मोल पसीने का।

 

कल होगा इन्साफ, यहाँ किसने क्या किस्मत पायी है,

अभी नींद से जाग रहा युग, यह पहली अंगड़ाई है।

 

मंजिल दूर नहीं अपनी दुख का बोझा ढोनेवाले

लेना अनल-किरीट भाल पर ओ आशिक होनेवाले।

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