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छूट गइल माई क अचरा

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छूटल गांव सिवान हो।
दू पइसा के खातिन अइलीं, शहरी बन अनजान हो।
कहे के बा की गांव के माटी से अन धन बरसेला।
महंगी बा एतना की अब, ओसे ना पेट भरेला।
पइसा जब भेजब तब जीयल ऊँहा होई आसान हो।
दू पइसा के खातिन अइलीं, शहरी बन अनजान हो।
उठल भीत बा घर के लेकिन, छत बा ओकर बाकी।
दुअरा पर पानी लागे ला, गईयन के बा टाटी।
खटब शहर में तबे जुटाइब, लिंटर के सामान हो।
दू पइसा के खातिन अइलीं, शहरी बन अनजान हो।
घर में बा बिजली सबके पर मन में अन्हरिया छाइल।
जाने काहें सुरसा जइसन दुख सबके बढ़िआइल।
सूद क पइसा भेजत रहिया कहले बा परधान हो।
दू पइसा के खातिन अइलीं, शहरी बन अनजान हो।
माई कहे ले बाबू हमरा मूड़ी रोज पीराला।
मेहरारू के खटनी कई कई देहियाँ रोज खियाला।
दूर देश से परिवरवा क पइसा राखे ध्यान हो।
दू पइसा के खातिन अइलीं, शहरी बन अनजान हो।
– श्वेता राय फेसबुक से साभार

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