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बेवजह किसी को सताना, मेरे ज़मीर में नहीं ..
जुल्मों को सह जाना खून की तासीर में नहीं
खून की तासीर में नहीं ……..
सब कुछ खो कर भी पा लिया तुझको,
सौदा ……… ….. सस्ता है !
जो उसी ने कहा था ,
तू मेरे हाथ की लकीर में नहीं,
तू मेरे हाथ की लकीर में नहीं ।
किसने किया हमें बर्बाद ??
किसने ने लूटा है, घर हमारा ??
सभी हैं, जांच के घेरे में
बस यही एक नाम तहरीर में नहीं
यही एक नाम तहरीर में नहीं।
हां! मैं ठुकरा आया सारी दौड़ते ..
सारी ,शोहरतें..
फिर भी मुझको तो दिखती कोई कमी,
मुझ फकीर में नहीं ।
मुझ फकीर में नहीं ।
सौदा कर पाए जो मेरी इन सच्चे से वसूलों का
इतनी तो असरफिया अभी तेरी जागीर में नहीं।
इतनी तो असरफिया अभी तेरी जागीर में नहीं
जुल्मों का सह जाना मेरे खून की तासीर में नहीं
बेवजह किसी को सताना मेरे ज़मीर में नहीं ….
( विश्वास राणा ‘जिप्सी’ )