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कोई दुर्घटना अथवा संयोग नहीं अपितु सद्प्रयासों व संघर्ष का परिणाम है सफलता–सीताराम गुप्ता

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29 दिसंबर सन् 2022 को महान फुटबॉल खिलाड़ी पेले का निधन हो गया। खेल जगत के लिए यह एक बहुत बड़ी क्षति है। फुटबॉल में पेले की उपलब्धियों को देखते हुए पेले को सफलता का पर्याय कहा जा सकता है। उनके निधन पर एक समाचार पत्र में पेले से संबंधित आलेख से पहले, सफलता के विषय में उनका एक कथन उद्धृत किया गया था, जिसका पहला वाक्य था – सफलता कोई दुर्घटना नहीं है। यह उनके द्वारा कहे गए अंग्रेज़ी के एक वाक्य ‘‘सक्सेस इज़ नो एक्सिडेंट’’ का हिंदी अनुवाद है। एक्सिडेंट का एक अर्थ दुर्घटना भी होता है, लेकिन हिंदी भाषा में सफलता के संदर्भ में एक्सिडेंट का अर्थ दुर्घटना लिखना अनुचित ही नहीं, अत्यंत भ्रामक है। एक्सिडेंट अंग्रेज़ी का एक अनेकार्थी शब्द है, जिसके अर्थ हैं दुर्घटना, हादसा, वारदात, इत्तिफ़ाक, संयोग, अप्रत्याशित अथवा आकस्मिक घटना आदि। संयोग अथवा अप्रत्याशित घटना को दुर्घटना नहीं कहा जा सकता। सफलता के संदर्भ में तो बिलकुल नहीं, क्योंकि सफलता एक सकारात्मक, उत्साहजनक व प्रसन्नतादायक स्थिति है, जबकि दुर्घटना एक निराशाजनक स्थिति है। सफलता ही नहीं असफलता को भी दुर्घटना नहीं कहा जा सकता, क्योंकि असफलताएँ भी सफलता का मार्ग ही प्रशस्त करती हैं।

सफलता वास्तव में क्या है? सफलता सकारात्मक उदात्त जीवन मूल्यों का समुच्चय है, जो दुर्घटना तो छोड़िए आकस्मिक अथवा अप्रत्याशित घटना भी नहीं हो सकती। सफलता के लिए अपेक्षित सकारात्मक उदात्त जीवन मूल्यों व कुशलताओं को विकसित किया जाता है। सफलता संघर्ष का ही दूसरा नाम है, क्योंकि बिना संघर्ष के सफलता मिलना असंभव है। जिसके लिए हमने कभी कोई संघर्ष ही नहीं किया, उसे सफलता कैसे कह सकते हैं? हम किसी उपहार अथवा अनुदान को अपनी सफलता नहीं कह सकते। ग़लत तरीक़े से अर्जित किसी उपलब्धि को भी सफलता नहीं कहा जा सकता। सफलता के विषय में पेले आगे कहते हैं – ‘‘इट इज़ हार्ड वर्क, पर्सिविरेंस, लर्निंग, स्टडिंग, सैक्रिफ़ाइस एंड मोस्ट ऑफ़ ऑल, लव ऑफ़ वाट यू आर डुइंग ऑर लर्निंग टु डू।’’ ये कठिन परिश्रम, अध्यवसाय, प्रशिक्षण, अध्ययन, त्याग और सबसे बढ़कर, आप जो कर रहे हो अथवा सीख रहे हो, उससे प्यार करना है। क्या कोई दुर्घटना कठिन परिश्रम, अध्यवसाय, प्रशिक्षण, अध्ययन, त्याग और प्यार जैसी क्रियाओं का परिणाम हो सकती है? कदापि नहीं। यदि परिश्रम की बात करें, तो बिना कठिन परिश्रम के सफलता असंभव है। एक खिलाड़ी को ही लीजिए। बिना पर्याप्त अभ्यास के कोई खिलाड़ी सफलता प्राप्त नहीं कर सकता।

एक खिलाड़ी अत्यंत कठिन परिश्रम करता है, तभी सफलता प्राप्त करता है। जीवनभर साधना करने के उपरांत ही कोई योग्य अथवा महान संगीतकार या कलाकार बन पाता है। अब प्रश्न उठता है कि हम साधना अथवा परिश्रम क्यों और कब करते हैं? साधना अथवा परिश्रम भी हम तभी करते हैं, जब हमने कुछ पाने का संकल्प लिया हो। तो सफलता के लिए दृढ़ संकल्प भी अनिवार्य है। संकल्प भी कोई अप्रत्याशित घटना अथवा संयोग नहीं हो सकता। संकल्प भी हमारा स्वयं का चुनाव होता है। सही संकल्पों और उन पर डटे रहने के कारण ही हम सफलता की ओर अग्रसर होते हैं। शिवसंकल्प सूक्त में कहा गया है कि तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु। यजुर्वेद के चौंतीसवें अध्याय में छह मंत्र मिलते हैं, जिन्हें शिवसंकल्प सूक्त के नाम से जाना जाता है। इन मंत्रों में मन की विशेषताएँ बतलाने के साथ-साथ हर मंत्र के अंत में प्रार्थना की गई है – ‘तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु’ अर्थात् ऐसा हमारा मन शुभ संकल्पों वाला हो। शुभ संकल्प से तात्पर्य सकारात्मक सोच व कल्याणकारी संकल्प से ही है। आजकल जिस सकारात्मक सोच को विकसित करने की बात की जाती है, वे वास्तव में शुभ संकल्प ही होते हैं। इसलिए हमारे संकल्प शुभ अर्थात् सकारात्मक हों।

हम जैसे भी संकल्प लेते हैं, उन्हीं के अनुसार सफलता अथवा असफलता मिलती है, इसलिए संकल्पों का सही होना और उन पर दृढ. रहना, दोनों बातें अनिवार्य हैं। किसी भी कार्य की सफलता में संकल्प के साथ-साथ अध्ययन और प्रशिक्षण का बहुत अधिक महत्त्व होता है। निरंतर अध्ययन द्वारा ही हम नई-नई चीज़ें सीखते हैं और उनके द्वारा संसार की जानकारी प्राप्त करके जीवन में आगे बढ़ते हैं। अध्ययन अथवा स्वाध्याय के साथ-साथ प्रशिक्षण का भी बहुत अधिक महत्त्व है। उचित प्रशिक्षण के अभाव में हम कुछ चीज़ें सीख ही नहीं सकते। यदि हम तैरना सीखना चाहते हैं, तो उसके लिए अध्ययन नहीं प्रशिक्षण अनिवार्य है। इसी प्रकार से यदि हम खेल अथवा अन्य क्रिया-कलापों की बात करें, तो उनके लिए प्रशिक्षण व नियमित रूप से अच्छा प्रशिक्षण भी अनिवार्य है। उचित प्रशिक्षण के अभाव में कार्यों में उत्कृष्टता प्राप्त करना असंभव है और उत्कृष्टता कोई संयोग अथवा अप्रत्याशित रूप से घटित होने वाली घटना नहीं होती। एक खिलाड़ी, कलाकार अथवा रचनाकार निरंतर अभ्यास और प्रशिक्षण के द्वारा ही उत्कृष्टता और उत्कृष्टता से सफलता प्राप्त कर महान बन पाता है।

जीवन के अन्य क्षेत्रों में ही नहीं, सफलता में भी त्याग का बहुत महत्त्व होता है। अच्छे स्वास्थ्य अथवा रोगमुक्ति के लिए कई बार हमें अपनी पसंदीदा खाने-पीने की चीज़ों को त्यागना पड़ता है। दिनचर्या अथवा जीवनचर्या में परिवर्तन करके सुख-सुविधाओं का त्याग करना पड़ता है। इसी प्रकार से आराम का त्याग किए बिना हम कठिन परिश्रम नहीं कर सकते। एक खिलाड़ी को नियमित रूप से व्यायाम व खेल का अभ्यास करना पड़ता है। एक संगीतकार को नियमित रूप से घंटो रियाज़ करना होता है। जब हम किसी महान उद्देश्य के लिए समर्पित हो जाते हैं, तो हमें आराम का ही नहीं निरर्थक बातों का भी त्याग करना पड़ता है। हमें बहुत सारी चीजें और कार्य पसंद होते हैं। यदि हम केवल अपनी पसंद के कार्यों अथवा कम महत्त्वपूर्ण व बेकार की बातों में ही समय नष्ट करते रहेंगे, तो हमें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपेक्षित कार्य करने का समय कैसे मिल पाएगा? हम व्यस्त रहें, लेकिन उपयोगी व सार्थक क्रिया-कलापों में। हम बहुत कुछ और बहुत अच्छा कर सकते हैं, लेकिन तभी जब हम सब कुछ करने का विचार त्याग दें। इसके लिए कुछ प्राथमिकताएँ निश्चित करना अनिवार्य है। और सबसे महत्त्वपूर्ण बात ये है, कि हम जो कर रहे हैं, उससे प्यार करें न कि उसे बोझ समझें।

प्यार के अभाव में तो हमारे आपसी संबंध भी बोझ बनकर रह जाते हैं। एक सात-आठ साल की कमज़ोर और दुबली-पतली लड़की, अपने से दो-एक साल छोटे एक हृष्ट-पुष्ट बच्चे को गोद में उठाकर तेज़ी से चली जा रही थी। एक राहगीर ने जब ये देखा, तो उसने उत्सुकतावश लड़की से पूछा, ‘‘बेटा इतना बोझ उठा कर भी तुम इतनी तेज़ी से कैसे चल लेती हो?’’ ‘‘बोझ नहीं ये मेरा भाई है, ’’ लड़की ने राहगीर को जवाब दिया और ख़ुशी-ख़ुशी अपने मार्ग पर आगे बढ़ गई। वस्तुतः जिस व्यक्ति, वस्तु अथवा कार्य को हम मन से प्यार करते हैं, वह हमें बोझ नहीं लगता। सफलता के लिए भी अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित होना और उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किए जाने वाले प्रयासों से प्यार करना अनिवार्य है। लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किए जाने वाले प्रयासों अथवा कार्यों से प्रेम करना भी आकस्मिक घटना नहीं, अपितु इसे विकसित व अर्जित किया जाता है। इन सब बातों को जीवन में उतारने पर ही हम सफलता की ओर अग्रसर हो सकते हैं, इसमें संदेह नहीं। सफलता किसी भी प्रकार का शॉर्टकट, संयोग अथवा दुर्घटना नहीं, अपितु व्यक्ति द्वारा किए गए सद्प्रयासों, त्याग, संघर्ष व प्रतीक्षा का सुखद परिणाम है।

सीताराम गुप्ता,
ए.डी. 106 सी., पीतमपुरा,
दिल्ली – 110034
मोबा0 नं0 9555622323

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