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न्यूजक्लिक का सच क्या हो सकता है

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अवधेश कुमार

देश के 750 नामचीन लोगों ने न्यूजक्लिक के पक्ष में  बयान जारी कर कहा है कि उसका उत्पीड़न हो रहा है जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है। उनके अनुसार न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में न्यूज़क्लिक के विरुद्ध किसी कानून का उल्लंघन करने की बात नहीं कही गई है। इस बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में अभिनेता नसीरुद्दीन शाह, इतिहासकार रोमिला थापर, जोया हसन, जयती घोष, हर्ष मंदर, अरुणा राय, एन राम, कॉलिन गोंजाल्विस, प्रशांत भूषण ,आनंद पटवर्धन आदि शामिल हैं। एक लोकतांत्रिक खुले समाज एवं व्यवस्था में सरकार के समर्थक विरोधी, मध्यमार्गी, निष्पक्ष, सापेक्ष सभी प्रकार की अभिव्यक्ति के मंचों के लिए जगह होनी चाहिए। इसलिए न्यूजक्लिक अगर  संगठन के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, राजनीतिक पार्टी के रूप में भाजपा और नरेंद्र मोदी सहित भाजपा सरकारों के विरोध को अपना एजेंडा बनाता है तो यह उसका अधिकार है। पर उसका वैचारिक विरोध होगा और होना भी चाहिए। अगर वह एजेंडा चलता है तो उसके विरुद्ध भी मान्य कानूनी तरीकों में एजेंडा चल सकता है।  किंतु इसके आधार पर भारत सरकार की या किसी प्रदेश सरकार की एजेंसियां उसके विरुद्ध कार्रवाई करे यह स्वीकार नहीं हो सकता। क्या न्यूजक्लिक कि विरोध वाकई उसके राजनीतिक एवं वैचारिक एजेंडे के कारण है?

जिन लोगों ने न्यूज़क्लिक के समर्थन में हस्ताक्षर किए हैं उनकी समाज में प्रतिष्ठा है। इसके साथ यह भी सच है कि इनमें से ज्यादातर का अपना वैचारिक और राजनीतिक एजेंडा एकपक्षीय राष्ट्रीय संघ, भाजपा और हिंदुत्व से घृणावाद और विरोधवाद फैलाना है। विरोध इनका अधिकार है, पर ये दुराग्रहों की सीमा पार कर उस स्तर पर चले जाते हैं कि आम व्यक्ति भी इनकी सोच और व्यवहार पर संदेह व्यक्त करने लगता है। इन्होंने इतना सच कहा है कि न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी खोजपूर्ण रिपोर्ट में न्यूज़क्लिक द्वारा भारत में कानून के उल्लंघन की बात नहीं लिखा है। इन्होंने यह तथ्य नहीं लिखा कि न्यूयॉर्क टाइम्स की छानबीन न्यूज़क्लिक पर न होकर इसके फाइनेंसर नेविले राय सिंघम, अमेरिका सहित विश्व भर में फैले मीडिया एवं गैर सरकारी संगठनों आदि के माध्यम से फैला उनका विस्तृत जाल तथा चीन के साथ उनके संबंध हैं। इन्हीं की चर्चा करते हुए न्यूयॉर्क टाइम्स ने भारत में न्यूज़क्लिक का उल्लेख किया है। न्यूयॉर्क टाइम्स छानबीन की रिपोर्ट से साफ है कि सिंघम चीनी एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए कई हजार करोड़ की फंडिंग कर रहे हैं और उसमें न्यूज़क्लिक भी शामिल है तो फिर इसे पाक साफ कैसे कहा जा सकता है?

न्यूजक्लिक के मामले के दो पहलू है– वित्त पोषण के साथ चीनी एजेंडे का जुड़ाव और दूसरा इसमें भारतीय कानूनों का उल्लंघन। न्यूज़क्लिक स्टूडियो प्राइवेट लिमिटेड को  2018 से करीब 38 करोड रुपया सिंघम प्राप्त हुआ है।  इसको जस्टिस एंड एजुकेशन फंड इंक, यूएस; जीएसपीएएन एलएलसी, यूएस; ट्राईकॉन्टिनेंटल लिमिटेड इंक, यूएसए के अलावा सेंट्रो पॉपुलर डेमिडास, ब्राजील से फंड मिला। न्यूयॉर्क टाइम्स लिखता है कि अमेरिकी अरबपति सिंघम की विश्व भर में चीन का बचाव करने और उसका प्रोपेगेंडा आगे बढ़ाने में सबसे बड़ी भूमिका है और उनके पास भरपूर धन है। यह कैसे काम करता है इसका एक उदाहरण देखिए। कोल्ड वॉर ग्रुप के बारे में माना जाता था कि यह अमेरिका और ब्रिटिश एक्टिविस्टों का  बिगड़ा हुआ समूह है। इसके अनेक प्रदर्शन होते थे। पिछले दिनों नवंबर 2021 में एशियाइयों के खिलाफ घृणा अपराध के विरोध प्रदर्शन में लंदन के चायना टाइम में कई सक्रिय समूहों में यह भी था। उसमें प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प हुई तो लोगों को आश्चर्य हुआ। विरोध जताने वाले अधिकतर लोग चीनी थे । झगड़ा उस समय हुआ जब कोल्ड वॉर ग्रुप के लोगों ने हांगकांग में लोकतंत्र आंदोलन का समर्थन करने वाले एक्टिविस्टों पर हमला कर दिया। लोगों को समझ में नहीं आया कि अमेरिकी ब्रिटिश एक्टिविस्टों के लोग हमला क्यों कर रहे हैं। बाद में पता चला कि यह चीन का बचाव करने और उसका प्रोपगंडा चलाने वाला समूह है। सोचिए, नाम कोल्ड वॉर ग्रुप और काम क्या है?  रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी एंटीवर्ट समूह कोड पिंक में भी समय बीतने के साथ बदलाव आया है। कोड पिंक ने पहले मानवाधिकारों को लेकर चीन की आलोचना की थी लेकिन अब वह मुस्लिम उईगारो पर अत्याचारों का बचाव करता है।

 न्यूयॉर्क टाइम्स बताता है कि सिंघम के पास गैर-लाभकारी संगठन व सेल कंपनियों के इतने बड़े जाल है कि उनमें यह बात लगभग छुपी रही है कि वे चीन सरकार की मीडिया मशीन के साथ काम करते हैं। 69 वर्षीय सिंघम शिकागो में सॉफ्टवेयर कंसलटेंसी कंपनी थॉटवर्क्स चलाते हैं और शंघाई में बैठते हैं। वहां उनका नेटवर्क यूट्यूब पर एक शो आयोजित करता है। इसके लिए शंघाई का प्रोपोगंडा विभाग भी पैसा देता है। दो अन्य समूह दुनिया में चीन के पक्ष का प्रचार करने के लिए चीनी यूनिवर्सिटी के साथ काम कर रहे हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स की छानबीन के अनुसार सिंघम के साथ मैसाचुसेट्स में एक थिंकटैंक, मैनहैटन की संस्था, दक्षिण अफ्रीका में एक राजनीतिक दल, भारत और ब्राजील में न्यूज संगठन सहित कई समूह जुड़े हैं।

सिंघम ने बयान दिया कि वह चीन सरकार के निर्देश पर काम नहीं करते। सच यह है कि सिंघम के समूह चीन के पक्ष में अभियान के लिए यूट्यूब वीडियो बनाते हैं, राजनीति को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं, ये समूह अमेरिकी कांग्रेस में सहायकों से मिलते हैं, अफ्रिका में राजनेताओं को प्रशिक्षण देते हैं, दक्षिण अफ्रीका के चुनाव में उम्मीदवार खड़ा करते हैं और लंदन जैसे विरोध प्रदर्शन आयोजित करते हैं।

न्यूयॉर्क टाइम्स का मूल लक्ष्य भारत था ही नहीं। न्यूयॉर्क टाइम्स मूलतः अमेरिकियों को बता रहा है कि हमारे यहां किस तरह से चीनी एजेंडा चलाने वाला एक व्यक्ति अलग-अलग समूहों और सेल कंपनियों के माध्यम से काम कर रहा है। अमेरिका में सिंघम से जुड़ा कोई समूह विदेशी एजेंट रजिस्ट्रेशन कानून के तहत निबंधित नहीं है। अमेरिका में दूसरे देशों की ओर से जनमत को प्रभावित करने के अभियान चलाने वाले समूहों का निबंधन आवश्यक है। जिन चार गैर-लाभकारी संगठनों की बदौलत सिंघम का अभियान चलता है उनके पते इलीनॉय, विस्कंसिन और न्यूयॉर्क में यूपीएस स्टोर मेल बॉक्स के रूप में दर्ज है। न्यूयॉर्क टाइम्स का कहना है कि यूपीएस स्टोर गैर-लाभकारी समूह के रूप में यहां दर्ज है जिससे करोड़ों डॉलर दुनिया भर में भेजे गए हैं।  कोई न कोई बहाना बनाकर इसने दक्षिण अफ्रीका के स्कूलों को लाखों डॉलर भेजे हैं। इसी में आगे वह कुछ राजनीतिक दलों एवं मीडिया संस्थानों को पैसा मिलने के बारे में लिखता है। उदाहरण के लिए ब्राजील में ब्राजील डिफेक्टो अखबार चलाने वाले समूहों को भी सिंघम से धन मिला है। न्यूयॉर्क टाइम्स बता रहा है कि यह अखबार चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की प्रशंसा में लिखता है। इसने स्पष्ट लिखा है कि नई दिल्ली में कॉरपोरेट्स फाइलिंग से पता लगा है कि सिंघम के नेटवर्क न्यूज़ साइट न्यूज़क्लिक को फाइनेंस किया है। ये समूह तालमेल से काम करते हैं। उन्होंने एक-दूसरे के कंटेंट सोशल मीडिया पर सैकड़ों बार पोस्ट की है।

यह है न्यूयॉर्क टाइम्स की छानबीन। हस्ताक्षर करने वाले नामचीन लोगों ने निश्चय ही रिपोर्ट को पढ़ा होगा। क्या इसके बाद कोई मानेगा कि सिंघम से जुड़ा कोई मीडिया संस्थान निष्पक्ष होकर काम करेगा या भारतीय हितों को ध्यान में रखते हुए पत्रकारिता करेगा?  ईडी या प्रवर्तन निदेशालय की छानबीन से मोटा -मोटी जो जानकारी सामने आई उसके अनुसार न्यूज पोर्टल को आए धन में से 52 लाख बप्पादित्या सिन्हा को दिए गए। बप्पादित्या सिन्हा कम्युनिस्ट नेताओं के ट्विटर हैंडल भी संभालते हैं। धन का एक हिस्सा गौतम नवलखा के पास गया। निश्चित रूप से ये भुगतान उनके लेख या रिपोर्ट आदि के लिए ही गया होगा। विचार या एजेंडा फैलाने वालों को इसी तरह भुगतान किया जाता है जिनमें कानूनी रूप से कोई खांच न रहे। यह देखना प्रवर्तन निदेशालय का काम है कि जो धन आए उनमें कानून और भारतीय रिजर्व बैंक के नियमों का पालन हुआ या नहीं? न्यूज क्लिक ने अपने बयान में कहा कि उसने इनका पालन किया है। हो सकता है। कानूनी रूप से शायद गलत न भी हो, पर न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के बाद भी यदि भारतीय होने के नाते इसकी टीम को कोई समस्या नहीं है तो देश अवश्य इनसे प्रश्न करेगा? संघ , भाजपा व  मोदी विरोध के नाम पर न्यूजक्लिक के पक्ष में हस्ताक्षर करने वालों ,अभियान चलाने वालों से भी पूछा जाएगा कि क्या वे चीन के एजेंडे को सही मानते हैं?

 पता– अवधेश कुमार, ई-30 , गणेश नगर, पांडव नगर कौम्पलेक्स, दिल्ली- 110092 मोबाइल- 98110 27208

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