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२९ जुन २०२३ को चलो कुछ न्यारा करते है फाउंडेशन के शिक्षा विभाग के निर्देशक प्रित्तेश तिवारी जी ने हूल क्रांति में अपनी प्राणों की बलिदान देने वाले भारत के बीर आदिवासियों को याद करते हुए कहा कि भारत के इतिहास में हूल क्रांति को हम सदैव स्मरण करते रहेंगे।
झारखण्ड राज्य के आदिवासियों द्वारा अंग्रेज़ों के विरुद्ध चलाया गया इस आंदोलन में लड़ते हुए लगभग 20 हज़ार आदिवासियों ने अपनी जान दी।
प्रित्तेश जी ने बताया कि मशहूर इतिहासकार हंटर की पुस्तक में लिखा है कि अंग्रेज़ों का कोई भी सिपाही ऐसा नहीं था, जो आदिवासियों के बलिदान को लेकर शर्मिदा न हुआ हो। इसमें करीब 20 हज़ार वनवासियों ने अपनी जान दी थी।
इतिहास के अनुसार विश्वस्त साथियों को पैसे का लालच देकर सिद्धू और कान्हू को भी गिरफ़्तार कर लिया गया और फिर 26 जुलाई को दोनों भाइयों को भगनाडीह ग्राम में खुलेआम एक पेड़ पर टांगकर फ़ाँसी की सज़ा दे दी गई। इस प्रकार सिद्धू, कान्हू, चांद तथा भैरव, ये चारों भाई सदा के लिए भारतीय इतिहास में अपना अमिट स्थान बना गए।
उनके इस बलिदान को हम समस्त देशवासी सदैव स्मरण करते रहेंगे।