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किसी फिल्म के बनने में जितना योगदान पर्दे पर दिखने वाले कलाकारों का होता है उससे कहीं अधिक योगदान पर्दे के पीछे काम करने वालों का होता है।ठीक उसी तरह जैसे किसी भवन निर्माण की आंतरिक साज सज्जा तो हमें दिखाई देती है लेकिन नींव के पत्थर और भवन तराशने वाले कारीगरों का योगदान हमें दिखाई नहीं देता। पर्दे के पीछे काम करने वालों का फिल्म संगीत में भी बहुत बड़ा योगदान होता है।कुछ कलाकर फिल्म संगीत में वही भूमिका निभाते हैं जो माला में धागा निभाता है,वह बाहर से दिखाई तो नहीं देता लेकिन माला का सारा वजूद धागे पर ही टिका होता है, ऐसा ही एक नाम है फिल्म संगीतकार अनूप सिंह बोरलिया का जिन्होंने कई फिल्मी गीतों में ढोलक वादक और परकनिष्ट (जो कई वाद्य यंत्रों को बजाने में कुशल होता है)की भूमिका निभाई है।
राम तेरी गंगा मैली से शुरू हुआ अनूप जी का सफर आज भी जारी है,इन्होंने इस दौरान हिना,आशिकी,साजन, बंटी और बबली जैसी अनेक फिल्मों के अलावा महान धारावाहिक रामायण में भी ढोलक वादन किया है। फिल्म संगीत के मामले में अनूप जी आज देश के सर्वश्रेष्ठ परकनिष्ट हैं जो ढोलक के साथ ही ढपली, मटकी, घुंघरू, मादल और विदेशी लोक वाद्य एंकलुंग भी बजाते हैं।इनकी इसी खूबी के कारण बड़े बड़े संगीतकारों ने इनको हमेशा अपने साथ रखा है, फिर चाहे रविंद्र जैन हों या लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की महान जोड़ी, अनूप जी के बिना रिकॉर्डिंग नहीं करते थे। रविंद्र जैन के साथ तो उनका वैसा ही रिश्ता रहा जैसा सुर के साथ ताल का होता है, दोनों हमेशा साथ रहे, रविन्द्र जैन तो रियाज भी अनूप जी के साथ ही करते थे और लता जी जैसी महान गायिका भी रिहर्सल और रिकॉर्डिंग में अनूप जी के साथ गाती थीं।रविंद्र जी के मशहूर गीत राम तेरी गंगा मैली हो गई और सुन साहिबा सुन पर वह थाप अनूप जी ने ही दी है,जिस पर मंदाकिनी नाची हैं। अनूप जी उन चंद संगीतकारों में से एक हैं जो फिल्म संगीत और क्लासिकल दोनों के महारथी हैं, फिल्मों में उन्होंने जहां रविंद्र जैन, लक्ष्मी कांत-प्यारेलाल, आदेश श्रीवास्तव, अनु मलिक,अजय अतुल जैसे अनेक बड़े संगीतकारों को रिदम दी तो वहीं उन्होंने क्लासिकल के मशहूर तालवाद्य कचहरी में भी अहम भूमिका निभाई जिसका संयोजन प्रसिद्ध पखावज वादक अखिलेश गुंदेचा करते हैं,बचपन के इन दोनों मित्रों की तालवाद्य कचहरी शास्त्रीय संगीत जगत में बहुत प्रतिष्ठित है ।
अनूप जी चार दशक फिल्मनगरी में रहने के बाद आजकल ज्यादा वक्त अपने गृह नगर उज्जैन में बिताते हैं जहां उनका उद्देश्य ताल वाद्य में एक नई पौध तैयार करना है । वे अपने स्टूडेंट्स को ढोलक,तबला, ढपली, मादल,घुंघरू सभी वाद्य सिखाते हैं। अनूप जी एचएमवी के लिए पुराने फिल्मी गीतों का ताल संयोजन भी कर चुके हैं जिनके कैसेट्स और सीडी बहुत पॉपुलर हुए ,पुराने फिल्मी गीतों पर अपने स्टूडेंट्स के साथ नई ताल देकर अनूप जी जो रील अपलोड करते हैं वह सोशल मीडिया पर लाखों की संख्या में देखी जाती हैं।
अनूप जी अथाह ज्ञान के सागर हैं।उन्होंने बहुत बड़े बड़े संगीतकारों के साथ काम किया है ,उन्हें फिल्म संगीत की वे सारी बारीकियां मालूम हैं जो संगीत को मधुर और कर्णप्रिय बनाती हैं।आजकल के बड़े बड़े संगीतकार भी ये बारीकियां अपने संगीत में उपयोग नहीं कर पाते इसीलिए अनूप जी के पास सीखने वालों की भीड़ रहती है। अनूप जी को पिछले वर्ष श्री श्री रविशंकर के फाउंडेशन द्वारा कला सारथी सम्मान भी दिया जा चुका है जो प्रसिद्ध अभिनेत्री हेमा मालिनी ने दिया था। अनूप बारोलिया संगीत नाटक अकादमी से भी अनुबंधित गुरु हैं।वे यहां अकादमी द्वारा छात्रवृत्ति पाने वाले बच्चों को लोक वाद्यों की शिक्षा देते हैं।
मध्यप्रदेश की धरती ने फिल्म संगीत में लता जी ,किशोर कुमार और प्रदीप जी जैसे महान संगीतकार दिए हैं उसी कड़ी में बेशक अनूप जी का नाम भी लिया जा सकता है क्योंकि अनूप बोरलिया जी का योगदान इन महान कलाकारों से बिल्कुल कम नही है बस फर्क यही है कि अनूप जी ने जो भी किया परदे के पीछे किया लेकिन साधना तो साधना है इसलिए सरकार और कलाकार दोनों को अनूप जी जैसे कला साधकों का सम्मान जरूर करना चाहिए क्योंकि गाना कितना भी खूबसूरत हो ताल के बिना अधूरा होता है और फिल्म संगीत के उसी अधूरेपन को पूर्ण करने वाले साधक का नाम है अनूप सिंह बोरलिया।
*अनूप बोरलिया की फिल्में*
राम तेरी गंगा मैली,हिना,आशिकी, साजन,राम लखन, खलनायक, विवाह, खुदा गवाह, लम्हे, बंटी और बबली,चंद्रमुखी (मराठी) और महान धारावाहिक रामायण, श्रीकृष्णा।(लेखक गीतकार हैं)(विनायक फीचर्स)