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राज्य शिक्षा विभाग का राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति सौतेली रवैया दूर्भाग्यपूर्ण।

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भाषा मानव अस्तित्व की एक प्रमुख विशेषता है क्योंकि यह मनुष्यों को एक-दूसरे के साथ संवाद करने और उनके बीच संबंध विकसित करने में मदद करती है।भारत की मुख्य विशेषता यह है कि यहां विभिन्नता में एकता है। भारत में विभिन्नता का स्वरूप न केवल भौगोलिक है, बल्कि भाषायी तथा सांस्कृतिक भी है। यहां स्पष्ट करना जरूरी है कि हिंदी विश्व की प्रमुख भाषाओं में से एक है तथा भारत की राजभाषा भी है। हिंदी भारत के साथ साथ नेपाल, मॉरिशस, फिजी, गयाना, सूरीनाम अमेरिका, जर्मनी, सिंगापुर आदि और भी विश्व के तमाम देशों में गर्व के साथ बोली जाती है।बता दें कि न्यूजीलैंड में हिंदी चौथी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। हमें गर्व करना चाहिए कि हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है और इसकी लोकप्रियता को विश्व भर में स्वीकारा जाता है।
  स्वाधीनता के बाद से ही हमारे असम के सरकारी स्कूलों की उच्च प्राथमिक विद्यालयों के स्तर में आने वाले, पहले; पांचवीं, छठी और सातवीं कक्षाओं में और अब; छठी, सातवीं और आठवीं कक्षाओं में अनिवार्य रूप से हिंदी पढ़ाया जा रहा है जिससे आने वाली पीढ़ियों में क्षेत्रीय और राज्य भाषा के साथ साथ राष्ट्र भाषा को सिखने का अवसर मिला।आज हम देश भर के अलग अलग क्षेत्र में अपने अपने स्तर पर भारत मां की सेवा कर रहे हैं और राष्ट्र भाषा हिंदी के माध्यम से किसी भी क्षेत्र में अपना विचार या भावनाओं को व्यक्त कर वहां के लोगों के साथ जुड़ रहे हैं। हमें अपनी देश की संस्कृति को जानने के लिए संस्कृत पढ़ना जितना जरूरी है, देश को जानने के लिए या देशभर में स्वतंत्र रूप से विचरण करने के लिए राष्ट्र भाषा की ज्ञान होना भी जरूरी है। लेकिन असम सरकार द्वारा राज्य के उच्च प्राथमिक विद्यालयों में हिंदी विषय का अनिवार्य पढ़ाई पर रोक लगाने की कदम हम असम वासीयों के देश का अन्य राज्यों के लोगों के साथ जुड़ने का माध्यम को कमजोर करना जैसे प्रतीत होता हैं, क्यों की अनेकों भाषा की इस देश में सम्पर्क जोड़ने वाली एकमात्र भाषा हिंदी से ही हम अपरिचित रह जाएंगे तो फिर हम कैसे अन्य भाषा बोलने वाले लोगों के साथ बातचीत कर पाएंगे? साथ ही राष्ट्रभाषा हिन्दी का पठन पाठन पर लगाम लगने से हमारे भविष्य प्रजन्म  संस्कृत भाषा से भी सम्पूर्ण रुप से अपरिचित रह जाएगा जो कि आने वाले दिनों के लिए एक बहुत ही नकारात्मक संकेत है।
      इसलिए हम सबको समय रहते ही एक साथ आगे बढ़कर आना होगा और राज्य सरकार का हिंदी भाषा के प्रति अपनाए गए दूर्भाग्यपूर्ण आचरण पर पुनर्विचार कर वापस लेने के लिए तथा राष्ट्र भाषा हिंदी को उपयुक्त मर्यादा के साथ असम के सरकारी विद्यालयों में पठन पाठन का राह प्रशस्त करने के लिए प्रभावी दबाव बनाना होगा।
                  चन्द्रबान ग्वाला, शिलचर (असम)

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