87 Views
एक अखबार का बंद होना हजारों शुभचिन्तको एवं पाठकों के लिए बङा हादसा माना जा सकता है। इसके लिए इसका दोष प्रकाशक यानि स्वत्वाधिकारी का ही होता है लेकिन जब वो पर्याप्त मात्रा में धन का जुगाड़ ना कर सके व बार बार लोगों को निवेदन करें तो उस पर समर्थवान लोगों को संज्ञान लेना चाहिए। वृहद हस्त सहायता करनी चाहिए। यदि ऐसा मन ना बना सके तो व्यावसायिक दृष्टि से हिस्से दार बनने के लिए उत्सुकता दिखानी चाहिए।
साधारणतया हम दो से दस रूपये के अखबार खरीद कर सरसरी तोर पर अपनी खबर एवं फोटो देखते हैं जो बिल्कुल मुफ्त में छपी है बाकी कुछ भी लेना देना नहीं। लेकिन एक अखबार के इस चार अथवा 12 पन्ने 50/60 रूपये में छपते है। जगह जगह भटक कर संवाददाता खबर लेकर आता है फिर उसको छंटनी एवं एडिटिंग के बाद छपाई के लिए टाइप किया जाता है। हर पन्ने के लिए दो दो आदमी होते हैं फिर ना जाने कितने लोगों द्वारा छपाई फिर अलग अलग पैकिंग फिर समूचे क्षेत्रों में वितरण किया जाता है।
जो अखबार सालभर आपकी इच्छा के अनुसार वो खबरों को भी इसलिए छापता है कि इनके सहयोग आशीर्वाद एवं समर्थन से अखबार छपता रहेगा। अखबार में सिर्फ वो ही खबर छपती है जिसे उनका संवाददाता संग्रह करके लाता है। भजन कीर्तन भंडारा किसी की मृत्यु कोई साधारण छात्र एवं सूचना अखबारों में विज्ञापन देकर छपाई जाती है। लेकिन समाजसेवी संवाददाता अखबार का मालिक जनहित लोकरंजन के लिए इसलिए छापता है कि यह हमारे हितैषी रहेंगे।
अखबार विज्ञापन एवं बङी संख्या में बिक्री से चलता है।
गोहाटी पूर्वोत्तर सहित शिलचर में अनेक बङे छोटे अखबार हिम्मत करके खोले गए लेकिन विभिन्न कारणों से बंद हो गये।
अखबार एक जनता की आवाज होता है यदि प्रकाशक शुभचिंतक एवं पाठक अपनी आवाज बंद करके मौन रहकर फिर सुन्य में जीना चाहता है तो उनकी मरजी।
मदन सुमित्रा सिंघल
पत्रकार एवं साहित्यकार
शिलचर असम
मो 9435073653